Allahabad high Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक पुराने मामले की सुनवाई के दौरान बड़ा फैसला सुनाया है। मामला एक नाबालिग बच्ची से जुड़ा था, जहां आरोपी पर दुष्कर्म की कोशिश का आरोप लगाया गया था। आरोप था कि उसने पीड़िता के शरीर को छुआ और उसके पजामे का नाड़ा खींचने की कोशिश की। लेकिन हाई कोर्ट ने इसे दुष्कर्म का प्रयास मानने से इनकार कर दिया और इसे यौन उत्पीड़न की श्रेणी में रखा।
हाई कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की अगुवाई वाली एकल पीठ ने कासगंज के विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो कोर्ट) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। पहले के आदेश में आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (रेप) और 511 (अपराध की कोशिश) के तहत आरोप तय किए गए थे। हाई कोर्ट ने माना कि आरोपी का यह कृत्य दुष्कर्म की कोशिश के दायरे में नहीं आता, बल्कि यह यौन उत्पीड़न (IPC की धारा 354) और पॉक्सो एक्ट की धारा 7/8 के तहत आता है।
दुष्कर्म की कोशिश कब मानी जाती है?
कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि किसी व्यक्ति को दुष्कर्म के प्रयास का दोषी तभी माना जा सकता है जब उसका कृत्य इस हद तक हो कि वह दुष्कर्म करने के बहुत करीब पहुंच गया हो। सिर्फ पीड़िता के शरीर को छूना या उसके कपड़े खींचने की कोशिश करना, रेप की कोशिश नहीं मानी जा सकती। यह अपराध यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है।
सरकारी वकील की दलीलें
सरकारी पक्ष ने कोर्ट में तर्क दिया कि आरोपी ने पीड़िता के कपड़े उतारने की कोशिश की, जो कि रेप के प्रयास के बराबर माना जाना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने इस दलील को ठुकरा दिया और साफ कहा कि आरोपी की हरकतें दुष्कर्म की कोशिश के कानूनी दायरे में नहीं आतीं।
अदालत का आदेश
कोर्ट ने पॉक्सो कोर्ट के फैसले को संशोधित करते हुए आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म की कोशिश से जुड़े आरोप हटा दिए। हालांकि, उसने आरोपी पर यौन उत्पीड़न (धारा 354) और पॉक्सो एक्ट की धारा 7/8 के तहत मुकदमा चलाने का आदेश दिया।
इस फैसले का क्या मतलब है?
हाई कोर्ट का यह फैसला कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसने यह स्पष्ट कर दिया कि रेप की कोशिश और यौन उत्पीड़न में कानूनी रूप से फर्क होता है। अगर आरोपी की हरकतें सिर्फ छेड़छाड़ तक सीमित हैं और दुष्कर्म के प्रयास की श्रेणी में नहीं आतीं, तो उन पर रेप के प्रयास का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।