कानपुर ऑनलाइन डेस्क। उत्तर प्रदेश की 9 सीटों के चुनाव परिणाम 23 नवंबर को आ गए। जिसमें बीजेपी को सात तो सपा के खाते में दो सीटें आई हैं। कभी उपचुनाव न लड़ने वाली बीएसपी ने 2024 के सियासी दंगल में अपने कैंडीडेट उतारे। पर वह कुछ खास नहीं कर सके। सीसामऊ सीट पर बीजेपी कैंडीडेट को महज 1410 वोट मिले। वहीं अगर कानपुर नगर-कानपुर देहात की बात करें तो यहां की 14 विधानसभा और तीन लोकसभा सीट पर पिछले 12 सालों से हाथी का दहाड़ सुनाई नहीं पड़ी। चार चुनाव हुए और सभी में मायावती की पार्टी को हार उठानी पड़ी।
नहीं चला मायावती का जादू
पहली बार बीएसपी ने उपचुनाव लड़ने का एलान किया। सभी 9 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। लेकिन चुनाव परिणाम आए तो सभी सीटों पर बीएसपी को हार मिली। कहीं पर जमानत जब्त हुई तो किसी सीट पर बीएसपी कैंडीडेट को नोटा से भी कम वोट मिले। कानपुर की सीसमऊ सीट से बीएसपी कैंडीडेट वीरेंद्र कुमार को महज 1410 वोट मिले, जो नोटा से भी कम थे। करहल, कुंदरकी और मीरापुर में भी बीएसपी बसपा धड़ाम हो गई। मीरापुर और कुंदरकी में तो वोटरों ने बसपा से ज्यादा आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तिहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को तरजीह दी है।
सीसामऊ में नोटा से भी कम मिले वोट
कानपुर की सीसामऊ विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के विधायक इरफान सोलंकी को सजा मिलने के बाद यहां उपचुनाव हुआ। इस सीट पर बसपा का हाथी कभी नहीं चल पाया। उसकी चाल हमेशा सुस्त ही रही। 1989 से लेकर 2022 तक के विधानसभा चुनाव में जब सबसे अच्छा पार्टी का प्रदर्शन हुआ तो बसपा तीसरे स्थान तक ही आ सकी। 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के हाजी इरफान सोलंकी ने जीत हासिल की थी। बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी रजनीश तिवारी चौथे स्थान पर रहे थे। हालांकि 2022 के चुनाव में बीएसपी कैंडीडेट की जमानत बच गई थी।
कटहरी में ठीक रहा बीएसपी का प्रदर्शन
बीएसपी का सबसे अच्छा प्रदर्शन कटेहरी सीट पर रहा, जहां पार्टी प्रत्याशी अमित वर्मा ने 41,647 वोट हासिल किए। वहीं मझवां के प्रत्याशी दीपक तिवारी उर्फ दीपू तिवारी ने 34,927 और फूलपुर के प्रत्याशी जितेंद्र कुमार सिंह को 20,342 वोट मिले। हालांकि तीनों सीटों पर 2022 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले कम वोट मिले हैं। गाजियाबाद में टिकट बदलने का खेल बीएसपी को भारी पड़ गया और उसके प्रत्याशी परमानंद गर्ग 10,736 वोट ही हासिल कर पाए। वहीं बीएसपी ने सबसे खराब प्रदर्शन सीसामऊ सीट में रहा। पार्टी कैंडीडेट को अब तक की सबसे बडी हार मिली।
12 साल से कानपुर में नहीं जीती बीएसपी
बीएसपी की ढलान का सिलसिला 2012 के बाद से शुरू हुआ और पार्टी को 2017, 2022 और 2024 के लोकसभा चुनाव में करारी हार उठानी पड़ी। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन का फाएदा बीएसपी को मिला और वह 10 सीटें जीतने में कामयाब रही। वहीं अगर कानपुर नगर की बात करें तो बीएसपी बिठूर, बिल्हौर, घाटमपुर, महाराजपुर, कल्याणपुर, गोविंद नगर, किदवई नगर, आर्यनगर, कैंट और सीसामऊ विधानसभा सीट पर 2012 के बाद से एक भी चुनाव नहीं जीती। कुछ ऐसा ही हाल कानपुर देहात का भी रहा। कभी बीएसपी प्रमुख का गढ़ रहे कानपुर देहात की चार सीटों पर 12 साल से हाथी नहीं दहाड़ा।
2022 के चुनाव में सिर्फ 1 सीट जीती बीएसपी
वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव हुए। इसमें बीएसपी ने सपा के साथ गठबंधन किया। इस चुनाव में बीएसपी को 10 सीटें हासिल हुईं। इसके बाद वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने सपा के साथ गठबंधन समाप्त कर लिया। इस चुनाव में इसका असर भी दिखा। बीएसपी को महज एक सीट पर जीत मिली। जो कि बीएसपी के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था। 2024 के आमचुनाव में भी बीएसपी ने 80 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। लोकसभा चुनाव में बीएसपी का खाता भी नहीं खुल सका था। यानि बसपा को आमचुनाव में एक भी सीट नहीं मिली।
बड़े नेताओं की कोई जनसभा नहीं हुई
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो पार्टी के शीर्ष नेताओं की जनता से दूरी भी इस हार का कारण बनती जा रही है। उपचुनाव में सभी नौ सीटों पर प्रत्याशी उतारने के बाद पार्टी ने स्टार प्रचारकों की सूची जारी की। इसमें पार्टी प्रमुख मायावती, आकाश आनंद और सतीश चंद्र मिश्र सहित करीब 40 नेताओं को मैदान संभालने की जिम्मेदारी मिली। लेकिन, समय बीतता गया और यूपी में मायावती समेत लगभग किसी भी बड़े नेता की कोई जनसभा नहीं हुई है।
पार्टी से छिटका कोर वोटर
आमजन से दूरी का आलम यहां तक रहा कि बीएसपी अपने पारंपरिक वोट भी पूरी तरह से पक्ष में नहीं ला सकी। बीएसपी का कोर वोटर दलित माना जाता है। लेकिन, बीएसपी उसे भी बांधकर रखने में असफल साबित हो रही है। चुनाव नतीजों में इसका असर साफ दिख रहा है। पिछले कुछ समय से संविधान और जाति जनगणना को लेकर राजनीतिक बयानबाजी काफी तेज है। भाजपा और सपा इस पर अपने-अपने गुणा-गणित के हिसाब से बयानबाजी करती रही। लेकिन, बीएसपी ने खुलकर इस पर कुछ नहीं कहा। इसका भी असर बीएसपी के कोर वोटर समेत नए वोटरों पर दिख रहा है।