Indian matrimonial rituals : क्या होता है मटकोड़ U P, Bihar में शादी की खास रस्म क्या है इसका धरती मां से कनेक्शन

मटकोड़ रस्म उत्तर प्रदेश और बिहार की शादियों में निभाई जाने वाली एक रस्म है जो धरती माता से आशीर्वाद लेने और वैवाहिक जीवन की अच्छी शुरुआत का प्रतीक मानी जाती है।

importance of matkod ritual in weddings

Importance of Matkod Ritual in Weddings शादी-ब्याह में कई तरह की रस्में होती हैं, जो न सिर्फ हमारे रीति-रिवाजों को जीवित रखती हैं, बल्कि परिवार और समाज को जोड़ने का काम भी करती हैं। ऐसी ही एक खास रस्म है मटकोड़, जिसे उत्तर प्रदेश और बिहार की शादियों में बड़े प्रेम से निभाया जाता है। शास्त्रों में भी इसका उल्लेख मिलता है, जहां प्रभु श्रीराम और माता सीता के विवाह में इस रस्म की झलक देखी गई थी।

क्या है मटकोड़ का महत्व?

मटकोड़ एक ऐसी रस्म है, जिसमें वर या वधू की तरफ से मिट्टी खोदकर धरती माता का आशीर्वाद लिया जाता है। इस मिट्टी को बाद में मंडप के नीचे चूल्हा बनाकर स्थापित किया जाता है।यह परंपरा वैवाहिक सुख, समृद्धि और स्थिरता का प्रतीक मानी जाती है। इसमें धरती माता को साक्षी मानकर नवजीवन की शुरुआत की जाती है।

कैसे निभाई जाती है मटकोड़ रस्म?

इस रस्म को निभाने का तरीका हर क्षेत्र में थोड़ा अलग होता है, लेकिन मुख्य रूप से इसमें पांच सुहागिन महिलाएं तय स्थान (अक्सर तालाब के किनारे) जाती हैं। वे बांस की डलिया में सिंदूर, सुपारी, अक्षत, जल और कुल्हाड़ी लेकर जाती हैं। फिर दूल्हा या दुल्हन की बुआ मिट्टी को पांच बार कुल्हाड़ी से खोदती हैं और एक छोटा जलाशय बनाती हैं।

इसके बाद भाभी उसमें पानी डालती हैं और सुपारी व सिक्का छिपा देती हैं। फिर दूल्हा/दुल्हन को आंख बंद कर इन्हें ढूंढना होता है। मान्यता है कि जितनी जल्दी ये चीजें मिलती हैं, वैवाहिक जीवन उतना ही सफल होता है।

मटकोड़ का दूसरा रूप

कुछ जगहों पर महिलाएं जौ, पान, कसैली और पीले कपड़े के साथ मंगल गीत गाते हुए गांव से बाहर जाती हैं। बुआ या बहन मिट्टी खोदती हैं, फिर यह मिट्टी घर लाई जाती है और पूजा के बाद आंगन में कलश स्थापित किया जाता है। इसी मिट्टी से चूल्हा बनाकर उस पर हल्दी की रस्म होती है और फिर लावा भूना जाता है।

राम-सीता विवाह से जुड़ी परंपरा

कहा जाता है कि भगवान राम और सीता के विवाह में भी यह रस्म निभाई गई थी, जिससे इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। यह माना जाता है कि इस रस्म को करने से नवविवाहित जोड़े को सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है।

धरती और प्रकृति की पूजा

मटकोड़ रस्म धरती माता के सम्मान और प्रकृति से जुड़े रहने का एक सुंदर तरीका है। मिट्टी से शुरू हुई यह परंपरा जीवन में उर्वरता, शक्ति और आशीर्वाद की प्रतीक बनती है।

सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

मटकोड़ न सिर्फ एक रस्म है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। इसमें पूरे परिवार और समुदाय की भागीदारी होती है, जिससे आपसी रिश्ते और मजबूत होते हैं।गीत-संगीत, हंसी-ठिठोली और सामूहिकता इस रस्म को खास बना देती है।

क्या भविष्य में रहेगी यह परंपरा ज़िंदा?

आज के शहरी और व्यस्त जीवन में इस तरह की परंपराएं धीरे-धीरे सीमित होती जा रही हैं। परंतु यह जरूरी है कि नई पीढ़ी को मटकोड़ जैसे रीति-रिवाजों का महत्व समझाया जाए, ताकि हमारी सांस्कृतिक पहचान बनी रहे।

Exit mobile version