Ravi Kishan False cases law: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद रवि किशन ने गुरुवार को लोकसभा के शून्यकाल में एक महत्वपूर्ण कानूनी सुधार की मांग उठाई है, जिसमें झूठे मुकदमे दायर करने वालों को कठोर सज़ा देने के लिए एक विशिष्ट कानून बनाया जाए। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि फर्जी आरोपों के कारण निर्दोष व्यक्ति को मानसिक, सामाजिक और आर्थिक पीड़ा झेलनी पड़ती है, उसका परिवार बिखर जाता है और समाज में उसकी साख खत्म हो जाती है।
रवि किशन ने सरकार पर पड़ने वाले अनगिनत झूठे मुकदमों के आर्थिक बोझ का भी उल्लेख किया। सांसद ने अपनी मांग में उन जांच अधिकारियों पर भी कार्रवाई को कानून के दायरे में लाने की बात कही है, जो जानबूझकर झूठे आरोपों को जांच में सही ठहराते हैं। उन्होंने कानून का दुरुपयोग कर फर्जी केस दायर करने वालों पर सख्त कार्रवाई का कानून बनाने की वकालत की है।
False cases are legal terrorism AGAINST MEN.
Ruin careers, Destroy families, Weaponize the system to break innocent men. Time to protect men from legal exploitation.
Thank you @ravikishann Sir for speaking for countless innocent MEN trapped in legal warfare. pic.twitter.com/mJJv7wezaD
— Deepti Rana (@deeptirana65058) December 11, 2025
लंबी न्यायिक प्रक्रिया से बचने के लिए नया कानून ज़रूरी
Ravi Kishan ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति दोषी है, तो उसे सज़ा मिलनी चाहिए, लेकिन किसी निर्दोष पर झूठा मुकदमा दायर होने पर उसका जीवन बर्बाद हो जाता है। उनका कहना है कि मौजूदा कानूनी प्रावधान, जैसे कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 248, जो झूठे आरोप लगाने वाले पर नया केस करने का अधिकार देती है, बहुत लंबी प्रक्रिया है।
सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील अश्विनी दुबे ने इस मांग का समर्थन किया। उन्होंने ‘लाइव हिन्दुस्तान’ से बात करते हुए बताया कि बीएनएस की धारा 248 के तहत नया मुकदमा दायर करने में फिर से वर्षों लग सकते हैं। कई सालों तक अदालतों के चक्कर काटने के बाद बरी हुआ निर्दोष व्यक्ति इस लंबी न्यायिक प्रक्रिया में दोबारा नहीं पड़ना चाहता।
बरी करने वाले आदेश में ही सज़ा का प्रावधान हो
अश्विनी दुबे ने एक प्रभावी समाधान सुझाया है। उनके अनुसार, कानून में ऐसा प्रावधान होना चाहिए कि जब कोर्ट किसी आरोपी को झूठे आरोपों से बरी करने का फैसला दे, तो उसी आदेश में झूठे आरोप लगाने वाले शिकायतकर्ता और उसे जांच में सही बताने वाले जांच अधिकारी (आईओ) को भी सज़ा और जुर्माना दिया जाए।
दुबे ने कहा, “अगर अदालत को लगता है कि क्राइम का आरोप झूठा लगा था तो उसके खिलाफ उसी जजमेंट में कार्रवाई हो। सज़ा मिले और आर्थिक दंड मिले।” उनका मानना है कि इससे झूठे मुकदमे करने वाले लोग डरेंगे और ऐसे मामलों में कमी आएगी।
इन कानूनों का हो रहा है दुरुपयोग
अश्विनी दुबे ने यह भी बताया कि झूठे मुकदमों में अधिकतर मामले एससी-एसटी एक्ट, रेप, शारीरिक शोषण, शादी के झूठे वादे और छेड़छाड़ जैसे गंभीर आरोपों से संबंधित होते हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि कई मामलों में आपसी सहमति से संबंध बनाने वाले वयस्क जोड़ों के बीच रिश्ते में खटास आने पर ‘रेप’ या ‘यौन उत्पीड़न’ का झूठा केस दर्ज करा दिया जाता है, जबकि बाद में यह स्पष्ट होता है कि संबंध आपसी सहमति से था। इसी तरह, एससी-एसटी और छेड़छाड़ से जुड़े कानूनों का भी दुरुपयोग देखा जा रहा है।
सांसद Ravi Kishan की यह मांग न्याय प्रणाली में सुधार और कानून का दुरुपयोग रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है, जिससे निर्दोष लोगों को त्वरित न्याय और झूठे आरोप लगाने वालों को तुरंत दंड सुनिश्चित हो सके।









