ओडिशा ट्रेन हादसे ने कई लोगों की जिंदगी की बदलकर रख दी। किसी का पूरा परिवार उजड़ गया तो किसी के सर से माता-पिता का साया उठ गया। इस हादसे में कई लोगों ने अपनों को खो दिया। हालांकि हादसे में कुछ ऐसे भी लोग है जो बुरी तरह से घायल होने के बावजूद जिंदगी की सबसे बड़ी जंग जीते हैं। इन लोगों में नाम आता है.. 24 साल के विश्वजीत मलिक का.. जो कि मुर्दाघर तक जाने के बाद अपने पिता की वजह से बच गया।
पिता ने छोड़ा बेटे को स्टेशन
एक रिपोर्ट के मुताबिक हादसे से कुछ घंटे पहले ही शालीमार स्टेशन से विश्वजीत के पिता कोरोमंडल एक्सप्रेस में बैठाकर आए। उन्हें क्या मालूम था कि उनका बेटा इतने बड़े रेल हादसे का शिकार हो जाएगा। कुछ घंटे बाद जब हीलाराम को अपने बेटे की खबर मिलती है तो वो पूरी तरह से टूट जाता है। बिना देरी किए हीलाराम ने बेटे को फोन मिलाया। बेटे ने भी जैसे-तैसे करके फोन उठाया।
बेटे ने की पिता से बात
फोन पर विश्वजीत चोटिल होने की वजह से ज्यादा कुछ तो नहीं बोला पाया लेकिन इतना अंदाजा लग गया था कि उनका बेटा अब ठीक नहीं है। इसके बाद बिना देरी किए उन्होंने स्थानीय एंबुलेंस ड्राइवर को बुलाया फिर अपने बहनोई दीपक दास के साथ बालासोर के लिए निकल गया।
मुर्दाघर में था बेटा
पिता घटनास्थल पर पहुंचने के बाद अपने बेटे की तलाश करता है। लेकिन विश्वजीत का कुछ पता नहीं चलता। पिता की उम्मीदें पूरी तरह से टूटने लगती है।लेकिन हीलाराम कहते रहते हैं कि उसका बेटे को कुछ नहीं हुआ है वो जिंदा है। उन्होंने घटनास्थल पर बेटे के बारे में पूछताछ की और अस्थायी मुर्दाघर पहुंचे। हादसे में जिन लोगों की जान चली गई थी उनके शव अस्थायी मुर्दाघर में रखे गए थे।
पिता जैसे-तैसे स्थायी मुर्दाघर पहुंचे, पहले तो उन्हें किसी ने अंदर आने की अनुमति नहीं दी तभी थोड़ी देर बाद किसी की नजर एक पीड़ित पर पड़ी जिसका हाथ मूव कर रहा था। हीलाराम ने हाथ देखा तो वो उन्हें उनका बेटा लगा, जोकि सचमुच उनका ही बेटा था। बिना देरी किए वो विश्वजीत को तुरंत वहां से निकालकर बालासोर के सरकारी अस्पताल लेकर पहुंचे।चोट ज्यादा लगने की वजह से डॉक्टरों ने उन्हें कटक मेटिकल कॉलेज रेफर कर दिया। कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल में पीड़ित का इलाज चल रहा है।