Delhi CM: दिल्ली में मुख्यमंत्री पद को लेकर चर्चाएँ तेज़ हो गई हैं। हर दिन नए दावेदारों के नाम सामने आते हैं, जिनमें सबसे प्रमुख नाम (Delhi CM) प्रवेश वर्मा, आशीष सूद और रेखा गुप्ता के हैं। भाजपा नेतृत्व के लिए यह फैसला लेना कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि पार्टी को न केवल चुनावी रणनीति पर ध्यान देना है, बल्कि जातीय समीकरण और दिल्ली की बदलती राजनीति को भी ध्यान में रखना है। वहीं, दिल्ली के भाजपा कार्यकर्ता और जनता का ध्यान इस पर है कि आखिरकार कौन सी जोड़ी पार्टी के लिए सबसे उपयुक्त साबित होगी। क्या प्रवेश वर्मा का सपना टूटेगा, या फिर आशीष सूद और रेखा गुप्ता के नाम पर पार्टी की मुहर लगेगी?
क्या वही होगा जो दीया कुमारी का हुआ था?
राजस्थान की राजनीति में दिए गए कुमारी का नाम अक्सर उस मोड़ पर आता है, जब भाजपा के नेता सीएम के (Delhi CM) नाम को लेकर उलझन में पड़ते हैं। राजस्थान में भाजपा नेतृत्व ने दिया कुमारी को सीएम की दौड़ में सबसे आगे रखा था, लेकिन अंत में भजनलाल शर्मा जैसे लो-प्रोफाइल नेता को सीएम पद सौंप दिया गया और दिया कुमारी को डिप्टी सीएम बना दिया गया। कुछ इसी तरह का ट्विस्ट दिल्ली में प्रवेश वर्मा के लिए भी हो सकता है।
दिल्ली में प्रवेश वर्मा के नाम की सबसे ज्यादा चर्चा थी, खासकर तब जब उन्होंने अरविंद केजरीवाल को चुनौती दी थी। वे दिल्ली के आउटर इलाके में जाट समुदाय के प्रभावशाली नेता रहे हैं और भाजपा के लिए उनका नाम अहम था। प्रवेश ने 2020 के चुनाव में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और केजरीवाल को कड़ी टक्कर दी। नतीजतन, भाजपा की ओर से उनकी ओर समर्थन मिला और उनके सीएम बनने की संभावना काफी बढ़ गई। हालांकि, अब आंतरिक सूत्रों के मुताबिक, भाजपा नेतृत्व दिल्ली के सीएम के लिए उनकी उम्मीदवारी को लेकर अभी कोई पक्का निर्णय नहीं ले पाया है।
प्रवेश वर्मा की स्थिति में राजस्थान की दिया कुमारी जैसा ट्विस्ट दिखाई दे रहा है। भाजपा (Delhi CM) नेतृत्व के सामने जाटों की अहमियत को भी देखना होगा। अगर वर्मा को सीएम नहीं बनाया जाता, तो इसका असर पार्टी के वोट बैंक पर पड़ सकता है, क्योंकि जाटों को यह संदेश जाएगा कि भाजपा उनके साथ नहीं खड़ी है।
आशीष सूद- भाजपा का पंजाबी चेहरा?
दिल्ली में पंजाबी समुदाय की राजनीति हमेशा (Delhi CM) अहम रही है और भाजपा भी इस तथ्य को समझती है। आशीष सूद का नाम भी सीएम पद की दौड़ में सामने आया है, और उनके पंजाबी होने के कारण उनकी संभावना मजबूत होती दिख रही है। सूद ने भाजपा के युवा मोर्चे में काम करते हुए संगठन में काफी मजबूत पकड़ बनाई है। इसके अलावा, वे पार्टी के कई महत्वपूर्ण नेताओं के करीबी भी माने जाते हैं, जिनमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान प्रमुख हैं।
आशीष सूद की खासियत यह है कि वे दिल्ली भाजपा के एकमात्र पंजाबी नेता हैं जिनका नाम सीएम की रेस में सामने आ रहा है। उनका पार्षद और एसडीएमसी के सदन के नेता के रूप में कार्यकाल भी उनके पक्ष में जाता है। उन्होंने जनकपुरी से 19,000 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी, हालांकि 2020 में उन्हें हार का सामना भी करना पड़ा था। सूद के पक्ष में एक और बड़ी बात यह है कि भाजपा दिल्ली में पंजाबी चेहरा प्रस्तुत करना चाहती है, और आशीष सूद इस पहलू को बखूबी निभा सकते हैं।
रेखा गुप्ता और शिखा रॉय, महिलाओं का चेहरा राजनीति में?
दिल्ली में भाजपा के पास महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने का अवसर भी है। यदि पार्टी किसी महिला नेता को सीएम पद का दावेदार बनाती है, तो यह कई दृषटिकोन से फायदेमंद हो सकता है। रेखा गुप्ता और शिखा रॉय जैसे नाम इस दौड़ में सामने हैं। रेखा गुप्ता एक कद्दावर नेता हैं जो आरएसएस से जुड़ी रही हैं। वे भाजपा के महिला मोर्चे की महासचिव भी रह चुकी हैं। इसके अलावा, शिखा रॉय ने भी पार्टी के संगठनात्मक पदों पर कार्य किया है और उनका नाम भी सीएम पद की रेस में लिया जा रहा है।
अगर भाजपा महिला सीएम (Delhi CM) का चुनाव करती है, तो इसका एक बड़ा लाभ यह होगा कि किसी एक जाति या समुदाय को लेकर पार्टी पर दबाव कम होगा। खासकर दिल्ली की राजनीति में जहां समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संतुलन बनाना बेहद जरूरी है। भाजपा यदि महिला सीएम उम्मीदवार को नामित करती है, तो इससे पार्टी को एक नया संदेश भी मिलेगा और यह एक मजबूत राजनीतिक रणनीति साबित हो सकती है।
कौन होगा दिल्ली का अगला सीएम?
दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा के पास कई मजबूत उम्मीदवार हैं, लेकिन पार्टी का नेतृत्व अभी भी किसी एक नाम पर सहमति नहीं बना पा रहा है। प्रवेश वर्मा, आशीष सूद, रेखा गुप्ता, और शिखा रॉय में से किसी एक को चुनने का निर्णय दिल्ली भाजपा की राजनीति को नई दिशा दे सकता है। भाजपा नेतृत्व को यह समझना होगा कि किसी एक समुदाय या जाति को संतुष्ट करना महत्वपूर्ण है, लेकिन दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य में हर कदम सोच-समझकर उठाना होगा। क्या भाजपा पुराने राजनीतिक समीकरणों से बाहर निकलकर नए चेहरे को अपनाएगी? यह सवाल अब तक अनुत्तरित है।