Uttar Pradesh: इस लेडी IPS पर सिपाहियों ने किया था हमला, अब कोर्ट से 3 दोषी करार; भेजे गए जेल

सितंबर 2010 में, बरेली में एसपी ट्रैफिक कल्पना सक्सेना पर तीन सिपाहियों ने हमला किया था। अब, बरेली कोर्ट ने इन सिपाहियों को दोषी ठहराया है और उन्हें जेल भेज दिया है। सजा की घोषणा 24 फरवरी को होगी।

Uttar Pradesh: वर्तमान में उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले की एडिशनल कमिश्नर पुलिस, कल्पना सक्सेना, पर सितंबर 2010 में बरेली में जब वह एसपी ट्रैफिक के पद पर थी उन पर हमला हुआ था। इस मामले में बरेली कोर्ट ने तीन पुलिसकर्मियों,रविंदर, रावेंद्र, और मनोज,के साथ एक ऑटो चालक धर्मेंद्र को दोषी करार दिया है। इन सभी को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है, अब सभी को 24 फरवरी को सजा सुनाई जाएगी।

घटना का विवरण

सितंबर 2010 में, एसपी ट्रैफिक कल्पना सक्सेना को सूचना मिली कि बरेली के नकटिया इलाके में कुछ पुलिसकर्मी ट्रक चालकों से अवैध वसूली कर रहे हैं। इस सूचना पर, वह तुरंत मौके पर पहुंचीं और देखा कि तीन सिपाही एक कार में बैठकर वसूली कर रहे थे। जब उन्होंने इन सिपाहियों को पकड़ने की कोशिश की, तो वे कार लेकर भागने लगे। कल्पना सक्सेना ने दौड़कर कार का दरवाजा पकड़ लिया, लेकिन सिपाहियों ने कार नहीं रोकी, जिससे वह घसीटकर सड़क पर गिर गईं और गंभीर रूप से घायल हो गईं। घटना के बाद, तीनों सिपाही मौके से फरार हो गए।

पुलिस की कार्रवाई

इस गंभीर घटना के बाद, तत्कालीन एसएसपी ने तीनों सिपाहियों को बर्खास्त कर दिया। हालांकि, बाद में हाई कोर्ट के आदेश पर उन्हें बहाल कर दिया गया। इसके बाद, एक बार फिर विभागीय जांच हुई, जिसमें उन्हें फिर से दोषी पाया गया। इस बार, एसएसपी रोहित सिंह सजवाण ने तीनों सिपाहियों को दोबारा सेवा से हटा दिया।

जांच में लापरवाही

मामले की जांच के दौरान, पुलिस की गंभीर लापरवाही सामने आई। विवेचक ने सबूत मिटाने की कोशिश की, जिससे केस कमजोर पड़ने लगा। यहां तक कि तत्कालीन एसपी ट्रैफिक के गनर और चालक ने भी कोर्ट में आरोपी सिपाहियों की पहचान करने से इनकार कर दिया। यह स्पष्ट हो गया कि केस को जानबूझकर कमजोर किया जा रहा था।

कल्पना सक्सेना का संघर्ष

इन चुनौतियों के बावजूद, कल्पना सक्सेना ने हार नहीं मानी। जब उन्हें लगा कि केस गलत दिशा में जा रहा है, तो उन्होंने वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी एस.के. सिंह, सहायक अभियोजन अधिकारी विपर्णा, और सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक अमृतांशु के माध्यम से अपने पक्ष को मजबूती से रखा। उनके प्रयासों से केस दोबारा जीवित हो गया और आरोपियों को सजा मिलने का रास्ता साफ हुआ।

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