Thandai drink होली का त्योहार नजदीक है और इसकी तैयारियां जोरों पर हैं। रंगों और गुलाल के साथ ही इस पर्व पर ठंडाई का भी ख़ास महत्व होता है। ठंडाई न सिर्फ मजेदार होती है बल्कि शरीर को ठंडक भी देती है। खासतौर पर उत्तर भारत में होली के मौके पर ठंडाई बनाना परंपरा का हिस्सा है। कई जगहों पर इसमें भांग मिलाने का भी रिवाज है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ठंडाई की शुरुआत कैसे हुई और इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व क्या है? आइए जानते हैं।
क्या है ठंडाई
ठंडाई एक पारंपरिक भारतीय पेय है, जो दूध, बादाम, सौंफ, काली मिर्च, इलायची और केसर जैसी ठंडी तासीर वाली सामग्रियों से बनाई जाती है। इसे पीने से शरीर को ठंडक मिलती है और पाचन तंत्र भी मजबूत होता है। खासकर गर्मी के मौसम में यह शरीर के लिए फायदेमंद मानी जाती है।
भगवान शिव से जुड़ा ठंडाई का इतिहास
ठंडाई का संबंध प्राचीन काल से है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव को ठंडाई बहुत प्रिय थी। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के अवसर पर जब भगवान शिव का माता पार्वती से विवाह हुआ, तो उनके गृहस्थ जीवन में प्रवेश की खुशी में ठंडाई का वितरण किया गया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
एक और मान्यता के अनुसार, होली के दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का संहार किया था। लेकिन इसके बाद वह अत्यधिक क्रोधित हो गए थे। उनके इस क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने शरभ अवतार लिया और उन्हें ठंडाई पिलाई। तभी से होली पर ठंडाई पीने की परंपरा शुरू हुई।
सेहत से भरपूर है ठंडाई
इतिहास बताता है कि ठंडाई 1000 ईसा पूर्व से प्रचलित है। मुगल काल में इसे शाही दरबारों में मेहमानों को परोसा जाता था। ठंडाई पीने से शरीर को ऊर्जा मिलती है, पाचन मजबूत होता है और इम्यूनिटी भी बढ़ती है। इसमें मौजूद मसाले शरीर को कई बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं। यही वजह है कि आज भी होली के मौके पर ठंडाई का विशेष महत्व बना हुआ है।
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