Lalbaugcha Raja:मुंबई की आस्था का प्रतीक, पहली झलक आई सामने शुरू हुआ उत्सव जानिए कैसा है इस बार का स्वरूप

मुंबई का लालबागचा राजा 1934 से हर साल गणेशोत्सव का मुख्य आकर्षण रहा है। मनोकामना पूरी करने वाले गणपति के रूप में प्रसिद्ध यह प्रतिमा अब आस्था और परंपरा का प्रतीक बन चुकी है, जहां लाखों भक्त दर्शन के लिए उमड़ते हैं।

Symbol of Mumbai’s Faith:महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई के सबसे प्रसिद्ध और पूजनीय गणपति ‘लालबागचा राजा’ की इस साल की पहली झलक रविवार को श्रद्धालुओं को मिली। जैसे ही प्रतिमा का अनावरण हुआ, पंडाल में जयकारों की गूंज सुनाई देने लगी। भक्तों में उत्साह और भक्ति का माहौल देखते ही बन रहा था।

इस बार का स्वरूप

इस वर्ष बप्पा का रूप बेहद आकर्षक है। भगवान गणेश बैंगनी रंग की धोती, सिर पर सुंदर मुकुट और हाथ में चक्र धारण किए हुए हैं। जैसे ही भक्तों ने यह रूप देखा, पूरा मंडप “गणपति बप्पा मोरया” के नारों से भर उठा। हर साल की तरह इस बार भी प्रतिमा 11 दिनों तक विराजमान रहेगी और अनंत चतुर्दशी पर गिरगांव चौपाटी में विसर्जित की जाएगी।

गणेशोत्सव की शुरुआत

इस साल गणेशोत्सव 27 अगस्त से पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाएगा। लेकिन मुंबई में तो बप्पा के आगमन से पहले ही तैयारियां जोर पकड़ चुकी हैं। लालबागचा राजा के पहले दर्शन के लिए न सिर्फ मुंबई बल्कि महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों से हजारों लोग पहुंचते हैं। इसे “नवसाला पावणारा गणपती” यानी मनोकामना पूरी करने वाले गणपति के नाम से जाना जाता है।

भारी संख्या में उमड़े भक्त

रविवार को हुए प्रथम दर्शन समारोह में महिलाओं, पुरुषों और बच्चों की भारी भीड़ उमड़ी। कई भक्त तो घंटों पहले से लाइन में खड़े थे ताकि बप्पा के पहले दर्शन का सौभाग्य पा सकें। लालबागचा राजा सिर्फ एक प्रतिमा नहीं, बल्कि मुंबई की आस्था और परंपरा का प्रतीक बन चुका है।

लालबागचा राजा मंडल का इतिहास

लालबागचा राजा मंडल की स्थापना वर्ष 1934 में हुई थी। इसका पूरा नाम “लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल” है। इसे कोली मछुआरों और स्थानीय व्यापारियों ने मिलकर शुरू किया था। उस समय लालबाग इलाके में कपास मिलों से हजारों लोगों को रोजगार मिलता था। लेकिन 1932 में पेरु चाल नामक स्थानीय बाजार बंद होने से व्यापारियों की आजीविका संकट में पड़ गई।

मन्नत पूरी होने के बाद गणेश स्थापना

व्यापारियों और मछुआरों ने भगवान गणेश से प्रार्थना की कि अगर उन्हें व्यापार के लिए नई जगह मिल गई, तो वे हर साल गणपति की स्थापना करेंगे। जल्द ही उन्हें लालबाग इलाके में नई जमीन मिली और 1934 से गणेश मूर्ति स्थापना की परंपरा शुरू हुई।

भव्य स्वरूप और पहचान

शुरुआत में गणपति की प्रतिमा करीब 2 फुट की होती थी, लेकिन आज यह 18 से 20 फुट ऊंची बनाई जाती है। गणपति को राजसी स्वरूप में सिंहासन पर विराजमान किया जाता है, जिसमें सोने-चांदी के आभूषण और शानदार वस्त्र होते हैं।

नामकरण की कहानी

“लालबागचा राजा” नाम इस इलाके की लाल मिट्टी और विशाल बगीचों की वजह से पड़ा। यहां की मूर्ति का निर्माण 1935 से कांबली परिवार करता आ रहा है। खास बात यह है कि बप्पा के चेहरे का डिज़ाइन पेटेंटेड है और हर साल वही स्वरूप रखा जाता है।

लालबागचा राजा सिर्फ एक गणेश प्रतिमा नहीं, बल्कि मुंबई की श्रद्धा, परंपरा और विश्वास का प्रतीक है। हर साल लाखों भक्त यहां अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की आस में पहुंचते हैं और बप्पा सभी को निराश नहीं करते।

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