न्यूज वन इंडिया, ब्यूरो: कान्हा की नगरी में अधर्म होता रहा और मथुरा की पूरी प्रशासनिक मशीनरी कान में तेल डालकर सोती रही। तीन सौ पेड़ कट गए लेकिन ना तो वन विभाग की कान पर जूं रेंगा, ना जिला प्रशासन को खबर हुई और ना ही विकास प्राधिकरण की नींद टूटी। और नींद टूटी भी कब जब सैकड़ों हरे पेड़ काट दिए गए। ये सबकुछ तब हुआ है जब मामले को लेकर बीजेपी के विधायक पूरन प्रकाश काफी पहले शिकायत कर चुके थे। और मामला मथुरा से लेकर लखनऊ तक के अफसरों के संज्ञान में था । सवाल उठता है कि जो प्रशासन पेड़ों को काटे जाते वक्त खामोश था, देर से की गई एफआईआर के बाद क्या कार्रवाई करेगा। बहरहाल पहले आइए आपको पूरा मामला समझाते हैं।
विधायक पूरन प्रकाश की शिकायत के बाद भी मामले का संज्ञान नहीं लिया गया, जिसके बाद विधायक ने प्रमुख सचिव और मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा जिसके बाद शासन से डीएम को पत्र भी आया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। डालमिया ग्रुप की कंपनी धड़ल्ले से पेड़ों की कटान करती रही। फिलहाल देर से ही सही वन विभाग ने बिल्डर के खिलाफ 300 से ज्यादा पेड़ों की कटान के लिए मुकदमा दर्ज कराया है।
पेड़ों के काटने के मामले में मालिक मैसर्स डालमिया संस, नारायण प्रसाद डालमिया निवासी लाला लाजपतराय सरानी, कोलकाता, श्रीचंद धनुका पुत्र शंकर लाल धनुका,अरुणा धनुका निवासी लोडन स्ट्रीट कोलकाता, मृगांक धानुका पुत्र चंद्र कुमार धानुका, गुरुकृपा तपोवन भूमि का मालिक, अन्य मालिक व बिल्डर, जेसीबी का मालिक, पोकलिन का मालिक व श्रमिक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया हैछ।
वैसे वन विभाग की कार्रवाई से पहले ही बिल्डर ने बड़ी बड़ी मशीने लगाकर एक रात में ही सैकडो पेड़ों की कटान करा दी थी। काटे गए पेड़ों में नीम, बबूल, पीपल और अन्य प्रजातियों के पेड़ शामिल हैं। जिन जमीनों पर पेड़ काटे गए हैं, वो जमीन कागजों में आश्रम लैंड के नाम से है।
क ओर जहां पीएम मोदी और सीएम योगी मां के नाम से एक पेड़ लगाने की मुहिम चला रहे हैं उनकी नाक के नीचे अफसरशाही बिल्डरों से सांठगांठ कर पेड़ों को काटने में जुटी है। सवाल उठता है कि सत्ताधारी पार्टी के विधायक की शिकायत के बाद भी आखिर जिला प्रशासन की नींद क्यों नहीं टूटी
ग्लोबल वार्मिग देश ही नहीं पूरी दुनिया के लिए बड़ी चुनौती है ऐसे में आने वाले भविष्य को बचाने के लिए पेड़ों को लगाना जरूरी है ये सभी मानते हैं लेकिन चंद पैसों के लालच में भू माफिया और प्रशासनिक अमले की सांठगांठ से सवाल उठ रहे हैं कि एक ओर सरकारें करोड़ों रुपए हरित क्षेत्र विकसित करने पर खर्च कर रही है तो वहीं ऐसे निकम्मे और नकारा सिस्टम के लोग सरकार की तमाम कोशिशों पर पलीता लगाने को पहले से तैयार बैठे हैं। फिलहाल मामले में मुकदमा तो दर्ज हो गया है। लेकिन हरे पेड़ों के कातिलों को सजा कब मिलेगी इसका इंतजार है।