लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। केंद्र और यूपी सरकार गरीबों को निशुल्क में सरकारी राशन की दुकानों से गेहूं, चावल और चीनी मुहैया कराती है। कोरोना महामारी के बाद से प्रदेश में ये योजना बदस्तूर जारी है। लेकिन अब भी सरकारी सिस्टम में बैठे चंद भ्रष्ट अफसरान और कोटेदारों के चलते गरीबों के राशन पर डाका डाला जा रहा है। कुछ ऐसा ही एक मामला बरेली, आगरा और मेरठ मंडल में कुछ साल पहले सामने आया था। तब सरकार ने पूरे घोटाले की जांच का आदेश दिया था। गरीबों के हक पर डाका डालने वाले बहुचर्चित राशन घोटाले की परतें अब एक-एक कर खुल रही हैं।
दरअसल, 2015 से 2018 के बीच यूपी में राशन घोटाले का मामला सामने आया था। सरकार ने पूरे मामले की जांच सीआईडी को सौंपी थी। सीआईडी ने करीब 5 साल से लंबित चल रहे तीन मंडलों के 134 केस में से 110 को निस्तारित कर दिया है। सीआईडी कर जांच में सामने आया है कि, बरेली, आगरा और मेरठ मंडल में एक ही आधार कार्ड का उपयोग कर 90 से 100 अपात्र लोगों को राशन वितरित किया गया। इस फर्जीवाड़े में नाबालिगों के नाम का भी इस्तेमाल किया गया। सीआईडी की जांच में पता चला है कि इस घोटाले में अफसर और कोटेदार शामिल हैं। सभी ने मिलकर गरीबों के हक पर डाका डाला है।
सीआईडी ने संबंधित जिलों के एडीएम और जिला पूर्ति अधिकारियों (डीएसओ) की जिम्मेदारी तय करते हुए शासन से कार्रवाई की संस्तुति की है। कुछ डीएसओ के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की भी सिफारिश की गई है। सीआईडी की जांच में पता चला है यह राशन घोटाला कोटेदारों ने बड़ी चलाकी के साथ किया। कोटेदारों ने बीपीएल परिवारों के हिस्से का खाद्यान्न हड़प कर अंजाम दिया था। घोटाले की शिकायत शासन तक पहुंची थीं। सरकार के आदेश पर तीनों मंडलों में आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी। पहले घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू को सौंपी गई। जांच की फाइल आगे नहीं बढ़ने पर सरकार ने फरवरी 2024 में घोटाले का केस सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया।
इस घोटाले में सबसे बड़ा हथियार बना आधार प्रमाणीकरण। राशन डीलरों (कोटेदारों) और खाद्य विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से घोटाले को अंजाम दिया। जांच में सामने आया कि घोटाले को अंजाम देने के लिए आधार प्रमाणीकरण का दुरुपयोग किया गया। खाद्य विभाग के जिला स्तरीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने कोटेदारों से मिलीभगत कर वास्तविक लाभार्थियों के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति के आधार को एडिट कर अपलोड कर दिया और उसे राशन बेचने लगे। इनमें कई नाबालिग भी थे। वहीं शासन को रिपोर्ट भेजने के दौरान वास्तविक लाभार्थी के आधार का विवरण भर दिया। इससे शासन स्तर पर फर्जीवाड़े को पकड़ा नहीं जा सका और वास्तविक लाभार्थी राशन से वंचित रहे।
सीआईडी ने मेरठ मंडल की जांच के दौरान तत्कालीन डीएसओ विकास गौतम को दोषी पाया है और उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है। इस मामले में अदालत में आरोप पत्र भी दाखिल किया जा चुका है। साथ ही कई पूर्ति निरीक्षकों, राशन डीलरों, सेल्समैन और कंप्यूटर ऑपरेटरों के खिलाफ भी कानूनी कार्यवाही की जा रही है। खाद्य आयुक्त रणवीर प्रसाद के अनुसार, इस तरह की धोखाधड़ी को रोकने के लिए एल-1 डिवाइस लागू की जा रही है। यह डिवाइस केवल उसी स्थिति में अंगूठे का निशान स्वीकार करेगी, जब उसमें खून का प्रवाह हो यानी अंगूठे की नकली नकल काम नहीं करेगी। 30 जून तक सभी ई-पॉश मशीनों के साथ यह नई डिवाइस लगाई जाएगी।