Puri Jagannath Temple: पुरी जगन्नाथ मंदिर का रहस्य और महत्व,जानिए उतरते वक्त तीसरी सीढ़ी पर पर पैर क्यों नहीं रखते हैं

पुरी का जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। इसके चार द्वार और 22 सीढ़ियों का आध्यात्मिक महत्व बहुत खास है। मंदिर की मूर्तियां लकड़ी की बनी होती हैं, जिन्हें हर 12 से 19 साल में बदला जाता है।

Puri Jagannath Temple: ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र हिंदू मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ (जो भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं) को समर्पित है। हर साल लाखों भक्त यहां भगवान के दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके रथ यात्रा और रहस्यमयी तथ्यों की वजह से भी चर्चा में रहता है। इनमें मंदिर के चार दरवाजे और 22 सीढ़ियों का रहस्य सबसे अनोखा माना जाता है।

जगन्नाथ मंदिर के चार पवित्र द्वार

जगन्नाथ मंदिर के चार प्रमुख प्रवेश द्वार हैं, जो चारों दिशाओं में स्थित हैं। हर द्वार का अपना विशेष धार्मिक महत्व है।

सिंह द्वार (पूर्व दिशा) – यह मुख्य प्रवेश द्वार है, जो मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। इसके सामने अरुण स्तंभ स्थित है, जो श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत पूजनीय है।

अश्व द्वार (दक्षिण दिशा) – इसे विजय द्वार भी कहा जाता है। प्राचीन समय में योद्धा इस द्वार का उपयोग युद्ध में जीत की कामना के लिए करते थे।

हस्ति द्वार (पश्चिम दिशा) – इस द्वार का प्रतीक हाथी है और इसे समृद्धि और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है।

व्याघ्र द्वार (उत्तर दिशा) – इस द्वार का प्रतीक बाघ है, जो शक्ति और पराक्रम को दर्शाता है।

22 सीढ़ियों का अनोखा रहस्य

जगन्नाथ मंदिर के अंदर जाने के लिए श्रद्धालुओं को 22 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जिन्हें बैसी पहाचा कहा जाता है। इन सीढ़ियों का विशेष आध्यात्मिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि ये मानव जीवन की 22 कमजोरियों और बुराइयों का प्रतीक हैं। इन पर विजय पाने के बाद ही व्यक्ति मोक्ष की ओर बढ़ सकता है।

तीसरी सीढ़ी का विशेष महत्व

इन 22 सीढ़ियों में से तीसरी सीढ़ी को यम शिला कहा जाता है। मान्यता है कि इस सीढ़ी पर पैर रखने से यमलोक के दर्शन होते हैं। इसलिए मंदिर से वापस जाते समय भक्त इस पर पैर रखने से बचते हैं। कई लोग मानते हैं कि इस सीढ़ी पर पैर रखने से पुण्य खत्म हो जाते हैं। हालांकि, आज मंदिर में सिर्फ 18 सीढ़ियां ही दिखाई देती हैं। इन्हीं को पार करके भक्त भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन करने पहुंचते हैं।

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जगन्नाथ मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

इस मंदिर का इतिहास लगभग 1000 साल पुराना है। इसे 12वीं शताब्दी में गंग वंश के शासक अनंतवर्मन चोडगंग देव ने बनवाया था। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ की भक्ति और पूजा का प्रमुख केंद्र बना। जगन्नाथ मंदिर की एक खास विशेषता यह है कि यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां लकड़ी की बनी होती हैं। हर 12 से 19 साल के अंतराल में इन मूर्तियों को बदल दिया जाता है, जिसे नवकलेवर अनुष्ठान कहा जाता है। यह परंपरा इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है।

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