जानिए यूपी के ‘देवा’ की दरगाह पर क्यों खेली जाती है होली, बढ़ी दिलचस्प है इसके पीछे की कहानी

बाराबंकी के सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह की होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, यहां देश-विदेश से लोग रंगोत्सव में होते हैं शामिल।

लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। ब्रज, कानपुर, काशी के बाद यूपी की बराबंकी जनपद की होली भी कुछ खास होती है। यहां देवा में स्थित सूफी संत हाजी वरिश अली शाह की मजार है और यहां की होली विश्व प्रसिद्ध है। मजार पर होली खेलने के लिए रंगोत्सव के दिन देश के कोने-कोने से सभी धर्मों के मानने वाले आते हैं। और गुलाल और गुलाब के फूलों से होली खेलते हैं।

यहां की होली की अद्भुत

बराबंकी को सूफी संत की नगरी कहा जाता है। यहां की होली की अद्भुत है, जो पूरे अवध की शान कही जाती है। रंग-बिरंगे गुलाल और गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों से मजार परिसर में खेले जाने वाली होली में जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, दिल्ली, बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान सहित कई राज्यों के लोग यहां मजार की होली को देखने और खेलने के लिए बड़ी संख्या में जुटते हैं। होरियारे मजार पर हाजिरी लगाने के साथ गुलाल-गुलाब के फूलों से होली खेलते हैं।

हिन्दू मित्र ने करवाया था मजार का निर्माण

जानकार बताते हैं कि बाराबंकी के देवा में स्थित सूफी संत हाजी वरिश अली शाह की मजार का निर्माण उनके हिन्दू मित्र राजा पंचम सिंह ने कराया था। इस मजार पर मुस्लिम समुदाय से कहीं ज्यादा संख्या में हिन्दू समुदाय के लोग आते हैं। इसलिए सूफी संत हाजी वारिस अली शाह ने यह संदेश दिया जो रब है, वही राम है। जानकार बताते हैं, इस दरगाह पर होली खेलने की परंपरा हाजी वारिस अली शाह के जमाने से ही शुरू हुई थी। उस वक्त होली के दिन उनके चाहने वाले गुलाल व गुलाब के फूल लेकर के आते थे। उनके कदमो में रखकर होली खेलते थे। तभी से ये परम्परा चली आ रही है।

भाईचारे की मिसाल

स्थानीय लोगों ने बताया यहां की होली में सैकड़ों साल पहले लोग गुलाल वह फूल लेकर आते थे। सरकार के कदमों में रख देते थे। सरकार सबको आशीर्वाद देते थे। सब लोग सरकार से मिलकर घर वापस चले जाते थे। करीब सौ साल पहले ये त्यौहार इसी तरह मनाया जाता रहा है। आज भी देश के कोने-कोने से सभी धर्म के लोग यहां आते हैं। एक दूसरे को रंग व गुलाल लगाकर होली खेलते हैं और भाईचारे की मिसाल पेश करते हैं।

 निकलता है जुलूस

स्थानीय लोग बताते हैं कि होली के दिन एक जुलूस गाजे-बाजे के साथ निकाला जाता है, जो कौमी एकता गेट से सुबह 8 बजे उठकर दिन में 12 बजे दरगाह पर पहुंचता है। यहां देश के कोने-कोने से आए हुए सभी धर्मों के श्रद्धालु जमकर रंग खेलते हैं। यहां पर मजार के लोग जुलूस का इस्तकबाल करते हैं। स्थानीय लोग कहते हैं, होली के दिन यहां हिंदू-मुस्लमान नहीं बल्कि इंसानियत नजर आती है। लोग एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर फूलों से होली खेलते हैं और देश में अमनशांति की दुआ मांगते हैं।

Exit mobile version