Barabanki के इस गांव की अजब कहानी: आज़ादी के 77 साल तक नहीं पास हुआ कोई हाई स्कूल, एक युवक ने तोड़ा रिकॉर्ड

बाराबंकी के निजामपुर गांव में राम केवल ने इतिहास रच दिया। आज़ादी के 77 साल बाद गांव से पहली बार किसी ने हाई स्कूल पास किया, वो भी मजदूरी करते हुए, सड़क की लाइट में पढ़ाई कर।

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Barabanki News: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले का एक छोटा सा गांव निजामपुर, जो कभी शिक्षा से कोसों दूर माना जाता था, वहां के एक युवक ने इतिहास रच दिया। इस गांव में आज़ादी के 77 साल बाद तक कोई भी हाई स्कूल की परीक्षा पास नहीं कर सका था, लेकिन 2025 में राम केवल नामक एक साधारण मजदूर के बेटे ने यह कीर्तिमान तोड़ा। ₹300 प्रतिदिन की मज़दूरी कर पेट पालने वाला यह युवक पढ़ाई को लेकर इतना समर्पित था कि सड़क की लाइट में पढ़कर परीक्षा पास की। उसकी इस उपलब्धि ने न केवल गांव का नाम रोशन किया, बल्कि यह साबित कर दिया कि संकल्प मजबूत हो तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।

अब कोई नहीं कहेगा ‘तुमसे नहीं होगा’

Barabanki जिले के निजामपुर गांव में रहने वाले राम केवल ने एक ऐसा इतिहास रच दिया, जिसने पूरे गांव को गर्व से भर दिया। जहां आज़ादी के 77 वर्षों में कोई हाई स्कूल पास नहीं कर पाया था, वहीं इस युवक ने 2025 में हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर पूरे गांव की सोच को बदल दिया।

राम केवल एक गरीब परिवार से आते हैं। उनके पिता मजदूर हैं और मां एक प्राथमिक विद्यालय में रसोइया का काम करती हैं। ₹300 रोज़ कमाने वाले राम केवल ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने दिन में मजदूरी की और रात में सड़क की लाइट में पढ़ाई कर खुद को साबित कर दिखाया। जब बच्चे उनका मज़ाक उड़ाते थे कि “तुमसे नहीं होगा”, तभी उन्होंने मन में ठान लिया कि वो पास होकर दिखाएंगे।

मां ने रसोइया की मज़दूरी से भरी फीस

राम केवल की मां पुष्पा देवी ने बेटे की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्राथमिक विद्यालय में रसोइया की मामूली कमाई से उन्होंने बेटे की फीस भरी। बेटे के संघर्ष को देखकर गांववालों की आंखें नम हो गईं। पुष्पा बताती हैं कि वो बचपन में अपने भाई को डिबरी की रोशनी में पढ़ते देखती थीं, आज वही जज़्बा उन्होंने बेटे में देखा।

Barabanki डीएम ने किया सम्मानित, गांव में जगी शिक्षा की ललक

राम केवल की उपलब्धि पर Barabanki जिला अधिकारी शशांक त्रिपाठी ने उन्हें सम्मानित किया और कहा कि ये केवल एक परीक्षा पास करना नहीं, बल्कि गांव में शिक्षा की नई अलख जगाने जैसा है। अब गांव के अन्य बच्चों में भी पढ़ाई को लेकर रुचि बढ़ रही है। प्रधानाचार्य शैलेंद्र द्विवेदी बताते हैं कि 1923 से स्कूल होने के बावजूद गांव में पढ़ाई की ललक कभी नहीं रही, पर अब वह बदल रही है।

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