लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। उत्तर प्रदेश में करीब डेढ़ वर्ष के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में राजनीतिक दल अब लाव-लश्कर के साथ सियासी दंगल में उतर चुके हैं। अखिलेश यादव अपने पीडीए रथ के जरिए दूसरी बार सीएम बनने के लिए पसीना बहा रहे हैं तो बीजेपी-आरएसएस भी फुल एक्शन में हैं। जिसका नजारा अयोध्या में देखने को मिला। यहां पीएम नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर के निर्माण के बाद ध्वजारोहण किया। जिसके बाद लोग सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं, ‘अयोध्या में राम मंदिर का ध्वजारोहण, सिर्फ धार्मिक समारोह नहीं था। ये 2027 यूपी विधानसभा चुनाव का राजनीतिक शंखनाद था। लोगों ने मंदिर के मुख्य द्वार पर लिखी पंक्ति के बारे में भी जिक्र किया, जो कुछ इस प्रकार की थी। ‘जाति पाति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि को होई’। लोग लिख रहे हैं, यही पंक्ति पीएम मोदी, मोहन भागवत और सीएम योगी की रणनीति का संकेत बनी, जिसका उद्देश्य जातिगत समीकरणों को ध्वस्त कर हिंदू समरसता को मजबूत करना है।
राम की नगरी अयोध्या में भगवान श्रीरामलला का भव्य-दिव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया है। खुद पीएम नरेंद्र मोदी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, सीएम योगी आदित्यनाथ अयोध्याधाम पहुंचे और मंदिर में धर्मध्वजा को फहराया। तीनों नेताओं ने लोगों को संबोधित भी किया। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और सीएम योगी आदित्यनाथ के बयान केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि स्पष्ट रूप से 2027 के चुनावी संदेश से भरे थे। कार्यक्रम का मुख्य भाव था, राम के आदर्शों को विकास मॉडल, राष्ट्रीय चरित्र और सामाजिक एकता के केंद्र में रखना। पीएम नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कहा कि अयोध्या को 70 वर्षों तक जानबूझकर उपेक्षित रखा गया। उन्होंने शबरी, निषादराज, जटायु, गिलहरी जैसे पात्रों का उल्लेख कर दलितों, आदिवासियों और ओबीसी वर्ग को राम कथा से जोड़ने की कोशिश की। संदेश साफ था कि जाति से ऊपर हिंदू पहचान।
दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 में अखिलेश यादव पीडीए मॉडल लेकर आए। पीडीए में पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक को जोड़ा गया। जिसके चलते यूपी में बीजेपी को उम्मीद से कम सीटें मिली और अखिलेश यादव-राहुल गांधी का गठबंधन को प्रचंड जीत मिली। विपक्ष की ओर से तैयार किए जा रहे पीडीए समीकरण की काट के रूप में बीजेपी और आरएसएस ने एक बार फिर 2017 वाला, ‘80 बनाम 20’ मॉडल को आगे बढ़ाया है। लोकसभा 2024 में सामने आए जातिगत बिखराव से सबक लेते हुए बीजेपी वापस उसी हिंदुत्व-समरसता के पैटर्न पर लौट आई है, जिसने उसे 2017 और 2022 में बड़ी जीत दिलाई थी। हिंदू समाज को जाति के आधार पर न बांटना। विपक्ष के पीडीए को रामत्व-विरोध से जोड़ना। दलित-आदिवासी समुदायों को राम की कथा से जोड़कर एकजुट करना। पीएम मोदी के भाषण ने तय किया वैचारिक एजेंडा। 2035 तक गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का संकल्प। 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य विपक्ष पर रामत्व को न समझने का आरोप।
पीएम नरेंद्र मोदी ने बिना किसी दल का नाम लिए ये संदेश दिया कि राम को नकारने वाली राजनीति अब जनता स्वीकार नहीं करेगी। त्ै प्रमुख मोहन भागवत ने राम को सभी का आराध्य बताते हुए कहा कि समाज का कोई वर्ग अलग नहीं। वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट किया कि राम मंदिर केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं। बल्कि सांस्कृतिक एकता का केंद्र है। सीएम योगी ने अयोध्या में विपक्ष की ‘उपेक्षा की राजनीति’ को निशाने पर लेते हुए कहा कि जिस राम ने सभी को साथ लिया, उनके आदर्शों पर राजनीति भी समरसता से ही चलेगी। धर्म ध्वजारोहण के बहाने हिंदू समाज की जिस तरह ‘समरसता सभा’ बनी, उससे साफ है कि पार्टी 2027 के लिए व्यापक हिंदू एकता के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर चुकी है। यह कार्यक्रम एक राजनीतिक संकेत भी था। अब सोशल मीडिया पर लोग भी बीजेपी-आरएसएस के इस मिशन को लेकर लिख रहे हैं। लोग दावा कर रहे हैं कि बिहार की तरह ही यूपी में अब जातिवाद का एजेंडा नहीं चलेगा। हिन्दू एकसाथ आएगा। सनातनी बीजेपी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश के विकास में अहम रोल निभाएगा।
वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2024 के चुनाव में यूपी में हिंदू वोटों का जातिगत आधार पर बिखराव बीजेपी को नुकसान पहुंचा गया था। इसी वजह से इस बार आयोजन में जातीय संतुलन बिठाने पर खास जोर दिया गया। ये स्पष्ट संकेत है कि बीजेपी अब 80-20 के नए नैरेटिव को फिर से मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है। यानी 80 प्रतिशत हिंदुओं को एकजुट करने के लिए राम मंदिर परिसर में सभी समाजों और जातियों के महापुरुषों की मूर्तियों को स्थान दिया जा रहा है। जिससे 80 फीसदी हिंदू समाज को एकजुट किया जा सके। सोनभद्र और मिर्जापुर जैसे जिलों से बड़ी संख्या में आदिवासी, पिछड़े समुदाय के लोग और साधु-संतों को आमंत्रित किया गया। इस प्रतीकात्मक संदर्भ के जरिए पीएम नरेंद्र मोदी ने दलित, आदिवासी और ओबीसी समाज को सीधे जोड़ने की कोशिश की। उधर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भगवान राम के मंदिर के लिए चले 500 साल के लंबे संघर्ष को याद करते हुए माहौल को भावुक कर दिया। उन्होंने खास तौर पर कारसेवकों की भूमिका, अशोक सिंघल और महंत रामचंद्र दास परमहंस जैसे साधु संतों के योगदान और उनकी कुर्बानियों का उल्लेख किया, जो आंदोलन की रीढ़ रहे। राम मंदिर के शिखर पर धर्मध्वजा ही नहीं चढ़ी, बीजेपी-आरएसएस ने 2027 के चुनावी अभियान का बिगुल बजा दिया है।
