Baghpat News: उत्तर प्रदेश के बागपत जिले (Baghpat News) का सरोरा गांव एक अनूठी मिसाल पेश कर रहा है। जहां देशभर में लोग विवादों को लेकर पुलिस और अदालतों के चक्कर काटते हैं, वहीं सरोरा गांव में सालों से पुलिस का कोई दखल नहीं हुआ है। इस गांव के लोग अपने विवाद खुद निपटाते हैं, और बाहरी हस्तक्षेप की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। यह गांव अपने सौहार्द्र और एकता के लिए आदर्श माना जाता है।
सरोरा गांव की एकता, विवादों का निपटारा पंचायत में
बागपत जिले के अंतिम छोर पर स्थित दोघट थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सरोरा गांव की आबादी लगभग 800 है। यहां के लोग एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते हैं और विवादों का हल पंचायत में ही निकाल लेते हैं। गांव के बुजुर्गों द्वारा स्थापित आदर्शों पर चलने वाले यहां के लोग थाने की चौखट तक नहीं पहुंचते।
गांव में किसी भी विवाद का समाधान गांव की पंचायत करती है और इसीलिए यहां पुलिस को कभी हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। यह गांव आदर्श और सामुदायिक एकता का प्रतीक बन गया है।
आदर्श गांव के पीछे छिपी पीड़ा
हालांकि सरोरा गांव की यह आदर्श छवि एक दु:खद सच्चाई से भी घिरी हुई है। वर्षों से यहां कोई भी शख्स सरकारी सेवा में नियुक्त नहीं हुआ है। गांव के युवा मेहनत तो करते हैं, लेकिन उनकी किस्मत हमेशा उनके साथ नहीं रहती। रोज़गार की तलाश में उन्हें अन्य शहरों में पलायन करना पड़ता है। गांव में केवल एक व्यक्ति सरकारी सेवा में है, वह भी आश्रित कोटे से। यह स्थिति गांव के लोगों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है।
ग्रामीणों की उम्मीदें और भविष्य
गांव के लोग अपने बुजुर्गों की परंपराओं को कायम रखकर जीवन जी रहे हैं, लेकिन वे सरकारी नौकरी और बेहतर अवसरों की उम्मीद भी लगाए हुए हैं। गांव की शांति और एकता सराहनीय है, लेकिन रोजगार के अभाव ने इस गांव के युवाओं को संघर्ष की राह पर धकेल दिया है।
सरोरा गांव, जहां विवाद नहीं बल्कि एकता की मिसाल दी जाती है, सरकारी सेवाओं और रोज़गार के बेहतर अवसरों की आस में बैठा हुआ है। गांव के लोग अपने आदर्शों को कायम रखे हुए हैं, लेकिन भविष्य की दिशा में उन्हें एक नई राह चाहिए।