Ghazipur News: मदरसा बहरुल उलूम ओरिएंटल कॉलेज बहरियाबाद के मैनेजर अब्दुल वाजिद अंसारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसका सीधा असर 10,500 मदरसा शिक्षकों पर पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश बोर्ड ऑफ मदरसा शिक्षा अधिनियम की वैधता को बरकरार रखते हुए एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। इसके माध्यम से प्रदेश (Ghazipur) में मदरसा एक्ट को जारी रखने का निर्देश दिया गया है, जिससे 16,000 मदरसों के छात्र सरकारी स्कूलों में नहीं भेजे जाएंगे। इस फैसले से मदरसा संचालकों, शिक्षकों और छात्रों के परिवारों में राहत की भावना देखने को मिल रही है, जबकि न्यायालय ने यह भी कहा है कि मदरसे स्नातक और परास्नातक की डिग्रियां नहीं दे सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने न केवल छात्रों को बल्कि मदरसा (Ghazipur) संचालकों और शिक्षकों को भी बड़ी राहत दी है। मंगलवार को, कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया था, जिसमें मदरसा एक्ट को असंवैधानिक करार दिया गया था। अब्दुल वाजिद अंसारी ने कहा कि यह फैसला एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो शिक्षा के क्षेत्र में एक सकारात्मक बदलाव लाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि UP मदरसा एक्ट के सभी प्रावधान मूल अधिकार या संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का उल्लंघन नहीं करते हैं। यह निर्णय 5 अप्रैल 2024 को दिया गया था, जब कोर्ट ने पहले के फैसले पर रोक लगा दी थी।
जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “धर्मनिरपेक्षता का मतलब है- जियो और जीने दो,” और यह स्पष्ट किया कि मदरसा एक्ट धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन नहीं करता है। उच्चतम न्यायालय की बेंच ने कहा कि छात्रों को दूसरे स्कूलों में ट्रांसफर करने का निर्देश देना उचित नहीं है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, अंसारी ने कहा कि यह निर्णय मदरसा प्रबंधकों और शिक्षकों की जिम्मेदारी को बढ़ाता है, कि वे मुख्य धारा में जुड़कर बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करें।
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पप्पू अंसारी ने कहा कि धार्मिक शिक्षा को कभी भी अभिशाप नहीं माना गया है और इसे सम्मान के साथ देखा जाना चाहिए। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे बौद्ध भिक्षुओं को प्रशिक्षित किया जाता है और कहा कि अगर सरकार कहती है कि मदरसा छात्रों को धर्मनिरपेक्ष शिक्षा दी जानी चाहिए, तो यह देश की भावना के अनुरूप है।
अंसारी ने (Ghazipur) आगे कहा कि मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा में गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए सभी मदरसा संचालकों को सक्रिय रूप से काम करना होगा। इस फैसले के बाद, मदरसों की जिम्मेदारी और बढ़ गई है, और उन्हें समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल धार्मिक शिक्षा नहीं है, बल्कि एक समग्र विकास भी है, जिसमें बच्चों को सभी आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान किया जाना चाहिए।
इस ऐतिहासिक फैसले के बाद, Ghazipur में मदरसों के छात्रों और शिक्षकों के लिए एक नया युग शुरू होने की उम्मीद है। कोर्ट के इस फैसले ने न केवल स्थानीय समुदाय को राहत दी है, बल्कि यह भारत में धार्मिक शिक्षा के लिए एक सकारात्मक संदेश भी भेजता है।