हमीरपुर। पूरे देश में होली पर्व बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया। होलिका दहन के बाद अब भी यूपी के ऐसे कई शहर हैं, जहां पर पांच दिनों तक रंग-गुलाल उड़ता है। इन्हीं से एक गांव हमीरपुर जनपद का कुडौरा है। यहां पुरूषों के होली खेलने पर बैन हैं। पुरूषों को गांव बदर तो बच्चों को घरों के अंदर बंद कर दिया जाता है। सिर्फ महिलाएं ही रंग-गुलाल उड़ाती है और फाग गीत गाकर होलिकाउत्सव मनाती हैं। ये परंपरा सैकड़ों साल से बदस्तूर जारी है।
यहां सिर्फ महिलाओं ने होली खेली
बुंदेलखंड के हमीरपुर जनपद के कुडौरा गांव की होली पूरे देश से अलग है। यहां होली में पुरुषों का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित होता है। होलिका दहन के बाद महिलाएं पुरूषों को गांव से बाहर जाने को कहती हैं। जो पुरूषों गांव नहीं छोड़ते उन्हें घरों के अंदर बंद कर देती हैं। इसके बाद कुछ लड़कियां को लाठी-डंडे देकर गांव के बाहर पहरेदारी के लिए खड़ा कर देती हैं, जिससे की कोई पुरूषों गांव के अंदर दाखिल न हो सके। फिर महिलाओं की टोलियां गांव में रंगों के साथ ठिठौली करती हैं। फाग गीत गाकर होली पर्व को धूमधाम के साथ मनाती हैं। कुछ ऐसा ही इस वर्ष भी हुआ। यहां सिर्फ महिलाओं ने होली खेली।
होली के दिन महिलाओं की हुकूमत
साल भर घूंघट में कैद रहने वाली महिलाएं होली के दिन अपनी हुकूमत चलाती हैं। अगर किसी पुरुष ने इन महिलाओं की होली को देखने की कोशिश की या गांव से गुजर रही महिलाओं की टोली के सामने आने की जुर्रत की तो उसकी दुर्दशा होना निश्चित है। अगर कोई पुरुष इनके बीच फंस जाता है तो उसे भी लैंघा चोली पहनाकर जबरन नाचने पर मजबूर किया जाता है। इसी डर के चलते होली के दिन पुरुष घरों में रहते हैं और महिलाएं घरों के बाहर होली के हुड़दंग का मजा लेती हैं।
होली का इतिहास पुराना
जिले के कुंडौरा गांव में महिलाओं की होली का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। गांव की बहुएं और बेटियां भी फाग निकलने के दौरान नृत्य करती हैं, जिसे गांव का पुरुष देख नहीं सकता है। यदि किसी ने देखने की हिम्मत भी की तो उन्हें लट्ठ लेकर गांव से ही खदेड़ दिया जाता है। यहां महिलाओं की फाग निकालने की कोई फोटो या वीडियो नहीं बना सकता है। यदि कोई इस अनूठी परंपरा का चोरी-छिपे फोटो लेते पकड़ा गया तो उस पर तगड़ा जुर्माना बोला जाता है और सारी महिलाएं उसकी कोड़ो से पिटाई भी करती हैं।
पुरुषों से अपने बीच में डांस करवाती हैं
गांव की बुजुर्ग महिला मुन्नी देवी की मानें तो कई पीढ़ियों से यह परंपरा चली आ रही है। मुन्नी देवी बताती हैं कि होली के दूसरे दिन पूरे गांव की महिलाएं और लड़कियां एकजुट होकर होली खेलती हैं, जिसकी टोलियां पूरे गांव में घूमती हैं। इस दिन पूरे गांव के पुरुषों को घरों में कैद रहना पड़ता है। गांव के मुख्य मार्गों में भी महिलाएं मौजूद रहती है, जो किसी भी पुरुष के गांव में आते ही उसको रंगों से सराबोर करते हुए परेशान करती हैं। कभी-कभी तो महिलाओं की टोलियां पुरुषों से अपने बीच में डांस करवाती हैं।
डकैत मेंबर सिंह का पूरे क्षेत्र में आतंक
कुदौरा निवासी निर्मल कुमार बताते हैं कि, उन्नीस सौ सत्तर के दशक में कुंडौरा निवासी खूंखार डकैत मेंबर सिंह का पूरे क्षेत्र में आतंक कायम था। इसको पुलिस के मुखबिरों से बेहद चिढ़ थी। जैसे उसे आभास होता था कि फलां व्यक्ति पुलिस से उसके गैंग की मुखबिरी करता है। वह मौका पाकर उसका सफाया कर देता था। ऐसा ही एक वाकया होली के दिन कुंडौरा गांव में घटित हुआ। गांव के लोग फाग निकालने के लिए रामजानकी मंदिर में एकत्र हुए थे। सभी फाग गायन के साथ रंग अबीर गुलाल की मस्ती में मस्त थे।
रसपाल पाल को गोलियों से भून दिया।
इसी बीच यह खूंखार डकैत मेंबर सिंह अचानक अपने साथियों के साथ आ धमका और फाग गायन कर रहे गांव निवासी रसपाल पाल को गोलियों से भून दिया। होली के दिन हुई इस घटना से पर्व का रंग बदरंग हो गया और घटना के बाद गांव में फाग नहीं निकली। अगले वर्ष होली आने पर ग्रामीणों ने फाग न निकालने का निर्णय लिया। पुरुषों के इस निर्णय के बाद होली का रंग बदरंग होता देखकर गांव की महिलाओं ने साहस दिखाते हुए मोर्चा संभाला और पुरुषों की जगह गांव में फाग निकालकर रंगों के इस पर्व में रंग भरने का कठोर फैसला लिया।
महिलाओं की फाग निकालने की परंपरा डाली
महिलाओं के इस निर्णय पर पुरुषों ने भी मुहर लगा दी और फाग के दौरान गांव से बाहर रहने का निर्णय किया। दरियापुर निवासी ओम हरिहर महाविद्यालय के संरक्षक रहे स्व मुन्नी सिंह सेंगर ने बताते थे कि गांव के जमींदार बडे सिंह की इकलौती बहन भूरी देवी ने दरियापुर में महिलाओं की फाग निकालने की परंपरा डाली थी। तब से इस गांव में महिलाओं द्वारा फाग निकालने की परंपरा विद्यमान हो गई और यह फाग आज भी कायम है। इस फाग में वह सब कुछ होता है जो पुरुषों द्वारा निकाली जाने वाली फाग में समाहित होता है।