Vishnu and Asuras पौराणिक कथाओं में देवताओं और असुरों की शत्रुता का जिक्र मिलता है। आमतौर पर असुरों को भगवान शिव का भक्त माना जाता है, जबकि भगवान विष्णु देवताओं के संरक्षक माने जाते हैं। लेकिन कुछ असुर ऐसे भी थे, जिन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति को अपनाया और उनकी आराधना की। आखिर क्या कारण था कि ये असुर विष्णु की भक्ति में लीन हो गए? आइए जानते हैं।
असुर घोरा, विष्णु को प्रसन्न करने की तपस्या
घोरा नामक राक्षस असुर कुल में जन्मा था, लेकिन उसकी निष्ठा भगवान विष्णु के प्रति थी। उसका सपना पृथ्वी पर राज करने का था, लेकिन जब उसने देखा कि पृथ्वी तो शेषनाग के फनों पर टिकी हुई है और शेषनाग स्वयं भगवान विष्णु के अधीन हैं, तो उसे समझ आया कि अगर उसे पृथ्वी पर शासन करना है, तो विष्णु को प्रसन्न करना होगा। इस लक्ष्य को पाने के लिए घोरा ने कठोर तपस्या की। हजारों वर्षों की तपस्या के बाद भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। घोरा ने पृथ्वी का राजा बनने का वरदान मांगा। भगवान विष्णु ने उसे यह वरदान दिया, लेकिन शक्ति मिलने के बाद घोरा अत्याचार करने लगा। तब मां विंध्यवासिनी ने उसका वध कर पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त कराया।
राजा बलि, असुर होते हुए भी विष्णु भक्त
असुरों के राजा महाबली बलि दैत्य कुल से थे, लेकिन वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे। वे जब भी कोई यज्ञ या अनुष्ठान करते, तो सबसे पहले भगवान विष्णु को समर्पित करते थे।
एक बार, राजा बलि ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। देवताओं ने अपनी माता अदिति से सहायता मांगी। अदिति ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की, जिससे वे वामन अवतार में प्रकट हुए।
भगवान वामन ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि के पास पहुंचे और तीन पग भूमि दान में मांगी। बलि ने खुशी-खुशी स्वीकृति दे दी। लेकिन जैसे ही भगवान ने अपना विराट स्वरूप धारण किया, एक पग में पृथ्वी और दूसरे में आकाश नाप लिया। जब तीसरे पग के लिए कोई स्थान नहीं बचा, तो बलि ने अपना सिर आगे कर दिया।
बलि के इस समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया और उनकी रक्षा का वचन भी दिया।
शंखचूड़,विष्णु भक्त लेकिन शिव के हाथों मारा गया
शंखचूड़ नामक असुर, दैत्यराज दंभ का पुत्र था। उसके पिता ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या कर एक अजेय पुत्र का वरदान पाया था, जिसके बाद शंखचूड़ का जन्म हुआ। वह अत्यंत बलशाली और पराक्रमी था।
शंखचूड़ की विष्णु भक्ति गहरी थी। उसने कठिन तपस्या कर भगवान श्रीकृष्ण से “कृष्ण कवच” प्राप्त किया, जो उसे अजेय बना देता था। लेकिन जब उसने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया और देवताओं के खिलाफ युद्ध छेड़ा, तो देवताओं ने भगवान शिव से सहायता मांगी।
भगवान शिव ने युद्ध में शंखचूड़ को पराजित कर दिया, लेकिन “कृष्ण कवच” के कारण वे उसे मार नहीं पाए। तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का रूप धारण कर शंखचूड़ से उसका कवच दान में ले लिया। इसके बाद शिव ने उसका वध कर दिया। इसी कारण से शिव पूजा में शंख बजाना वर्जित माना जाता है।
इन पौराणिक कहानियों से पता चलता है कि असुरों और देवताओं की शत्रुता के बावजूद, कुछ असुरों ने भगवान विष्णु की भक्ति को अपनाया। उनके इस निर्णय के पीछे अलग-अलग कारण थे।किसी ने शक्ति पाने के लिए, तो किसी ने निष्ठा और समर्पण के कारण। लेकिन अंत में, अधर्म पर धर्म की जीत हुई और असुरों को उनके कर्मों का फल मिला।
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है news1india इन मान्यताओं की पुष्टि नहीं करता है, यहां पर दी गई किसी भी प्रकार की जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह अवश्य ले लें।