IDBI Bank Privatisation: सरकार अब IDBI बैंक लिमिटेड में अपनी 60.72% हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया में तेज़ी ला रही है, जिसका मूल्य वर्तमान बाज़ार मूल्य के अनुसार लगभग $7.1 बिलियन (लगभग 60 हज़ार करोड़ रुपये) है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों के अनुसार, संभावित खरीदारों के साथ बातचीत एडवांस स्टेज पर है और बोली लगाने की प्रक्रिया इसी महीने से शुरू की जा सकती है। यदि यह सौदा सफल होता है, तो यह दशकों बाद किसी सरकारी बैंक का पहला निजीकरण होगा और विनिवेश को बढ़ावा देने के सरकार के लंबे समय से चल रहे प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। हाल के वर्षों में पूंजीगत समर्थन और सक्रिय वसूली के कारण बैंक ने अपनी खराब वित्तीय हालत से उबरकर मुनाफा कमाना शुरू कर दिया है।
सरकार का लक्ष्य है कि यह निजीकरण की प्रक्रिया मार्च 2026 तक पूरी कर ली जाए। इस दौरान, कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड, एमिरेट्स NBD PJSC, और फेयरफैक्स फाइनेंशियल होल्डिंग्स लिमिटेड जैसे प्रमुख बिडर्स ने बैंक को खरीदने में रुचि दिखाई है।
बोली और हिस्सेदारी का विवरण
केंद्र सरकार और भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) की IDBI Bank में कुल हिस्सेदारी लगभग 95% है। इस निजीकरण के तहत, सरकार अपनी 30.48% हिस्सेदारी बेचेगी, जबकि LIC मैनेजमेंट कंट्रोल के ट्रांसफर के साथ अपनी 30.24% हिस्सेदारी बेचेगी। शॉर्टलिस्ट किए गए बोलीदाता (बिडर्स) वर्तमान में बैंक की ड्यू डिलिजेंस (गहन जांच) कर रहे हैं। हालांकि रेगुलेटरी अप्रूवल में देरी जैसी चुनौतियों के कारण सरकार पिछली डेडलाइन चूक गई थी, अब उम्मीद है कि 2026 तक यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
ग्राहकों पर क्या होगा असर?
IDBI Bank के निजीकरण और निजी बैंक बनने से बैंक के खाताधारकों पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा। बैंक खाते, जमा रकम और ऋण (लोन) की शर्तें जस का तस बनी रहेंगी। वास्तव में, निजीकरण के बाद ग्राहकों को बेहतर और उन्नत सुविधाएँ मिलने की संभावना है। हालांकि, कुछ छोटे-मोटे प्रशासनिक बदलाव हो सकते हैं, जैसे कि लॉगिन आईडी में परिवर्तन या चेकबुक/पासबुक में अपडेट। आने वाले समय में इस घटनाक्रम का असर बैंक के शेयरों पर भी देखने को मिल सकता है।



