लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। यूपी विधानसभा चुनाव की डुगडुगी अभी नहीं बजी। सूबे में करीब डेढ़ वर्ष के बाद जनता नई सरकार का गठन करेगी। लेकिन राजनीतिक दलों ने अभी से सियासी मुनादी जरूर कर दी है। करीब एक दशक से खामोश हाथी फिर से दहाड़ मारने को बेकरार है। बीएसपी चीफ मायावती भी फुल एक्टिव हैं और 2027 का दंगल फतह करने के लिए वाररूम में बैठ गई हैं। बीएसपी में नए कमांडरों की भर्ती कर रही हैं। पार्टी के सेनापतियों को ऑपरेशन की कमान सौंप रही हैं। इसी कड़ी में बीएसपी चीफ ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी में बड़े ओहदे पर बैठा दिया है। अपने समधी की भी घर वापसी करा दी है। रूठे पूराने बीएसपी नेताओं की घर वापसी के लिए भतीजे आकाश आनंद को टॉस्क सौंप दिया है। ऐसी चर्चा है कि करीब आधा दर्जन नेता आगामी 9 अक्टूबर को ऑन-बान और शान के साथ फिर से हाथी पर सवा होंगे।
उत्तर प्रदेश की सियासत में 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले हलचल तेज हो गई है। कई दिग्गज नेता अपनी सियासी जमीन मजबूत करने और भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए नए ठिकाने की तलाश में जुटे हैं। सूत्रों के मुताबिक, 9 अक्टूबर को लखनऊ में आयोजित एक बड़े कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी, बीजेपी, कांग्रेस और निषाद पार्टी समेत कई दलों के वरिष्ठ नेता बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम सकते हैं। बसपा की ओर से कांशीराम की पूण्यतिथि पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि बीएसपी चीफ ने घर वापसी के ऑपरेशन की कमान अपने भतीजे आकाश आंनद को सौंपी है। ऑपरेशन गुपचूप तरीके से चलाया जा रहा है। एक बीएसपी नेता ने दावा किया है कि 9 अक्टूबर की तारीख इतिहास में दर्ज होगी। अखिलेश यादव के पीडीए की हवा आकाश आनंद निकाल देंगे। बीजेपी की राजनीति जमीन भी जाएगी। ऐसे में अब सोशल मीडिया पर लोग उन नामों को लेकर लिख रहे हैं। सोशल मीडिया में वह स्पेशल 6 नाम गर्दा उड़ाए हुए हैं।
ऐसा दावा किया जा रहा है कि बसपा के पाले में जाने वाले छह नामों में सबसे आगे आजम खान एवं उनके परिवार का नाम सामने आ रहा है। आजम खान समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता रहे हैं। वहीं, कभी बसपा में रहे मायावती के करीबियों में गिने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य की भी घर वापसी हो सकती है। उनके साथ उनकी बेटी और पूर्व बीजेपी सांसद संघमित्रा मौर्य भी बसपा का दामन थाम सकती है। बसपा के पाले में ओम प्रकाश राजभर, संजय निषाद और नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेताओं के जाने की चर्चा है। ऐसी चर्चा है कि सपा विधायक पल्लवी पटेल भी बीएसपी के मंच पर दिख सकती है। पल्लवी पटेल सपा को छोड़कर बीएसपी से हाथ मिला सकती हैं। कुछ लोग पूजा पाल को लेकर भी दावे कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि पूजा पाल भी बीएसपी में जा सकती हैं। पूजा पाल के होर्डिंग्स और पोस्टर भी चायल में लगाए गए थे। पोस्टरों में पूजा पाल की तस्वीर मायावती के साथ लगाई गई थी।
इन स्पेशल 6 नामों में सबसे बड़ा नाम आजम खान का है। आजम खान ने समाजवादी पार्टी के गठन के बाद से ही मुलायम सिंह यादव की परछाई के तौर पर दिखे। 80 के दशक से रामपुर की राजनीति में वे नवाब परिवार की राजनीति को टक्कर देते दिखे। आजम खान को रामपुर से कभी अपराजेय समझा जाता था। लेकिन, वर्ष 2017 में यूपी में बीजेपी सरकार बनने के बाद से आजम खान की सत्ता को चुनौती मिलने लगी। 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरने और रामपुर से जीत के बाद आजम खान पर चुनौतियां गहराने लगी। पिछले कुछ वर्षों में लगातार मुकदमों, जेल और संगठन से दूरी के कारण उनकी राजनीतिक पकड़ ढीली पड़ी। अब बसपा में आने की अटकलों ने बड़ा सियासी संकेत दिया है। वहीं स्वामी प्रसाद मौर्य इस समय अपनी जनता पार्टी का निर्माण कर उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हुए हैं। बसपा से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने दलित-पिछड़ा वर्ग में अपना अलग स्थान बनाया। वर्ष 2016 में वे अपने कुनबे के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। इसका प्रभाव बीजेपी को विधानसभा चुनाव 2016 में दिखा।
हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर उन्होंने पाला बदला। स्वामी प्रसाद मौर्य अपने कुछ सहयोगियों के साथ समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। विधानसभा चुनाव में हार के बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें विधान परिषद भेजा। पार्टी में भी जगह दी। इसके बाद भी वे सपा में नहीं टिक पाए। रामचरित मानस विवाद के बाद उन्होंने पार्टी छोड़कर अपनी पार्टी का निर्माण कर लिया। लगातार दल-बदल से उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे और वोटबैंक लगातार कमजोर हुआ। संघमित्रा मौर्य लगातार अपने पिता स्वामी प्रसाद मौर्य की राह पर चलती दिखी हैं। पिता के भाजपा का दामन थामने के बाद वे भी पार्टी में शामिल हो गईं। लोकसभा चुनाव 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें बदायूं लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया। उन्होंने जीत दर्ज की। सांसद बनने के बाद जब 2022 में उनके पिता ने भाजपा छोड़ सपा का दामन थामा तो उन पर भी सवाल उठे। हालांकि, संघमित्रा मौर्य पार्टी में बनी रहीं। लेकिन, अपने पिता के बयानों का बचाव करती रहीं। इस कारण लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा ने उनका टिकट काट दिया। अब भी वे भाजपा से जुड़ी हैं, लेकिन घटती राजनीतिक ताकत ने उन्हें अगला कदम उठाने पर मजबूर किया है।
इनसब के बीच ओम प्रकाश राजभर इस समय सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष हैं। यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री हैं। हालांकि, उनकी राजनीतिक ताकत लगातार कमजोर हुई है। यूपी चुनाव 2017 के दौरान भाजपा के साथ जुड़ने का ओम प्रकाश राजभर को काफी फायदा मिला। ताकत बढ़ी तो उन्होंने लोकसभा चुनाव 2019 में सीटों की मांग भाजपा के सामने करनी शुरू कर दी। एनडीए में भाव नहीं मिला तो गठबंधन तोड़ अकेले दम चुनावी मैदान में उतर गए, लेकिन कोई बड़ा प्रदर्शन नहीं कर पाए। यूपी चुनाव 2022 से पहले ओम प्रकाश राजभर ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया। अखिलेश यादव के समर्थन के कारण उनका प्रभाव इस चुनाव में 2017 से ठीक-ठाक दिखा। ओपी राजभर पूरे चुनाव अखिलेश सरकार बनने की भविष्यवाणी करते रहे। लेकिन, जब भाजपा एक बार फिर पूर्ण बहुमत हासिल करने में सफल रही तो उन्होंने सपा अध्यक्ष पर हमला शुरू कर दिया। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले वे एनडीए का हिस्सा बन गए। एनडीए में राजभर वोट बैंक में उनकी पकड़ को लेकर वापसी हो गई। हालांकि, लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव के पीडीए के आगे राजभर का जातीय कार्ड काम नहीं आया।
एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में वे इस वर्ग के वोट को मोड़ने में कामयाब नहीं हो पाए। ऐसे में भाजपा के साथ अब उनके गठबंधन पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। पिछले दिनों एबीवीपी पर बयान देकर वे बड़े नेताओं के निशाने पर आ चुके हैं। नसीमुद्दीन सिद्दीकी की पहचान एक बड़े मुस्लिम चेहरे के रूप में रही है। 90 के दशक में वे बसपा का बड़ा मुस्लिम चेहरा थे। मायावती की दलित-मुस्लिम समीकरण को जमीन पर उतारने में उनकी बड़ी भूमिका रही थी। मायावती के करीबी नेताओं में उनकी गिनती होती थी। हालांकि, बाद के समय में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। इसक बाद उनका प्रभाव कम होता गया। अब एक बार फिर उनकी बसपा में वापसी की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है। निषाद पार्टी के अध्यक्ष और योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री डॉ. संजय निषाद लगातार एनडीए का हिस्सा रहे हैं। इससे पहले वे समाजवादी पार्टी के साथ रहे थे। खुद को एनडीए का विश्वसनीय सहयोगी करार देने के बाद भी पिछले दिनों वे लगातार सार्वजनिक मंच से भाजपा के खिलाफ बयान देते दिखे हैं। इसका कारण उनके वोट बैंक में बिखराव है। लोकसभा चुनाव 2024 में संतकबीरनगर सीट से बेटे प्रवीण निषाद को जिता पाने में वे कामयाब नहीं हो पाए। योगी सरकार में मंत्री बने रहने के बाद भी वे अपने परंपरागत निषाद वोट बैंक को बिखरने से नहीं रोक पाए। नतीजतन उनकी राजनीतिक पकड़ और विश्वसनीयता कमजोर हो गई है।
समाजवादी पार्टी से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक के निषाद समाज के नेता उनकी जातीय पकड़ पर सवाल उठा रहे हैं। ऐसे में वे एक नए ठिकाने की तलाश में जुटे हुए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर ये सभी नेता वास्तव में बसपा में शामिल होते हैं तो प्रदेश की राजनीति में बड़ा समीकरण बदल सकता है। मुस्लिम, पिछड़ा और दलित वोट बैंक का एक साझा आधार तैयार करने की कोशिश साफ दिखेगी। खासकर, आजम खान और नसीमुद्दीन सिद्दीकी के जुड़ने से मुस्लिम वोटों पर असर पड़ सकता है। वहीं, स्वामी प्रसाद मौर्य और ओपी राजभर जैसे ओबीसी नेताओं की मौजूदगी बसपा को पूर्वांचल और पश्चिमी यूपी में नई ताकत दिला सकती है। भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ यह विपक्षी इंडिया ब्लॉक के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकती है। यूपी चुनाव 2027 से पहले अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव 2024 की तर्ज पर ही पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स के सफल होने की उम्मीद कर रहे हैं। अगर बसपा अपने प्रभाव में विस्तार करती है तो इसका सीधा असर अखिलेश की रणनीति पर पड़ सकता है।