लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। दिवाली के बाद छठ महापर्व की रौनक पूरे देश में हैं। बाजार गुलजार हैं तो वहीं तालाब, नहर और गंगा घाटों की सफाई का कार्य जोरों पर चल रहा है। इस बार 7 नवंबर से छठ पूजा की शुरुआत होगी और 10 नवंबर को इसका समापन होगा। छठ पूजा के दिन भगवान सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा होती है। इस दौरान 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास रखा जाता है। ऐसे में हम आपको एक ऐसे मंदिर से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसका निर्माण खुद भगवान विश्वकर्मा ने करीब डेढ़ लाख वर्ष पहले किया था। ये मंदिर भगवान सूर्य का है। छठ महापर्व पर यहां भक्तों का जनसैलाब उमड़ता है और हर मन्नत पूरी होती है।
देश ही नहीं विदेशों में मनाया जाता है छठ पर्व
छठ पूजा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा का पर्व मनाया जाता है। कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि को पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पर्व यूपी, बिहार से लेकर पूरी दुनिया में मनाया जाता है। छठ के पर्व में उगते और डूबते हुए सूर्य दोनों को अर्घ्य देते हैं। छठ महापर्व में विशेष रूप से भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। ऐसे में हम आपको बिहार स्थित भगवान सूर्य के मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो डेढ़ लाख वर्ष प्राचीन है।
बिहार के औरंगाबाद में हैं भगवान सूर्य का मंदिर
बिहार के औरंगबाद जिले में भगवान सूर्य का प्राचीन मंदिर, जो लोगों के आस्था का केंद्र है। छठ महापर्व पर इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है। इस मंदिर में छठ पूजा करने के लिए यहां पर बिहार के अलावा कई राज्यों के लोग आते हैं। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, इस प्राचीन सूर्य मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने खुद एक रात में किया था। देश का यह पहला ऐसा मंदिर है जिसका दरवाजा पश्चिम दिशा की तरफ है। इस मंदिर में सात घोड़े वाले वाले रथ पर भगवान सूर्य सवार हैं। यहां पर भगवान सूर्य के तीन रूपों की प्रतिमा विराजमान है। जिसमें उदयाचल-प्रातः सूर्य, मध्याचल मध्य सूर्य और अस्ताचल अस्त सूर्य के रूप में प्रतिमा स्थापित है।
इसी मंदिर से हुई थी छठ पूजा की शुरूआत
बताया जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत यहीं से हुई थी। छठ पूजा में इस मंदिर का काफी महत्व है। मंदिर की सुंदरता और भव्यता से प्रभावित होकर दूर-दूर से श्रद्धालु यहां अर्घ्य देने आते हैं। छठ के अवसर पर इस मंदिर में रौनक रहती है और प्रखंड के विभिन्न गांवों से छठ व्रती यहां अर्घ्य देने आते हैं। इस मंदिर में भगवान श्री राम और सीता मैया की मूर्तियां भी स्थापित हैं। कचनार गांव के छठ घाट पर करीब 462 छोटे-छोटे सिरसोता बनाए गए हैं, जो यहां के छठ पर्व का अनूठा पहलू है। इस इलाके में इन आकृतियों को छठ माता की प्रतिमा माना जाता है। ये सभी आकृतियां एक जैसी दिखती हैं. इनका आकार एक जैसा ही है।
मंदिर करीब एक सौ फीट ऊंचा
यह मंदिर करीब एक सौ फीट ऊंचा है। इसके साथ ही यह प्राचीन मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। आयताकार, वर्गाकार, अर्द्धवृत्ताकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार पत्थर से इस मंदिर को बनाया गया है। इसके निर्माण में गारा या सीमेंट का इस्तेमाल नहीं हुआ है। अभी तक यह रहस्य है कि इस मंदिर का एक रात में कैसे निर्माण किया गया। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि यहां पर जो भक्त आता है, उसकी हर मन्नत भगवान सूर्य पूरी करते हैं। पुजारियों के मुताबिक, इसी मंदिर से छठ मैया की पूजा का आगाज हुआ था। छठ पर्व पर लाखों भक्त मंदिर पहुंचते हैं।