नई दिल्ली: आज सोमवार 5 अगस्त को भारतीय शेयर बाजार में 4 साल की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली है। आखिर शेयर मार्केट का क्या होगा ? ये वो सवाल है जो अब रिटेल निवेशकों के मन में बड़ी तेजी से कोंद रहा है, लेकिन सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कई बड़े देश शेयर बाजार की इस गिरावट को झेल रहे हैं।
अमेरिका और जापान जैसे संपन्न देश भी शेयर मार्केट में आई इस गिरावट से खुद को बचा नहीं पाए हैं। आज 5 अगस्त सोमवार का दिन पूरी दुनिया के लिए ब्लैक मंडे बनकर सामने आया है। आखिर ऐसा क्यों और क्या हुआ है, जिससे दुनिया के कई बड़े देशों में शेयर बाजार में भारी गिरावट देखने को मिल रही है।
बीते 2 अगस्त 2024 को अमेरिका में नौकरी से जुड़े आंकड़े जारी किए गए थे। इन आंकड़ो में लोगों को उम्मीद के मुताबिक जॉब न मिलने से बेरोजगारी दर को पिछले 3 साल के हाई पर जाते हुए देखा जा रहा है। इन सभी रिपोर्टों के मुताबिक, अमेरिका में एक बार फिर मंदी की आशंका ने जोर पकड़ लिया है।
यूएस फ्यूचर्स से अब तक इस बात का संकेत मिल रहा है कि बाजार में आई गिरावट फिलहाल रुकने वाली नहीं है। हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में बाजार धड़ाम हो गया है। अमेरिका के शेयर बाजार में आई गिरावट का असर अब कई देशों पर भी देखने को मिल रहा है। बता दें, जब अमेरिका के बाजारों में मंदी आती है तो, इसे ग्लोबल मंदी के तौर पर देखा जाता है।
वहीं अमेरिकी बाजार में गिरावट के बाद जापान के शेयर बाजार में भी इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली है। जापान का बेंचमार्क निक्केई 225 इंडेक्स 4,451 अंक की गिरावट के साथ बंद हुआ। यह अंक के हिसाब से इसकी अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। जापान के बाद कोरिया की शेयर मार्केट में भारी गिरावट देखने को मिली है। ताइवान भी शेयर मार्केट की इस गिरावट से खुद को नहीं बचा सका है। ताइवान का इंडेक्स भी 8.4% गिरकर बंद हुआ, जो इसकी अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है।
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अब ये भ जान लीजिए आखिर इतनी बड़ी गिरावट क्यों और कैसे आई। इंडिया में शेयर मार्केट में भारी गिरावट के लिए जहां अमेरिका ने विलेन का रोल प्ले किया, तो वहीं जापान में ऐतिहासिक गिरावट के लिए 3 विलेन जिम्मेदार रहे। येन में उछाल, सख्त मौद्रिक नीति और अमेरिका में मंदी। इन तीन वजहों ने जापान का मार्केट पूरी तरह से तोड़ दिया। इन कारणों की वजह से जापान में निवेशकों का भरोसा टूटा जिसके बाद जापान के इक्विटी बेंचमार्क पिछले महीने की रिकॉर्ड ऊंचाई से लगभग 20 प्रतिशत तक नीचे गिर गए।