कानपुर ऑनलाइन डेस्क। हाथ में दुनाला बंदूक और बदन पर बागी वर्दी। माथे पर काला टीका, सिर पर लाल पट्टी। जब कोमल हाथों ने बंदूक थामी तो 6 लाख एकड़ में फैले बीहड़ और चंबल के इलाके में दहशत फैल गई। फूलन देवी से लेकर मल्लाह गैंग के डाकू उसके बागी तेवरों की आग में पिगलते नजर आए। दशहत ऐसी की पूरे जंगल क्षेत्र में उसके नाम मात्र से ही अच्छे-अच्छों की हवा ढीली हो जाती। निशाना ऐसा कि उड़ते पक्षी को बंदूक के जरिए चंद मिनट में ढेर कर देती। जब वह गैंग के साथ जंगल से बाहर निकलती तो आमजनों से लेकर लालाजनों तक की रूह कांप जाया करती थी। पुलिसिया महकमे के लिए भी वो ऐसा सिरदर्द बनी कि मोस्ट वॉन्टेड की फेहरिस्त में शामिल होते उसे ज्यादा दिन नहीं लगे। उसे कालित हसीना के नाम से भी लोग पुकारते। वक्त ऐसा भी आया जब ये लेडी डकैत जिंदा लोगों की आंख निकाल लिया करती। आखिर में पुलिस के सामने सरेंडर किया और बची जिंदगी जेल में काट रही है।
ग्राम प्रधान पिता के घर पर लिया जन्म
हां हम जिस लेडी डकैत की बात कर रहे हैं, उसका नाम कुसुमा नाइन है। कुसुमा नाइन का जन्म जालौन जिले के टिकरी गांव में 1964 को हुआ था। कुसुमा के पिता ग्राम प्रधान थे। घर पर सरकारी राशन की दुकान थी। कुसुमा का परिवार आर्थिक तौर पर संपन्न था। कुसुमा पूरे परिवार में इकलौती लड़की थी, जिसके कारण परिजन उसे बड़े लाड़-प्यार से रखते थे। कुसुमा बड़ी हुई तो पिता ने उसका दाखिला स्कूल में करवा दिया। जब वह पांचवीं क्लास में गई तब उसकी दोस्ती पड़ोसी माधव मल्लाह से हो गई। कुछ साल के बाद दोस्ती प्यार में बदल गई। फिर अचानक एक दिन वो कुसुमा माधव मल्लाह के साथ घर छोड़ कर भाग गई। पिता की शिकायत पर पुलिस केस दर्ज कर दोनों को दिल्ली से पकड़ लेती है। कुसुमा और मल्लाह को पुलिस जेल भेज देती है। तीन माह के बाद दोनों जेल से बाहर आते हैं। तभी पिता आनन-फानन में कुसुमा की शादी कर देता है। अपनी प्रेमिका की शादी से माधव गुस्से से आगबबूला हो जाता है।
फिर डकैत के साथ बीहड़ में उतरी कुसुमा
प्रेमिका को पाने की चाहते में माधव मल्लाह डाकू विक्रम मल्लाह से मिलता है। विक्रम माधव को अपनी गैंग में शामिल कर लेता था। 6 माह के बाद माधव गैंग का नंबर दो डाकू बन जाता है। साल 1977 में माधव मल्लाह, विक्रम और पूरी गैंग के साथ कुसुमा की ससुराल पहुंच जाता है। उसके पति केदार के साथ माटपीट करता हैं और कुसुमा को उठाकर बीहड़ ले आता है। बीहड़ में फूलन देवी मिलती है, कुसुमा को खूब परेशान करती है। जिस डाकू विक्रम मल्लाह की गैंग ने कुसुमा का अपहरण किया था। वो विक्रम फूलन देवी का बॉयफ्रेंड था। फूलन नई-नई डकैत बनी थी। गैंग में उसकी फुल वजनदारी थी। फूलन कुसुमा से पूरी गैंग के लिए पानी भरवाती, सबका खाना बनवाती और उसे गुलाम की तरह रखती। इन सब के बाद कुसुमा फूलन देवी और अपने पति माधव से नफरत करने लगी थी, क्योंकि फूलन उसको प्रताड़ित करती और माधव फूलन का ही साथ देता था।
फिर लालाराम के गैंग में शामिल हुए कुसुमा
एक दिन फूलन ने विक्रम मल्लाह से कहा, कुसुमा को हमारे दुश्मन डाकू लालाराम का कत्ल करने के लिए भेजो। फूलन के कहने पर विक्रम उसे डाकू लालाराम को अपने प्यार में फंसा कर उसका कत्ल करने को कहता है। मजबूरी में कुसुमा को जाना पड़ता है। कुसुमा नाइन लालाराम के साथ कई माह रही। इसके बाद वह लालाराम की गैंग में शामिल हो गई। फिर कुसुमा नाइन और लालराम के बीच दोस्ती हो जाती है। फिर एक दिन ऐसा भी आता है जब लालराम के कहने पर कुसुमा नाइ विक्रम मल्लाह की हत्या करवा देती है। मुठभेड़ में विक्रम के साथ कुसुमा का पति माधव भी मारा जाता है। इस कांड के बाद कुसुमा नाइन लालराम की खास बन जाती है। कुसुमा लालाराम की गैंग के साथ मिलकर लूट अपहरण जैसी घटनाओं की अंजाम देने लगती है। उधर, फूलन देवी भी अपना अलग गैंग बना लेती है और लालराम-कुसुमा नाइन को मारने के लिए दिनरात एक किए हुए थी।
कुसुमा ने 15 मल्लाह समाज के लोगों की हत्या
14 मई, 1981 में फूलन देवी डाकू लालाराम और श्रीराम से अपने गैंग रेप का बदला लेने के लिए बेहमई जाती है। दोनों वहां नहीं मिलते, लेकिन फिर भी फूलन ने 22 राजपूतों को लाइन से खड़ा करके गोली मार दी थी। इस घटना ने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी। इस कांड के बाद लालाराम और उसकी माशूका बन चुकी कुसुमा बदला लेने के लिए उतावले होने लगे थे। उधर, बेहमई कांड के एक साल बाद यानी साल 1982 में फूलन आत्मसमर्पण कर देती है। लालाराम और कुसुमा का गैंग एक्टिव रहता है। साल 1984 में कुसुमा फूलन देवी के बेहमई कांड का बदला लेती है। फूलन के दुश्मन लालाराम के प्रेम में डूबी कुसुमा अपनी गैंग के साथ बेतवा नदी के किनारे बसे मईअस्ता गांव पहुंचती है। उस गांव के 15 मल्लाहों को लाइन से खड़ा कर गोली मारी और उनके घरों को आग के हवाले कर दिया।
फिर कहा जाने लगा चंबल की शेरनी
इसके कुछ दिनों बाद कुसुमा नाइन ने बीहड़ में संतोष और राजबहादुर नाम के मल्लाहों की आंखें निकाल ली थीं और उन्हें जिन्दा छोड़ दिया था। कुसुमा की क्रूरता के कारण डकैत उसे यमुना-चंबल की शेरनी कह कर बुलाने लगे थे। कुसुमा जिन लोगों का अपहरण करती उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करती थी। चूल्हे में लगी जलती हुई लकड़ी को निकाल कर उनके बदन को जलाती थी। जंजीरों से बांध कर उन्हें हंटर से मारा करती थी। कुसुमा ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था, मैं बीहड़ में 25 साल तक सिर्फ गुस्से में रही। गुस्सा किस बात का था ये नहीं जानती। कुसुमा की क्रूरता की हदें तब पार हो गईं जब उसने जालौन जिले के एक गांव की महिला को उसके बच्चे समेत जिंदा जला दिया था। ये मामला पुलिस की फाइल में आज भी दर्ज है और कुसुमा उसकी सजा काट रही है।
फक्कड़ बाबा की गैंग में शामिल हुई कुसुमा
कुसुमा नाइन की बीहड़ में धमक बढ़ती जा रही थी। ये बात लालाराम को अजम नहीं हो रही थी। ऐसे में दोनों के बीच विवाद शुरू होने लगे। कुसुमा ने हथियारों के साथ लालराम के गिरोह से दूरी बना ली और डाकुओं के गुरु कहे जाने वाले रामाश्रय तिवारी उर्फ फक्कड़ बाबा के पास चली गई। डाकू फक्कड़ बाबा ने उसे अपनी गैंग में शामिल कर लिया। कुछ ही दिनों में वो फक्कड़ गैंग की दूसरी मुख्य सदस्य बन गई। कुसुमा और बाबा के बीच इश्क हो गया। बाबा ने उसे विदेशी हथियार दिए। एक मुठभेड़ में उसने 3 पुलिसवालों को मार गिराया था। साल 1995 में कुसुमा ने एक रिटायर्ड एडीजी हरदेव आदर्श शर्मा का अपहरण कर लिया था। पैसे नहीं मिलने पर उनकी हत्या कर दी थी। इस घटना के बाद पुलिस ने कुसुमा पर 35 हजार रुपए का इनाम रख दिया था। इनाम रखने के बावजूद पुलिस कुसुमा को नहीं पकड़ पा रही थी।
2004 में कुसुमा ने किया सरेंडर
फक्कड़ बाबा भगवान में बहुत ज्यादा श्रद्धा रखता था। लूट, अपहरण हत्याएं तो करता था, लेकिन बीहड़ के बाकी डाकुओं को प्रवचन भी दिया करता था। इसके लिए बाकी डाकू उसे इज्जत भी दिया करते थे। कई डाकू उसे अपना गुरु भी मानते थे। बीतते समय के साथ फक्कड़ अध्यात्म के करीब होता गया। कुसुमा भी दिन-रात उसके साथ रहती थी। धीरे-धीरे कुसुमा पर भी उसकी बातों का असर हो गया। अब कुसुमा अपना पूरा जीवन पुलिस के खौफ और बीहड़ में भटकते हुए नहीं बिताना चाहती थी। एक दिन दोनों ने मिलकर सरेंडर करने का फैसला ले लिया। साल 2004 में कुसुमा और फक्कड़ ने अपनी पूरी गैंग के साथ पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। अभी कुसुमा जेल में है, उन्हीं मुकदमों की सजा काट रही है। कुसुमा कानपुर जेल में पुजारिन बन गई थी और भोले बाबा की भक्ति में लीन रहती थी। जेल के अंदर कुसुमा ने सबसे पहले राम लिखना सीखा था। वहीं, डाकू फक्कड़ बाबा भी जेल के अंदर प्रवचन देने लगा है।