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हाल-ए-उपचुनावः-करहल में ‘तेज’ बचा पाएंगे किला, या बीजेपी को मिलेगा ‘विकास’ का सिला

यूपी विधानसभा उपचुनावों में हॉट सीट करहल पर सभी की नजरें टिकी हुई है, तो आज हम अपनी ख़ास प्रस्तुति ‘हाल-ए-उपचुनाव’ में तफ्सील से बात करेंगे मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट की।

by Akhand Pratap Singh
October 21, 2024
in TOP NEWS, उत्तर प्रदेश, विधानसभा चुनाव 2024
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byelection
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मोहसिन खान (नोएडा डेस्क)- यूपी विधानसभा उपचुनावों में हॉट सीट करहल पर सभी की नजरें टिकी हुई है, तो आज हम अपनी ख़ास प्रस्तुति ‘हाल-ए-उपचुनाव’ में तफ्सील से बात करेंगे मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट की। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि रही करहल पर पिछले दो दशकों से सपा का कब्ज़ा रहा है, कहा जाता है कि दो दशकों के भीतर सपा प्रत्याशी को यहां पर किसी दूसरें दल से लड़ाई तो बहुत दूर की बात है कभी मजबूत चुनौती तक भी नहीं मिली।

और करहल में जब खिला था ‘कमल’

80 के दशक में उत्तर प्रदेश byelection की राजनीति में फलक पर चमक रहे मुलायम सिंह यादव के नजदीकि दोस्त दर्शन सिंह यादव के साथ सियासी बिसात पर दूरियां भी पनपनी शुरू हो गई थी, राजनीतिक महत्तवाकांक्षा के चलते 1989 में जिला परिषद के चुनाव में दर्शन सिंह यादव ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और फिर जसवंतनगर से मुलायम के खिलाफ़ चुनाव लड़ते हुए नजदीकि मुकाबलें में हार गए। इसी बीच उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया और 1998 में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री बनाए गए। साल 2000 में करहल से विधायक बाबू सिंह यादव के निधन की वजह से सीट पर उपचुनाव हुआ और सपा ने उनके बेटे अनिल कुमार को मैदान में उतार दिया, जबकि बीजेपी ने दर्शन सिंह के भाई सोबरन को टिकट दिया, वो अलग बात है कि बीजेपी ये उपचुनाव हार गई, लेकिन 2002 के उपचुनाव में करहल में बड़ा उलटफेर हो गया और बीजेपी के सोबरन सिंह यादव ने कमल खिला दिया। सोबरन सिंह यादव के सपा में जाने के बाद से यानि दो दशक से अब तक सपा का ही इस सीट पर कब्जा रहा है।

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बेटा और शिष्य था आमने-सामने, चार दशकों में बदला करहल का दिल

एक वक्त था कि जब एसपी सिंह बघेल मुलायम सिंह यादव के सुरक्षा अधिकारी हुआ करते थे और ऐसा कहा जाता है कि बघेल ने मुलायम सिंह यादव से सियासत के दांव पेंच सीखे थे। 2022 के चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव के सामने भाजपा ने एसपी सिंह बघेल को चुनावी मैदान में उतारा था, चुनावी नतीजों में करहल की जनता ने बेटे और शिष्य की सियासी लड़ाई में बेटे को प्यार दिया। वहीं परिसीमन के बाद 1956 में अस्तित्व में आई करहल सीट पर चार दशकों में अलग अलग राजनीतिक दलों के साथ दिल बदलता रहा, शुरूआत के दौर में कांग्रेस को जीत नसीब हुई, डेढ दशक तक बाबू सिंह यादव का भी सिक्का चला और 1993 में सपा का गठन होने के बाद करहल में समाजवादी पार्टी का दबदबा बना हुआ है।

यह भी पढ़े: UP Byelection 2024: क्या यूपी में कांग्रेस नहीं लड़ेगी उपचुनाव? सपा के साथ नहीं बन रहा तालमेल

करहल की जनता ‘दिल’ में आती है ‘दिमाग’ में नहीं

करहल byelection की जनता के साथ सैफई परिवार का व्यक्तिगत रिश्ता होने की वजह से कह सकते है कि यहां की आवाम दिल में तो आती है लेकिन दिमाग में नहीं और शायद यही वजह रही है कि करहल का सामाजिक समीकरण और केमिस्ट्री पिछले दो दशकों से भाजपा के लिए महौल नहीं बना सका और यही उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती भी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां के कुल मतदाताओं में करीब 40 फीसदी यादव और तकरीबन 5 फीसदी मुस्लिम वोटर है यानि की लगभग 45 प्रतिशत वोट बैंक सपा के साथ रहता है और उसको अलग करना बेहद मुश्किल है। इसके अलावा करहल में अगर बात करें तो बघेल, शाक्य और लोधी में 80 हज़ार से ज्यादा है, वहीं ब्राह्रमण-क्षत्रिय वोटर्स की संख्या 50 हज़ार के आसपास है और एससी मतदाता भी 50 हज़ार के करीब ही है। 2022 के चुनाव में एसपी सिंह बघेल को यहां से 80 हज़ार वोट मिले थे, यानि की बीजेपी प्रत्याशी सपा के वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पाए थे।

सपा से मैदान में ‘तेज’ तो बीजेपी से नाम का ‘वेट’

समाजवादी पार्टी byelection की ओर से तेज प्रताप यादव को करहल सीट से प्रत्याशी बनाया है, जबकि भाजपा से उम्मीदवार के नाम की घोषणा होने का इंतज़ार है। हांलाकि बीजेपी की ओर से करहल सीट पर सपा सांसद धर्मेन्द्र यादव की सगी बहन संध्या यादव के पति अनुजेश यादव का नाम तेजी के साथ आगे चल रहा है, उसकी वजह ये है कि सैफई परिवार की इस परंपरागत सीट पर यादव उम्मीदवार को उतारकर वोट बैंक में सेंधमारी की जा सके, इसके अलावा एसपी सिंह बघेल की बेटी सलोनी बघेल और डा. संघमित्रा मौर्या के नाम पर भी मंथन चल रहा है,जबकि उपचुनाव में ताल ठोक रही बसपा किसी शाक्य प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतार सकती है।

Tags: byelectionkarhalUtar pradesh
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