भगत सिंह(bhagat singh) का कोई वीडियो उपलब्ध नहीं है.जो हैं वो ले देकर चार फोटो हैं.यदि कोई फोटो या वीडियो होगा तो उनके संबंधियों या पुलिस रिकॉर्ड में हो सकता है जिनके सार्वजनिक होने की सूचना अब तक उपलब्ध नहीं है.जो चार तस्वीरें भगत सिंह की हमने देखी हैं उनके बारे में थोड़ी जानकारी साझा की जानी चाहिए .
यहां पहली फोटो जो आप देख रहे हैं
वो 11 साल के भगत सिंह की है. साल 1907 में उनका जन्म हुआ था तो इस हिसाब से 1918 के आसपास ली गई होगी.
दूसरी फोटो दरअसल एक ग्रुप फोटो है.
वहां से केवल भगत सिंह का धड़ से ऊपर का हिस्सा एडिट करके छापा गया है. मैं कमेंट बॉक्स में उस ग्रुप फोटो को अपलोड भी करूंगा तब देखिएगा. इस फोटो में भगत के केश लंबे हैं. ट्रिब्यून अखबार ने इस फोटो को 13 अप्रैल 1929 में प्रकाशित किया था यानि असेंबली कांड से जुड़ी खबरें छापने के सिलसिले में. मूल फोटो लाहौर सेंट्रल कॉलेज में 1924 में खींची गई थी यानि भगत 17 साल के थे. इस फोटो के बारे में कामा मैकक्लीन ने भी अपनी किताब में लिखा है.
तीसरी फोटो एक खाट पर बैठे भगत सिंह की है.
इसके बारे में कई तरह के भ्रम हैं. कुछ लोग कहते हैं कि ये फांसी से पहले की है लेकिन ऐसा नहीं है. अपने जीवन में भगत दो बार गिरफ्तार हुए थे. एक गिरफ्तारी के बारे में हम सब जानते हैं लेकिन सबसे पहली गिरफ्तारी के विषय में उतनी जानकारी नहीं है. साल 1926 का दशहरा था. किसी ने बम विस्फोट कर दिया. पुलिस ने शक में कई लोगों को पकड़ा जिनमें भगत सिंह भी थे. साल 1927 की 29 मई को वो लाहौर थाने ले आए गए. यशपाल ने भी अपनी किताब में इसका वर्णन किया है. इसके अलावा प्रोफेसर चमनलाल ने फ्रंटलाइन पत्रिका के एक लेख में भी इस घटना से जुड़े कुछ खतों के बारे में लिखा है. भगत सिंह को करीब पांच हफ्ते कोठरी में रहना पड़ा और फिर पुलिस ने कोर्ट में पेश किए बिना उन्हें करीब चालीस हज़ार की भारी भरकम जमानत पर छोड़ दिया. फोटो में भगत 20 साल के नौजवान हैं. जगह लाहौर का पुलिस थाना है. साथ में बैठे हैं गोपाल सिंह पन्नू जिनके पास लाहौर में सीआईडी के डीएसपी की ज़िम्मेदारी थी. फोटो चुपके से लिया गया है.
चौथा और अंतिम फोटो
21 साल के भगत सिंह ने खुद ही दिल्ली के रामनाथ फोटोग्राफर्स से अप्रैल 1929 में खिंचवाया था. उनके साथ बटुकेश्वर दत्त ने भी एक फोटो खिंचवाया था. केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के बाद इन तस्वीरों को ही क्रांतिकारियों ने प्रसारित किया. इन फोटो को खिंचवाने का मूल उद्देश्य भी यही था. इस फोटो में भगत के लंबे बाल गायब हैं क्योंकि वो फिरोज़पुर में कटवा चुके थे. मैकक्लीन ने इस तस्वीर पर भी काफी लिखा है.
भगत सिंह की बंदूक
भगत सिंह की बंदूक, जिसका उपयोग ब्रिटिश अधिकारी जॉन सॉंडर्स की हत्या के लिए किया गया था, अब बीएसएफ के इंदौर के हथियार और तूपखाने के म्यूजियम में पहली बार प्रदर्शित किया गया है। यह .32 मिमी कॉल्ट ऑटोमैटिक पिस्तौल भगत सिंह की थी और इसका इतिहास का कोई उल्लेख नहीं था। यह आइटम बीएसएफ के केंद्रीय हथियार और तूपखाने के म्यूजियम में प्रदर्शित था
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एक मज़ेदार तथ्य है।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के नाम में ‘सोशलिस्ट’ जोड़ने और उसका लक्ष्य समाजवादी समाज की स्थापना का प्रस्ताव जब भगत सिंह ले आए तो सिर्फ़ दो लोगों ने उसका विरोध किया था। दोनों ने बाद में ग़द्दारी की और भगत सिंह की फाँसी का कारण बने। इनमें पहला ग़द्दार था जयगोपाल और दूसरा हंसराज बोहरा। दोनों भगत सिंह के क़रीबी रहे थे और सांडर्स हत्या में सहभागी भी। जयगोपाल को बीस हज़ार रुपए इनाम मिले थे। हंसराज बोहरा ब्रिटिश सरकार की सहायता से अमेरिका चला गया और बड़ा पत्रकार हो गया।
सरकारों को नसीहत
इस देश में जो सरकार भगत सिंह से प्रेम करती हो, वो बस एक काम करे। भगत सिंह के लेखों को 9वीं से 12वीं के पाठ्यक्रम में शामिल कर दे। मैं नास्तिक क्यों हूँ, अछूत समस्या, साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज, विद्यार्थी और राजनीति… इनमें से कोई भी लेख स्कूली पढ़ाई का हिस्सा बनाया जाए।
कहाँ है समाधि?
1974 :: पंजाब के हुसैनीवाला में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की समाधि, जहां 1931 में उनका अंतिम संस्कार किया गया था
विभाजन के दौरान हुसैनीवाला पाकिस्तान का हिस्सा बन गया लेकिन 1961 में इसे भारत को वापस कर दिया गया जब भारत ने हुसैनीवाला के बदले में 12 गाँव दिए।
नेहरू और सुभाष चंद्र बोस:
भगत सिंह ने नेहरू और सुभाष चंद्र बोस को “दोनों अनुग्रही भारतीय स्वतंत्रता के अभियान के अनुग्रही चैम्पियन” कहा।
वे दोनों ही भारतीय स्वतंत्रता के प्रति अपनी निष्ठा और बलिदान के लिए प्रसिद्ध थे 1.
महात्मा गांधी:
भगत सिंह ने गांधीजी की अहिंसा के प्रति निष्ठा की तारीफ की, लेकिन उन्होंने उनके विचारों की अपनी निष्ठा के साथ तुलना की 2.
डॉ. बी. आंबेडकर:
भगत सिंह ने अपने विचारों में आंबेडकर को नहीं उल्लेख किया है, लेकिन उनके विचारों में समाजवादी दृष्टिकोण की निष्ठा दिखती है 3.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS):
भगत सिंह ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ने के लिए अपनी जान की क़ुर्बानी दी, जबकि RSS ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया।
उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को कमजोर करने में ब्रिटिश शासकों की मदद की और जनता को धार्मिक रूप से विभाजित करने में RSS का योगदान देखा
भगत सिंह की क्रांति और मृत्यु पर RSS और अम्बेडकर ने क्या कहा?
आरएसएस:
* RSS ने भगत सिंह को “देशभक्त” और “शहीद” घोषित किया।
* उन्होंने उनकी “कुर्बानी” और “शौर्य” की प्रशंसा की।
* आरएसएस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके संघर्ष का समर्थन किया।
अम्बेडकर:
* अम्बेडकर ने भगत सिंह को “युग पुरुष” और “क्रांतिकारी” बताया।
* उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके साहस और बलिदान की सराहना की।
*लेकिन, उन्हें हिंसा का प्रयोग नापसंद था।
दोनों ने भगत सिंह की देशभक्ति और साहित्यिक भावना की प्रशंसा की।
हालाँकि, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन प्राप्त करने के साधन के रूप में हिंसा पर अंबेडकर और आरएसएस के विचार अलग-अलग थे।
यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आरएसएस और अम्बेडकर के विचारों की अलग-अलग लोगों द्वारा अलग-अलग व्याख्या की जा सकती है।
आरएसएस प्रमुख गोलवलकर ने भगत सिंह की निंदा की.
गोलवलकर ने अपनी 1939 की पुस्तक “बंच ऑफ थॉट्स” में भगत सिंह और राजगुरु को “टंकवादी” और “धोखेबाज़” के रूप में चित्रित किया था।
उन्होंने यह भी कहा कि उनकी कहानी “भ्रमित” और “असफल” थी।
गोलवलकर के बयान की व्यापक आलोचना हुई और भगत सिंह और उनके साथियों के व्यवहार को बेतुका और अज्ञानता से भरा माना गया।
बाद में आरएसएस ने खुद को बयान से अलग कर लिया और कहा कि इसे “गलत अर्थ” दिया गया।
लेकिन, यह स्पष्ट नहीं है कि आरएसएस ने गोलवलकर के विचारों को पूरी तरह से खारिज कर दिया था या नहीं.
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भगत सिंह पर गोलवलकर के विचारों पर अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। कुछ का मानना है कि उनकी आलोचना कठोर और अनुचित थी, जबकि अन्य का मानना है कि वह अपनी वास्तविक मान्यताओं को व्यक्त कर रहे थे।
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नेहरू और गांधी कभी भगत सिंह से जेल में नहीं मिले और कभी भी उनके दर्शन का विरोध नहीं किया:
यह सच नहीं है।
भगत सिंह और उनके साथियों की फाँसी रुकवाने के लिए नेहरू और गाँधी दोनों ने प्रयास किये थे।
यहाँ कुछ तथ्य हैं:
नेहरू:
*नेहरू ने 26 फरवरी, 1931 को वायसराय लॉर्ड इरविन को पत्र लिखकर भगत सिंह की मौत की सजा माफ करने का अनुरोध किया था।
* उन्होंने गांधीजी से भगत सिंह के लिए हस्तक्षेप करने का भी अनुरोध किया था।
गांधी:
* गांधी जी ने 18 फरवरी, 1931 को वायसराय से भगत सिंह की फाँसी की सजा माफ करने को कहा था।
* 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फाँसी के दिन उन्होंने ‘एक दिवसीय उपवास’ रखा।
हालाँकि, इन प्रयासों के बावजूद, भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च, 1931 को फाँसी दे दी गई।
यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:
* भगत सिंह की हिंसक गतिविधियों से नेहरू और गांधी सहमत नहीं थे।
* उनका मानना था कि आजादी सत्याग्रह और अहिंसा के जरिए हासिल की जानी चाहिए।
लेकिन, उन्होंने भगत सिंह की देशभक्ति और बलिदान का सम्मान किया और उनकी फांसी को रोकने के लिए अपनी शक्ति के अनुसार प्रयास किया।
भगत सिंह लाला लाजपत राय से नाराज़ नहीं थे, बल्कि निराश थे।
लाला लाजपत राय जी ने साइमन कमीशन के विरुद्ध आंदोलन में बल का प्रयोग नहीं किया और केवल शांतिपूर्ण विरोध का आह्वान किया था। उनका यह भी मानना था कि लाला लाजपत राय ने धर्म की राजनीति करना शुरू कर दिया था, जो उनके स्वतंत्रता संग्राम के सिद्धांतों के विरुद्ध था।
भगत सिंह की निराशा के कारण:
*साइमन कमीशन के विरुद्ध आन्दोलन में शक्ति का प्रयोग
*धर्म की राजनीति करना शुरू करो
*युवाओं को प्रेरित करना
लाला लाजपत राय के कार्यों के कारण:
*साइमन कमीशन का विरोध करना
*प्रति बच्चा हिंदू-मुस्लिम समानता
*आर्य समाज के कार्यकर्ताओं को प्रेरित करना
*लाला लाजपत राय के मार्गदर्शन में भगत सिंह और उनके साथियों ने आंदोलन में शक्ति का प्रयोग करना शुरू कर दिया।
*लाला लाजपत राय जी की मृत्यु के बाद भगत सिंह ने उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप सॉन्डर्स की हत्या कर दी।
यह एक जटिल रिश्ता था जिसमें निराशा, कार्रवाई और देशभक्ति शामिल थी।
नेहरू को लेकर भगत सिंह ने स्वयं कहा था कि वे प्रशंसक हैं।
28 फरवरी 1931 को उन्होंने अपने वकील एपी सिंह के माध्यम से एक बयान दिया जिसमें उन्होंने कहा:
> “मैं एक क्रांतिकारी हूं और क्रांति के लिए समर्पित हूं। मुझे अपने किए पर पछतावा नहीं है और मैं सिर्फ अपने किए के लिए मिलना चाहता हूं।”
,
उन्होंने माफ़ी मांगने से भी इनकार कर दिया.
17 मार्च 1931 को उन्होंने अपने सहायक राजगुरु को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने कहा:
> “मैं ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ रहा हूं और मैं इसका पालन नहीं करूंगा। मैं अपनी जान दे दूंगा, लेकिन मैं कभी नहीं झुकूंगा।”
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23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी गई। उनकी शहादत ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को नई गति दी और आज भी वह देश के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।
भगत सिंह ने नेहरू को सुभाष चंद्र बोस से ज्यादा बेहतर क्यों बताया था?
भगत सिंह ने 1930 में जेल से नेहरू को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने नेहरू को सुभाष चंद्र बोस से बेहतर बताया था। इसके कुछ कारण थे:
1. कार्यप्रणाली:
* भगत सिंह ने नेहरू की संवैधानिक कार्यप्रणाली को क्रांतिकारी विचारधारा के अनुकूल माना।
* उन्होंने बोस की सशस्त्र क्रांति की विचारधारा को अवास्तविक और नुकसानदायक बताया।
2. नेतृत्व:
* भगत सिंह ने नेहरू को एक प्रभावशाली नेता माना, जिसके पास जनता को एकजुट करने की क्षमता थी।
* उन्होंने बोस को अहंकारी और अविश्वसनीय बताया।
3. लक्ष्य:
* भगत सिंह का मानना था कि नेहरू का लक्ष्य, स्वतंत्र भारत, उनका भी लक्ष्य था।
* उन्होंने बोस के अलग-अलग लक्ष्यों को राष्ट्र के लिए खतरा माना।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह भगत सिंह की व्यक्तिगत राय थी।
इत अन्य विचार:
* कुछ इतिहासकारों का मानना है कि भगत सिंह ने पत्र में अपनी भावनाओं को व्यक्त किया था, जो उस समय जेल में होने के कारण प्रभावित थीं।
* यह भी संभव है कि भगत सिंह ने नेहरू को खुश करने और जेल से रिहाई पाने के लिए यह पत्र लिखा हो।
निष्कर्ष:
भगत सिंह ने नेहरू और बोस, दोनों के विचारों और कार्यप्रणाली का अध्ययन किया था। उन्होंने पत्र में अपनी राय व्यक्त की, जो उनके क्रांतिकारी विचारधारा पर आधारित थी।
भगत सिंह का प्रेम जीवन
भगत सिंह का प्रेम जीवन जटिल और विवादास्पद रहा है।
संभावित प्रेमिकाएं:
* अमर कौर: भगत सिंह जिनके साथ उनका घनिष्ठ संबंध था।
* विजयलक्ष्मी पंडित: क्रांतिकारी, जिनके साथ उनके पत्रों का आदान-प्रदान हुआ था।
* उषा मेहता: क्रांतिकारी, जिनके साथ उनका नाम जोड़ा जाता है।
लेकिन, यह निश्चित रूप से कहना मुश्किल है कि भगत सिंह ने कभी किसी से सच्चा प्यार किया था या नहीं।
कारण:
* क्रांतिकारी गतिविधियों में उनकी व्यस्तता।
* क्रांति के प्रति उनका समर्पण।
* उनकी रूढ़िवादी विचारधारा, जो प्रेम को कम महत्व देती थी।
निष्कर्ष:
भगत सिंह के जीवन में प्रेम निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण पहलू था, लेकिन यह उनके क्रांतिकारी जीवन से हमेशा गौण रहा।
अमर कौर और भगत सिंह के बीच रिश्ता जटिल और बहुआयामी था।
दोस्ती:
* दोनों बचपन से ही दोस्त थे और उनके परिवारों के बीच घनिष्ठ संबंध थे।
* उन्होंने लाहौर के डीएवी कॉलेज में साथ पढ़ाई की और क्रांतिकारी गतिविधियों में भी भाग लिया।
राजनीतिक सहयोग:
* अमर कौर ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) में सक्रिय भूमिका निभाई।
* उन्होंने क्रांतिकारियों को आश्रय दिया और उनके लिए हथियार और विस्फोटक इकट्ठा किए।
रोमांटिक संबंध:
* कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनके बीच रोमांटिक संबंध थे।
* भगत सिंह ने अमर कौर को कई पत्र लिखे थे, जिनमें उन्होंने अपने प्यार और सम्मान का इज़हार किया था।
विवाद:
* अमर कौर के HSRA में शामिल होने और भगत सिंह के साथ उनके संबंधों पर विवाद हुआ है।
* कुछ लोगों का मानना है कि उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेकर गलती की, जबकि अन्य उनको एक साहसी और स्वतंत्र महिला मानते हैं।
निष्कर्ष:
अमर कौर और भगत सिंह का रिश्ता दोस्ती, राजनीतिक सहयोग और संभवतः रोमांस का मिश्रण था।
यह रिश्ता क्रांतिकारी आंदोलन और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका को समझने में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
उषा मेहता और भगत सिंह के बीच संबंध
संक्षिप्त जवाब:
* हां, उनके बीच प्रेम संबंध होने की संभावना है।
* दोनों क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय थे और एक दूसरे के प्रति सम्मान रखते थे।
* उषा मेहता ने भगत सिंह के लिए कई बार जेल में पत्र लिखे थे।
विस्तृत जवाब:
* उषा मेहता और भगत सिंह दोनों ही हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सदस्य थे।
* 1928 में, भगत सिंह ने लाहौर में पुलिस अधीक्षक स्कॉट की हत्या के बाद गिरफ्तारी से बचने के लिए उषा मेहता के घर में शरण ली थी।
* उषा मेहता ने भगत सिंह को छिपाने और उन्हें पकड़े जाने से बचाने में मदद की थी।
* जेल में रहते हुए भगत सिंह ने उषा मेहता को कई पत्र लिखे थे, जिनमें उन्होंने अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त किया था।
* उषा मेहता ने भी भगत सिंह को जवाब में पत्र लिखे थे, जिनमें उन्होंने उन्हें प्रोत्साहन और समर्थन दिया था।
हालांकि, उनके बीच प्रेम संबंध थे या नहीं, यह निश्चित रूप से कहना मुश्किल है। उनके पत्रों में निश्चित रूप से स्नेह और प्रशंसा व्यक्त की गई थी, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह भावना प्रेम की थी या क्रांतिकारी गतिविधियों के प्रति साझा समर्पण की।
निष्कर्ष:
उषा मेहता और भगत सिंह के बीच संबंध जटिल और बहुआयामी थे। उनके बीच निश्चित रूप से एक गहरा बंधन था, जो क्रांतिकारी गतिविधियों के प्रति साझा समर्पण और आपसी सम्मान पर आधारित था। उनके बीच प्रेम संबंध थे या नहीं, यह निश्चित रूप से कहना मुश्किल है, लेकिन उनके पत्रों में निश्चित रूप से स्नेह और प्रशंसा व्यक्त की गई थी।