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भारत में जिंदा है 1 मानव, जिनकी 5 200 वर्ष की हुई आयु, महादेव का ये भक्त कलयुग में लड़ेगा आखिरी युद्ध

5 हजार सालों से जीवित हैं अश्वत्थामा और कलयुग में भगवान कल्कि के साथ मिलकर लड़ेंगे युद्ध, कानपुर से लेकर मध्य प्रदेश में अश्वत्थामा को देखे जाने का लोग करते हैं दावा।

by Vinod
January 14, 2025
in Latest News, TOP NEWS, धर्म, राष्ट्रीय
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नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। भारत में एक ऐसा मावन है, जो 6 हजार वर्षों से जीवित है। वह भगवान शिव का परमभक्त है। भोर पहर सबसे पहले जगता है। गंगा में डुबकी लगाता है और शिवलिंग में फूल-बेलपत्र अर्पण कर महदेव की अराधना करता है। कहा जाता है जब कलयुग में भगवान विष्णु का कल्कि अवतार उत्तर प्रदेश के संभल जनपद में होगा। तब ये मानव भगवान कल्कि के साथ मिलकर अपना आखिरी युद्ध लड़ेगा। दरअसल, ये महामानव अश्वत्थामा हैं। अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने निकले अश्वत्थामा को उनकी एक चूक भारी पड़ी और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें युगों-युगों तक भटकने का श्राप दे दिया था। पिछले 5 200 सालों से अश्वत्थामा आज भी जिंदा हैं।

अश्वत्थामा की उम्र 5,200 साल की

हिंदू परंपरा के मुताबिक, अश्वत्थामा की उम्र 5,200 साल है। कलियुग की शुरुआत से उनकी उम्र का अनुमान 3102 ईसा पूर्व है। इस हिसाब से, कुरुक्षेत्र युद्ध के समय अश्वत्थामा की उम्र 78 साल थी। अश्वत्थामा, गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। वे जन्म से ही अपने पिता की तरह पराक्रमी और धनुर्विद्या में माहिर थे। मान्यता है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और कलयुग के अंत तक जीवित रहेंगे। मध्य प्रदेश के महू से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों पर खोदरा महादेव की जगह को अश्वत्थामा की तपस्थली के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि आज भी अश्वत्थामा यहां आते हैं।

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द्धावर युग में हुआ था अश्वत्थामा का जन्म

बता दें, शास्त्रों में सबसे पहला और बड़ा युग सतयुग माना गया है। ये 17,28,000 वर्ष तक रहा है। इसमें मनुष्य की आयु करीब 1,00,000 वर्ष के आसपास बताई गई है। सतयुग के बाद दूसरा बड़ा युग त्रेतायुग था। इसकी आयु करीब 12,96,000 वर्ष की बताई गई है। इस युग में मनुष्य की आयु लगभग 10,000 वर्ष होती थी। तीसरे नंबर पर है द्वापरयुग। इसकी आयु करीब 8,64,000 वर्ष थी और इसमें मनुष्य लगभग 1000 वर्ष तक की आयु तक जीवित रहे हैं। शास्त्रों में इसे सबसे आखिरी और छोटा युग बताया गया है। इसकी कुल आयु करीब 4,32,000 वर्ष की है। मनुष्य की अधिकतम आयु 100 वर्ष के आसपास है। इस युग में भगवान कल्कि के रूप में एक ब्राह्मण परिवार में अवतरित होंगे। कल्कि भगवान राक्षसों का वध करेंगे। इस युद्ध में अश्वत्थामा भी भगवान कल्कि के साथ युद्ध लड़ेंगे।

गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे अश्वत्थामा

अश्वत्थामा महाभारतकाल में जन्मे थे। उनकी गिनती उस समय के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती थी। वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र व कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के भांजे थे। द्रोणाचार्य ने ही कौरवों और पांडवों को शस्त्र विद्या में पारंगत बनाया था। महाभारत के युद्ध के समय गुरु द्रोण ने हस्तिनापुर राज्य के प्रति निष्ठा होने के कारण कौरवों का साथ देना उचित समझा। पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया था। पांडव सेना को हतोत्साहित देख श्रीकृष्ण ने द्रोणाचार्य का वध करने के लिए युधिष्ठिर से कूटनीति का सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत युद्धभूमि में यह बात फैला दी गई कि अश्वत्थामा मारा गया है। जब द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की मृत्यु की सत्यता जाननी चाही तो युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि ’अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा’ (अश्वत्थामा मारा गया है, लेकिन मुझे पता नहीं कि वह नर था या हाथी)।

भगवान श्रीकृष्ण ने दिया था शाप

यह सुन गुरु द्रोण पुत्र मोह में शस्त्र त्याग कर युद्धभूमि में बैठ गए और उसी अवसर का लाभ उठाकर पांचाल नरेश द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया। पिता की मृत्यु ने अश्वत्थामा को विचलित कर दिया। महाभारत युद्ध के पश्चात अश्वत्थामा ने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडव पुत्रों का वध कर दिया तथा पांडव वंश के समूल नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया था। भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर दिया और युगों-युगों तक भटकते रहने का शाप दिया था। तब से अश्वत्थामा धरती पर भटक रहे हैं। भगवान शिव की अराधना करते हैं। अश्वत्थामा के बारे में कहा जाता है कि उन्हें भारत के कई इलाकों में देखा भी गया है। कानपुर के शिवराजपुर स्थित शिवमंदिर में पूजा करते लोगों ने अश्वत्थामा को देखने का दावा किया है।

बुरहान में अश्वत्थामा को देखे जाने का दावा

कानपुर के अलावा मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में भी अश्वत्थामा को देखे जाने का दावा किया जाता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि किले में स्थित तालाब में स्नान करके अश्वत्थामा शिव मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वे उतावली नदी में स्नान करके पूजा के लिए यहां आते हैं। आश्चर्य कि बात यह है कि पहाड़ की चोटी पर बने किले में स्थित यह तालाब बुरहानपुर की तपती गरमी में भी कभी सूखता नहीं। तालाब के थोड़ा आगे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर चारों तरफ से खाइयों से घिरा है। किवदंती के अनुसार, इन्हीं खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन (खंडवा जिला) से होता हुआ सीधे इस मंदिर में निकलता है। इसी रास्ते से होते हुए अश्वत्थामा मंदिर के अंदर आते हैं। शिवलिंग पर प्रतिदिन ताजा फूल एवं गुलाल चढ़ा रहता है।

भगवान कल्कि के साथ मिलकर लड़ेंगे युद्ध

सनातन धर्म की किताब भविष्य पुराण के अनुसार भविष्य में सनातन धर्म पर बहुत बड़ा संकट आएगा। उस समय इंसान की सोच और चरित्र गिर चुका होगा। तब इंसान दुनिया से सनातन धर्म को मिटाने का प्रयास करेगा और उसी समय कलयुग का अंत भी होगा। इस वक़्त भगवान विष्णु “कल्कि” अवतार के रूप में धरती पर जन्म लेंगे और उनकी सेना में अश्वत्थामा भी शामिल होकर अधर्म के विरुद्ध लड़ाई करेंगे। योद्धा अश्वत्थामा धरती पर लगभग 5000 से 6000 वर्षों तक धर्म की रक्षा करते हुए ऐसे ही भटकते रहेंगे। असल में योद्धा अश्वत्थामा ने जो अधर्म किया था, उसकी सजा काटते हुए वह धर्म की रक्षा करते हुए, भगवान विष्णु के कलकी अवतार होने तक ऐसे ही भटकते रहेंगे। योद्धा अश्वत्थामा के भटकने की वजह धर्म युद्ध की लड़ाई में शामिल होना और इस श्राप में मुक्त होकर मोक्ष हासिल करना है।

Tags: AshwatthamaLord Shri Krishna
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