कानपुर। यूपी के औरैया जनपद के दिबियापुर थाना क्षेत्र के सेहुद गांव के टीले पर धौरा नाग मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया, वह रहस्य बना हुआ है। 11वीं सदी में मोहम्मद गजनवी ने मंदिर पर हमला कर मुर्तियों को क्षतिग्रस्त कर दिया था। तब से मंदिर में सदियों पुरानी खंडित मूर्तियां पड़ी हुई हैं। नाग मंदिर को लेकर अनोखी मान्यता भी है। कहा जाता है कि इस मंदिर पर छत का निर्माण नहीं हुआ है और न कभी होगा। जो व्यक्ति इस मंदिर में छत का निर्माण कराता है, उसकी असमय मौत हो जाती है।
टीले पर धौरा नाग मंदिर से प्रसिद्ध
कानपुर संभाग में रामायण और महाभारत कालीन कई मंदिर और भवन हैं, जो कई रहस्यों को समेटे हुए हैं। कुछ तो विज्ञान को भी चुनौती देने का माद्दा रखते हैं। इन्हीं में से भीतरगांव का मानसूनी मंदिर, शिवराजपुर का शिव मंदिर, जहां अश्वस्था आज भी पूजा करने के लिए आते हैं। कुछ ऐसा ही चमत्कारी मंदिर औरैया जिले के दिबियापुर के पास सेहुद गांव के टीले पर धौरा नाग मंदिर से प्रसिद्ध है। मंदिर का इतिहास प्राचीन है। खास बात यह है कि इस मंदिर पर छत नहीं है। मान्यता है कि जिसने भी यहां पर छत डालने की कोशिश की या तो उसकी मौत हो गई या उसे बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
मोहम्मद गजनवी ने मंदिर पर किया था हमला
ग्रामीण बताते हैं 11 वीं सदी में मोहम्मद गजनवी ने मंदिर पर हमला कर मूर्तियों को तोड़ दिया था। तभी से मूर्तियां त्यों की त्यों मंदिर में मौजूइ हैं। तो मुगल आक्रांता के तोड़फोड़ के सच को बयां करती हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह मंदिर कितना पुराना है। धौरा नाग मंदिर में छत नहीं है। यहां मौजूद देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियों की पूजा की जाती है। लोगों की मान्यता है कि साक्षात धौरा नाग देवता मंदिर परिसर में लोगों को दर्शन देते रहते हैं। मंदिर में देश के कोने-कोने से भक्त आते हैं और नाग देवता के दर्शन कर मन्नत मांगते हैं।
जयचंद्र करने आते थे पूजा-अर्चना
इस मंदिर का निर्माण किसने और कब कराया ये आज भी रहस्य बना हुआ है। कहा जाता है कि कन्नौज के राजा जयचंद्र की इस मंदिर के प्रति विशेष आस्था थी। वे यहां नाग पूजन करने के लिए आया करते थे। उस समय राजा जयचंद्र ने मंदिर पहुंचने के लिए एक गुप्त सुरंग का निर्माण कराया था। छोटे से कमरे की तरह दिखने वाले इस मंदिर में एक कोने में बेहद प्राचीन खंडित मूर्तियां पड़ी हैं। मंदिर में छत नहीं हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो इस मंदिर में जिसने भी छत का निर्माण कराने का प्रयास किया, उसकी या उसके परिवार के किसी सदस्य की असमय मौत हो गई। साथ ही छत भी अपने आप नीचे गिर गई।
तब गवांनी पड़ी थी जान
स्थानीय लोगों की मानें गांव के ही इंजीनियर बेटे ने एक बार मंदिर में छत बनवाने का प्रयास किया था। कुछ समय बाद उसके दोनों बच्चों का निधन हो गया और सुबह छत भी गिरी हुई मिली। तब से आज तक कोई भी इस मंदिर में छत डलवाने की हिम्मत भी नहीं करता है। कहा जाता है कि ये मंदिर बेशक खुला रहता है, लेकिन यहां की ईंट, मूर्ति या कोई भी चीज आप साथ नहीं ले जा सकते। जिसने भी ऐसा किया, उसके सामने ऐसे हालात पैदा हो गए कि उसे वापस वो चीज रखने के लिए आना पड़ा।
डीएम को वापस करनी पड़ी थी मुर्ति
धौरा नाग मंदिर में नाग पंचमी के दिन आसपास के जनपदों से आने वाले श्रद्धालु विशेष पूजा अर्चना करते हैं। इसके साथ ही यहां पर दो दिन तक लगातार मेला चलता है। ग्रामीण उदयवीर ने बताया कि गांव में स्थित मिट्टी के टीलों पर भगवान शिव की प्रतिमाएं निकलती रहती हैं। कोई बाहरी व्यक्ति मंदिर या उसके आसपास से कोई पत्थर भी लेकर नहीं जा पाता. अगर कोई ले भी जाता है तो उसे सांप ही सांप दिखाई देते हैं। इसके बाद उसे पत्थर को वापस रखना पड़ता है। 1957 में इटावा के तत्कालीन जिलाधिकारी इस मंदिर से एक मूर्ति ले गए थे, लेकिन कुछ समय बाद उनको वो मूर्ति वापस रखने के लिए आना पड़ा था।
तक्षक प्रजाति के सांप
ग्रामीणों के अनुसार राजा परीक्षित को तक्षक सांप ने डस लिया तो उनके बेटे जनमेजय ने संपूर्ण सांप जाति के खात्मे के लिए यज्ञ किया था। गांव में तक्षक प्रजाति के नाग निकलते रहते हैं। विशेषकर नागपंचमी पर ये नाग मंदिर में आते-जाते रहते हैं। गांव के रहने वाले रामलखन गुप्ता का कहना है कि ये नाग मंदिर काफी प्राचीन है और नागपंचमी पर काफी दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं। नाग देवता उनकी मनोकामना पूरी करते हैं। बता दें, मंदिर और इससे जुड़ी कहानियां केवल लोगों की मान्यताओं पर ही आधारित हैं। इसका कोई वैज्ञानिक आधार आज तक नहीं मिला है। न्यूज वन इंडिया किसी भी तरह से अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है।