Shri Ram Brahmin division : कैसे बंटा ब्राह्मण समाज हिंदू धर्मग्रंथों में कई ऐसी घटनाएँ दर्ज हैं, जिनका समाज की परंपराओं पर गहरा असर पड़ा। उन्हीं में से एक है भगवान श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ से जुड़ी कथा। इस घटना ने ब्राह्मण समाज को दो हिस्सों में बाँट दिया सरयूपारीण ब्राह्मण और कान्यकुब्ज ब्राह्मण।
ब्राह्मणों का विभाजन कब और कैसे हुआ
प्राचीन समय में सभी ब्राह्मण एक ही समुदाय के रूप में जाने जाते थे। लेकिन जब भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद अश्वमेध यज्ञ किया, तो इस यज्ञ के दौरान ब्राह्मणों के बीच एक विवाद खड़ा हो गया।
यज्ञ में शामिल होने को लेकर हुआ मतभेद
कुछ ब्राह्मणों ने इस यज्ञ में भाग लेने से मना कर दिया। उनका तर्क था कि श्रीराम ने रावण का वध किया, जो कि ब्रह्महत्या के समान था। क्योंकि रावण जन्म से एक ब्राह्मण था, इस कारण उसके वध को अधर्म माना गया। ऐसे ब्राह्मणों ने भगवान राम के यज्ञ का भोजन भी स्वीकार नहीं किया।
दूसरी ओर, कुछ ब्राह्मणों का मानना था कि रावण ने अधर्म के रास्ते पर चलकर राक्षसी प्रवृत्तियों को अपना लिया था। इसलिए उसका वध धर्म-संगत था और इस यज्ञ में कोई दोष नहीं था। ऐसे ब्राह्मणों ने श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ में भाग लिया और प्रसाद भी ग्रहण किया।
कौन-कौन से ब्राह्मण थे शामिल
कान्यकुब्ज ब्राह्मण – ये वे ब्राह्मण थे, जिन्होंने रावण को अधर्मी मानकर यज्ञ में भाग लिया। उनका मत था कि केवल जन्म ब्राह्मण होने से ही कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता, उसके कर्म भी ब्राह्मणों जैसे होने चाहिए।
सरयूपारीण ब्राह्मण – ये वे ब्राह्मण थे, जिन्होंने रावण के वध को ब्रह्महत्या मानते हुए यज्ञ से दूरी बना ली। उन्होंने यज्ञ का भोजन भी ग्रहण नहीं किया।
सरयूपारीण ब्राह्मणों का नाम कैसे पड़ा?
कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने उन ब्राह्मणों को जो यज्ञ में शामिल नहीं हुए, सरयू नदी के पार जाकर बसने को कहा। इसी वजह से ये ब्राह्मण ‘सरयूपारीण ब्राह्मण’ कहलाए।
प्रमुख गोत्र और स्थान
सरयूपारीण ब्राह्मणों की कई शाखाएँ बनीं। इनमें प्रमुख गोत्र इस प्रकार हैं
शुक्ल
त्रिपाठी
मिश्र
पाण्डेय
पाठक
उपाध्याय
चतुर्वेदी
ओझा
ये ब्राह्मण मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड में निवास करते हैं।
समाज पर इसका असर
इस घटना के बाद ब्राह्मण समाज दो हिस्सों में बँट गया सरयूपारीण और कान्यकुब्ज। दोनों समुदायों की परंपराएँ और रीति-रिवाज समय के साथ अलग-अलग हो गए।
सरयूपारीण ब्राह्मणों ने धार्मिक शुद्धता और कठोर नियमों को अपनाया, जबकि कान्यकुब्ज ब्राह्मणों ने प्रशासन और राजकीय कार्यों में भागीदारी बढ़ाई।