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इंटरस्टेलर धूमकेतु 3I/ATLAS की दुर्लभ एंटी-टेल और हिलते जेट्स ने खोले नए राज

इंटरस्टेलर धूमकेतु 3I/ATLAS ने अपनी सूर्य की ओर दिखने वाली दुर्लभ एंटी-टेल और हिलते हुए जेट्स के जरिए खगोल विज्ञान में एक नया अध्याय जोड़ा है। इसके घूमने की अवधि, जेट्स की गतिविधि और पूंछ में आए बदलावों ने वैज्ञानिकों को किसी दूसरे तारकीय तंत्र से आए पिंड को करीब से समझने का अनोखा मौका दिया है।

Deepali Kaur by Deepali Kaur
December 27, 2025
in Tech
3I-Atlas

3I-Atlas

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अंतरिक्ष में घूमते धूमकेतु आमतौर पर सूर्य से दूर की ओर अपनी पूंछ दिखाते हैं। लेकिन इंटरस्टेलर धूमकेतु 3I/ATLAS ने इस नियम को तोड़ते हुए वैज्ञानिकों को एक अनोखा नज़ारा दिखाया है। यह धूमकेतु, जो हमारे सौर मंडल से बाहर से आया है, अब भले ही पृथ्वी से दूर जाता दिख रहा हो, लेकिन इसकी गतिविधियां खगोल वैज्ञानिकों के लिए बेहद खास जानकारी लेकर आई हैं।
इस धूमकेतु में सूर्य की ओर दिखाई देने वाली दुर्लभ “एंटी-टेल” और उसमें मौजूद हिलते हुए जेट्स ने पहली बार किसी इंटरस्टेलर वस्तु के अंदरूनी व्यवहार को समझने का मौका दिया है।

इंटरस्टेलर धूमकेतु 3I/ATLAS क्या है?

3I/ATLAS अब तक पहचाना गया तीसरा इंटरस्टेलर ऑब्जेक्ट है, जो किसी दूसरे तारकीय तंत्र से निकलकर हमारे सौर मंडल से गुज़रा है।
इस तरह के पिंड बहुत ही दुर्लभ होते हैं और ये हमें दूसरे ग्रह प्रणालियों के बनने और विकसित होने की झलक दिखाते हैं।

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सूर्य की ओर दिखने वाली “एंटी-टेल” क्यों है खास?

आमतौर पर धूमकेतु की पूंछ सूर्य से उल्टी दिशा में होती है, क्योंकि सौर पवन और विकिरण गैस व धूल को पीछे की ओर धकेल देते हैं।
लेकिन 3I/ATLAS में जो देखा गया, वह बिल्कुल अलग था।

एंटी-टेल की खास बातें:

  • यह पूंछ सूर्य की दिशा में दिखती है

  • लंबाई लगभग 10 लाख किलोमीटर (6.2 लाख मील) तक फैली

  • यह बहुत कम मामलों में दिखाई देती है, जब धूल का फैलाव खास कोण पर होता है

हिलते हुए जेट्स ने क्या नया राज खोला?

शोधकर्ताओं ने पाया कि एंटी-टेल में मौजूद गैस और धूल के जेट्स हर 7 घंटे 45 मिनट में हिलते (wobble) नजर आए।

इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि:

  • धूमकेतु का बर्फीला केंद्र (न्यूक्लियस)

  • हर 15 घंटे 30 मिनट में एक पूरा चक्कर लगाता है

यह जानकारी इसलिए अहम है क्योंकि इससे पहली बार किसी इंटरस्टेलर धूमकेतु के घूर्णन (rotation) को सीधे मापा जा सका।

कैसे की गई 3I/ATLAS की निगरानी?

एक वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार, इस धूमकेतु का अध्ययन जुलाई से सितंबर 2025 के बीच किया गया।

अवलोकन से जुड़ी मुख्य जानकारियां:

  • कुल 37 रातों तक निगरानी

  • स्थान: कैनरी द्वीप समूह में स्थित Teide Observatory

  • उपकरण: Two-meter Twin Telescope

  • अवधि: 2 जुलाई से 5 सितंबर 2025

धूमकेतु की पूंछ में कैसे आया बदलाव?

जैसे-जैसे 3I/ATLAS सूर्य के करीब पहुंचा, इसकी संरचना में साफ बदलाव दिखा।

क्रमिक बदलाव:

  1. शुरुआत में सूर्य की ओर फैला हुआ धूल का पंख (dust fan)

  2. सूर्य के नज़दीक आते ही एक साफ और मजबूत एंटी-सोलर टेल

  3. 30 अक्टूबर 2025 को सूर्य से लगभग 21 करोड़ किलोमीटर की दूरी

अगस्त 2025 की खास खोज

अगस्त 2025 में सात अलग-अलग रातों में हिलते हुए जेट्स साफ तौर पर देखे गए।
यह पहली बार था जब किसी इंटरस्टेलर धूमकेतु में इस तरह के आउटगैसिंग जेट्स का इतना विस्तार से अध्ययन किया गया।

पृथ्वी के पास से कब गुज़रा 3I/ATLAS?

  • 19 दिसंबर 2025 को

  • पृथ्वी से न्यूनतम दूरी: लगभग 27 करोड़ किलोमीटर (168 मिलियन मील)

हालांकि यह दूरी खगोलीय रूप से सुरक्षित थी, लेकिन अवलोकन के लिए काफी उपयुक्त मानी गई।

वैज्ञानिकों के लिए क्यों है यह खोज इतनी अहम?

3I/ATLAS जैसा धूमकेतु हमें सीधे तौर पर यह समझने में मदद करता है कि:

  • दूसरे ग्रह तंत्रों में धूमकेतु कैसे बनते हैं

  • बर्फ, गैस और धूल की संरचना कैसी होती है

  • सौर मंडल के बाहर के पिंड सूर्य के पास आने पर कैसे व्यवहार करते हैं

भविष्य में ऐसे अध्ययन ग्रह निर्माण और ब्रह्मांड की उत्पत्ति को समझने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

FAQs

1. इंटरस्टेलर धूमकेतु क्या होता है?

इंटरस्टेलर धूमकेतु वह पिंड होता है जो हमारे सौर मंडल के बाहर किसी दूसरे तारकीय तंत्र से आता है।

2. 3I/ATLAS को खास क्यों माना जा रहा है?

क्योंकि इसमें सूर्य की ओर दिखने वाली एंटी-टेल और हिलते हुए जेट्स देखे गए, जो बहुत दुर्लभ हैं।

3. एंटी-टेल सामान्य पूंछ से कैसे अलग है?

सामान्य पूंछ सूर्य से दूर होती है, जबकि एंटी-टेल सूर्य की दिशा में दिखाई देती है।

4. 3I/ATLAS पृथ्वी के कितने करीब आया था?

यह 19 दिसंबर 2025 को पृथ्वी से लगभग 27 करोड़ किलोमीटर की दूरी से गुज़रा।

5. इस खोज से भविष्य में क्या फायदा होगा?

इससे वैज्ञानिकों को ग्रह निर्माण, धूमकेतुओं की संरचना और दूसरे तारकीय तंत्रों की समझ बेहतर होगी।

Tags: 3I/ATLAS
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Deepali Kaur

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