लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में इंसानियत को झंकझोर कर देने वाली वारदात सामने आई। यहां भी दिल्ली की निर्भया की तरह दरिंदों ने एक किशोरी के साथ दरिंदगी की। नाबालिग के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। उसे बेरहमी से पीटा। आरोप है कि पीड़िता को दरिंदों ने तेजाब पिलाया। जख्मी हालात में छोड़कर आरोपी फरार हो गए। पुलिस ने पीड़िता को अस्पताल में भर्ती करवाया। एक माह त बवह बेड पर जिंदगी-मौत के बीच की जंग लड़ती रही और गुरुवार रात करीब दो बजे उसने लखनऊ मेडिकल कॉलेज में अंतिम सांस ली।
हमीरपुर जिले के एक गांव निवासी 16 साल की नाबालिग लड़की के साथ बीते 28 अक्टूबर की रात करीब 12 बजे गांव के तीन युवकों ने सामूहिक दुष्कर्म किया। आरोपी घर की दीवार फांदकर छत से घर में घुस आए। तीनों ने नाबालिग को दबोच लिया और ऊपर बने कमरे में ले गए। जिसके बाद तीनों ने मिलकर किशोरी से दुष्कर्म किया और विरोध करने पर उसे जबरियन तेजाब पिला दिया। पिता का आरोप है कि बेटी की बेरहमी से पिटाई की। तेजाब और पिटाई के चलते उसकी हालत गंभीर हो गई। पुलिस ने पीड़िता को जिला अस्पताल में भर्ती करवाया। डॉक्टर्स ने हालत गंभीर होने पर उसे उरई के मेडिकल कॉलेज में रेफर कर दिया।
उरई मेडिकल कॉलेज में प्राथमिक उपचार के बाद पीड़िता को झांसी रेफर कर दिया गया। झांसी में करीब 12 दिन तक इलाज चला। इलाज के बाद भी हालत में सुधार न होने पर डाक्टरों ने उसे लखनऊ रेफर कर दिया। जहां पर सर्जरी के लिए आठ लाख रुपये की मांग की गई और दवाएं भी बाहर से लाने को कहा गया। आर्थिक संकट से जूझ रहे परिजन पीड़ित किशोरी को लेकर घर आ गए। रविवार को किशोरी की हालत बिगड़ने पर परिजन फिर से उसे हमीरपुर जिला अस्पताल लेकर पहुंचे। जहां से उसे कानपुर स्थित हैलट अस्पताल के लिए रेफर किया गया है। यहां भी पीड़ि़ता की हालत में सुधार नहीं हुआ तो उसे लखनऊ मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। और देररात पीड़िता ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
छह अस्पतालों की दौड़, सात बार रेफर, कहीं बेड नहीं, कहीं डॉक्टर नहीं तो कहीं पैसा नहीं। हर मोड़ पर परिवार टूटता गया और सिस्टम लाचार होता रहा। हालत गंभीर होने के बावजूद लखनऊ मेडिकल कॉलेज में उसे तीन दिन तक स्ट्रेचर पर रखा गया। बुधवार को उसे बेड मिला, पर खून की कमी और देर से मिले इलाज ने गुरुवार रात उसकी सांसे छीन लीं। परिवारवालों ने बताया कि पीड़िता को डॉक्टरों ने दूसरी बार कानपुर हैलट से पीजीआई लखनऊ रेफर कर दिया। पीजीआई में दो दिन तक उपचार चला और हल्का सुधार भी दिखाई दिया, लेकिन डॉक्टरों ने सर्जरी के लिए पिता से दो लाख रुपये जमा करने को कहा। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण पिता रकम जमा नहीं कर सके। पैसों की व्यवस्था न होने पर पीड़िता को लखनऊ मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया।
यहां भी पीड़िता की हालत में सुधार नहीं हुआ। उसे तीन दिन तक स्ट्रेचर पर रखा गया, लेकिन बेड मिला, न वार्ड, न तत्काल इलाज। बुधवार दोपहर करीब तीन बजे उसे सर्जरी वार्ड में शिफ्ट किया गया। डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची के शरीर में मात्र चार पॉइंट खून है, तुरंत रक्त चढ़ाना जरूरी है। गुरुवार पूरे दिन अस्पताल में खून उपलब्ध नहीं हो सका। बाद में जलालपुर इंस्पेक्टर अजीत सिंह ने अस्पताल स्टाफ से बात कर रक्त की व्यवस्था कराई। रात में दो यूनिट रक्त चढ़ाया गया लेकिन देर हो चुकी थी। रात लगभग एक बजे उसे सांस लेने में दिक्कत हुई, मशीन लगाई गई, नली डाली गई और करीब दो बजे उसकी हालत बिगड़ गई और उसने दम तोड़ दिया। मौत के समय माता-पिता वहीं मौजूद थे।
मेरी बेटी कई दिन स्ट्रेचर पर पड़ी रही। अगर समय पर भर्ती हो जाती, इलाज मिल जाता, तो वह बच जाती। जिस दिन इलाज शुरू हुआ, उसी रात बेटी खत्म हो गई। 28 अक्टूबर की रात से मैं घर नहीं गया। मौत से कुछ घंटे पहले गुरुवार शाम लखनऊ पुलिस की एक इंस्पेक्टर व महिला उपनिरीक्षक ने अस्पताल पहुंचकर बच्ची का बयान दर्ज किया था। पुलिस अधीक्षक दीक्षा शर्मा ने कहा पीड़िता को सर्जरी वार्ड में शिफ्ट कराया गया। बेड और ब्लड की व्यवस्था भी कराई गई थी, इलाज जारी था। इंस्पेक्टर अजीत सिंह ने बताया कि पीड़िता का पोस्टमार्टम लखनऊ में कराया जा रहा है और परिवार वहीं मौजूद है।
