LPG Pipeline Scam: सीबीआई की बड़ी छापेमारी,आरोपित अधिकारियों के घरों से दस्तावेज बरामद, घोटाले की रकम बढ़ने के मिले संकेत

सीबीआई ने एलपीजी पाइपलाइन मुआवजा घोटाले में आरोपित अधिकारियों के घरों से महत्वपूर्ण दस्तावेज जब्त किए। जांच कई जिलों में फैल गई है और घोटाले की रकम बढ़ने की आशंका है। आठ अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज।

LPG pipeline compensation scam CBI action

LPG Pipeline Compensation Scam: कांडला-गोरखपुर एलपीजी पाइपलाइन परियोजना में मुआवजे के नाम पर हुए बड़े घोटाले की जांच तेजी पकड़ चुकी है। सीबीआई ने हाल ही में तेल कंपनी के आरोपित अधिकारियों के आवासों पर की गई छापेमारी में कई महत्वपूर्ण संपत्ति दस्तावेज बरामद किए हैं। जांच अधिकारियों का मानना है कि मुआवजा घोटाले की रकम अभी और बढ़ सकती है क्योंकि मामला सात अन्य जिलों तक पहुंच गया है।

अधिकारियों से पूछताछ की तैयारी

सूत्रों के अनुसार, सीबीआई जल्द ही आरोपित अधिकारियों को नोटिस भेजकर पूछताछ के लिए बुला सकती है। उनके बैंक खातों, संपत्तियों और लेन-देन की पूरी जांच की जाएगी। शुरुआती संकेतों के अनुसार, जांच अब लखनऊ, गाजीपुर, जालौन, जौनपुर, देवरिया, गोरखपुर और झांसी तक फैल सकती है।

सीबीआई की लखनऊ एंटी-करप्शन ब्रांच ने इस मामले में लगभग 6.50 करोड़ रुपये की गड़बड़ी का केस दर्ज किया है। यह रकम भूमि अधिग्रहण और विभिन्न प्रक्रियाओं के दौरान मुआवजा भुगतान में की गई धोखाधड़ी से जुड़ी बताई जा रही है। पिछले मंगलवार को लखनऊ, प्रयागराज और नोएडा में अधिकारियों के घरों पर की गई छापेमारी में कई महत्वपूर्ण कागजात और रिकॉर्ड मिले थे, जिनकी जांच की जा रही है।

कई जिलों में मिली गड़बड़ी

परियोजना में प्रयागराज और भदोही में करीब 6.12 करोड़ रुपये की गड़बड़ी पहले ही उजागर की जा चुकी थी। इसके अलावा अन्य जिलों में भी गड़बड़ी सामने आई है।रायबरेली में 24.72 लाख रुपये, प्रतापगढ़ में 51 हजार रुपये, आज़मगढ़ में 54 हजार रुपये, कानपुर नगर में 2.37 लाख रुपये, कानपुर देहात में 3.74 लाख रुपये, उन्नाव में 1.74 लाख रुपये और ललितपुर में 5.51 लाख रुपये की अनियमितताएँ पकड़ी गई थीं। मऊ और वाराणसी में भी इसी तरह की शिकायतें सामने आई थीं।

मुआवजा धोखाधड़ी का खुला जाल

जांच से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि भूमि सर्वे, स्वामित्व की पुष्टि, फसल और निर्माण का मूल्यांकन तथा मुआवजे की घोषणा जैसे चरणों में कई अनियमितताएँ की गईं। आरोप है कि कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से असली लाभार्थियों की जगह गैर-हकदार लोगों के खातों में मुआवजा भेज दिया गया और बाद में राशि हड़प ली गई।

सूत्रों के मुताबिक, परियोजना में सेवानिवृत्त एडीएम रामकेश यादव को निर्णायक अधिकारी नियुक्त किया गया था। उन्होंने ही सबसे पहले अनियमितताओं की शिकायत की थी। प्रारंभिक जांच में आइओसीएल के मुख्य प्रबंधक गौरव सिंह की भूमिका सबसे प्रमुख पाई गई है। आरोप है कि उन्होंने अपने भाई आशीष सिंह और करीबी अभिषेक पांडे व विशाल द्विवेदी को परियोजना में राजस्व अधिकारी के तौर पर शामिल कराया था।

इस मामले में आइओसीएल के तत्कालीन जीएम फैसल हसन, गौरव सिंह, प्रबंधक सुनील कुमार अहिरवार, अभियंता विनीत सिंह, सूर्य प्रताप सिंह सहित कुल आठ लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई है। यह पूरी परियोजना आइओसीएल, बीपीसीएल और एचपीसीएल के संयुक्त उपक्रम आईएचबी लिमिटेड द्वारा चलाई जा रही थी।

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