सम्राट चौधरी खुद एक बिटिया के पिता हैं. पहली बार जब उनका बयान सुना तो भरोसा ही नहीं हुआ. एक सूबे के उपमुख्यमंत्री का यह स्तर है?
सम्राट चौधरी का विवादित बयान
बिहार(Bihar) के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनकी बेटी को लेकर विवादित बयान दिया है. उन्होंने लालू प्रसाद यादव पर चुनावी टिकट बेचने में माहिर होने और इस प्रक्रिया में अपनी बेटी को भी नहीं बख्शने का आरोप लगाया. उन्होंने आरोप लगाया कि यादव ने उससे किडनी लेने के बाद उसे चुनाव का टिकट दिया1. इस बयान ने काफी चर्चा और विवाद को जन्म दिया है।
भारतीय राजनीति का आदर्श इतिहास
भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत उसका राजनीतिक शिष्टाचार रहा था. आपस में कितने भी राजनीतिक मतभेद रहे हों, लेकिन आपसी रिश्तों में मर्यादा को सडकों पर नहीं उछाला गया. राम मनोहर लोहिया का ताजिंदगी नेहरु के साथ राजनीतिक मतभेद रहा. लेकिन इंदिरा को वो अपनी बेटी की तरह मानते रहे.
जेपी और इंदिरा के रिश्ते
आपातकाल के बाद इंदिरा सत्ता से बाहर हुईं. खुद की सीट तक नहीं बचा पाई. लेकिन जब पता चला कि जेपी बीमार हैं तो उनसे मिलने पहुंच गई. जेपी ने अपनी तबियत का हाल बताने से पहले इंदिरा से उनकी खैर जानी. पूछा ,” घर का खर्च, बच्चों की पढ़ाई कैसे चल रही है.” इंदिरा ने जवाब दिया, “पापा की लिखी किताबों की रोयल्टी मिल जाती है.”
दोनों एक-दूसरे को देखकर रोते रहे.
1984 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से चुनाव लड़ने की घोषण कर चुके थे. आडवाणी ने उनसे कहा कि उन्हें रोकने के लिए कांग्रेस माधवराव सिंधिया को मैदान में उतारने जा रही है. अटल ने कहा, “मेरी बात सिंधिया से हो गई है. वो गुना से चुनाव लड़ेंगे.” आडवाणी कहा कि अगर राजीव गाँधी कहेंगे तो माधव राव को ग्वालियर से चुनाव लड़ना ही पड़ेगा. अटल ने जवाब दिया, “तब तो मैं ग्वालियर से ही चुनाव लडूंगा. अगर मैं वहां से हटा तो राजमाता खुद मैदान में उतर जाएंगी. ऐसे में मां-बेटे के मतभेद सड़क पर आ जाएँगे. अटल राजमाता को अपनी मां की तरह मानते थे. अपनी सांसदी से ज्यादा उन्होंने उस परिवार की इज्जत का ख्याल किया, जिसने 1940 वजीफा देकर उन्हें कानपुर पढने भेजा था.
शिवपुरी की 20 वर्षीय काव्या धाकड़: अपने ही अपहरण का झूठा नाटक
कई उदाहरण
नेहरु, अटल, लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, मुलायम सिंह यादव, फारुख अब्दुल्लाह, वीपी सिंह, राजीव गाँधी, चंद्रशेखर, भैरो सिंह शेखावत,लालू प्रसाद यादव,नरसिम्हा राव. मैं दर्जनों ऐसे नाम गिना सकता हूँ जो सुख-दुःख में राजनीतिक मतभेद भुलाकर एक आचे दोस्त की तरह अपने राजनीतिक विरोधियों के साथ खड़े रहे. यह हमारे लोकतंत्र की परम्परा रही है.