लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद के केराकत का छोटा सा गांव डेहरी इनदिनों सूर्खियों में हैं। यहां मुस्लिम सामज के लोग अपने पूर्वजों के गोत्र को अपने नाम के साथ जोड़ रहे हैं। मुस्लिम समाज के लोग अपने नामों के आगे शुक्ला, मिश्रा और तिवारी लगा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनके पूर्वज पहले हिन्दू हिंदू ब्राह्मण थे। सात पीढ़ियों पहले उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया था। ऐेसे में हमसब ने फिर से एक तरह से घर वापसी की है।
क्या है पूरा मामला
जौनपुर से करीब 30 किमी की दूरी पर केराकत तहसील है। इसी तहसील में डेहरी गांव आता है। यहां पर अधिकांश आबादी मुस्लिम समाज की है। ग्रामीणों ने बताया कि, सात पीढ़ी पहले हमारे पूर्वजों ने इस्लाम धर्म को अपना लिया था। हमसभी पहले हिन्दू ब्राह्मण थे। ऐसे में अब हमने अपने पूर्वजों के गोत्र को अपने नाम के आगे जोड़ रहे हैं। अब रमजानी मिया , रमजादी दुबे, शौकत अली, शौकत शुक्ला नाम रख आन-बान और शान के साथ गांव में रहते हैं।
हमारे पूर्वज हिन्दू
डेहरी गांव निवासी नौशाद अहमद के घर पर शादी है। ऐसे में उन्होंने शादी के कार्ड पर नौशाद अहमद दुबे लिखकर सभी का ध्यान अपनी तरफ खीचा है। नौशाद का कहना है कि उनके पूर्वज पूर्व में हिंदू थे इसलिए अब वह अपने नाम के साथ अपने गोत्र का नाम भी लिख रहे हैं। नौशाद अहमद दुबे ने बताया कि, सात पीढ़ी पहले हमारे पूर्वजों में से एक लाल बहादुर दुबे से हमारे लोग हिंदू से मुसलमान में कनवर्ट हुए थे। वो अपना नाम लाल मोहम्मद लिखने लगे थे और ज्यादातर लोग आजमगढ़ के रानी की सराय से आए थे।
और सैय्यद ये हमारा टाइटिल नहीं
नौशाद ने बताया कि आजमगढ़ के मार्टिनगंज तहसील के एक गांव बीसवां है, जहां सुभाष मिश्रा के करीब 14 पीढ़ी पहले मिश्रा से शेख हुए थे। वहां के दोनों परिवार मिश्रा और शेख को लोग जानते हैं कि पूर्व में वो मिश्रा यानी हिन्दू थे इसलिए दोनों परिवार आज भी सौहार्द के माहौल में रह रहे हैं। गांव के दूसरे निवासी इसरार अहमद दुबे का कहना है कि हम सभी से अपील करेंगे कि हम अपनी जड़ों से जुड़े शेख,पठान, सैय्यद ये हमारा टाइटिल नहीं है। विदेशों से आए शासकों ने ये टाइटिल दिया है।
इस वजह से उठाया ये कदम
इसरार अहमद दुबे कहते हैं, इसलिए अपने टाइटिल को खोज कर अपने जड़ों से जुड़े जिससे हमारा देश मजबूत हो और हम आपस में सौहार्द पूर्वक रह सकें। गांव के अन्य मुसलमानों का भी यही कहना है कि उनके पूर्वज ब्राह्मण थे और उन्होंने अपनी विरासत और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए हमने ये कदम उठाया। हमारे पूर्वजों ने जो गलती डर के कारण की, उसे हम सुधार रहे हैं। इस कदम से भारत में भाईचारा बढ़ेगा। हमारी संस्कृति और धरोहर को पंख लगेंगे।