कनपुर ऑनलाइन डेस्क। कातिल का कत्ल, वादी और गवाहों की मौत के बाद आखिरकार बेहमई नरसंहार के मुकदमे का 43 वर्ष बाद फैसला आया। कानपुर देहात की एंटी डकैती कोर्ट ने 14 फरवरी 2024 को अंतिम फैसला सुनाते हुए एक अभियुक्त को आजीवन कारावास सुनाई। अब फूलनदेवी इस दुनिया में नहीं। ऐसे में आज भी लोग ‘बैंडिड क्वीन’ का नाम सुनकर सिहर जाते हैं। फूलनदेवी ने 14 फरवरी 1981 को एक ऐसे नरसंहार को अंजाम दिया, जो देश ही नहीं बल्कि दुनिया के अखबारों की हेडलाइन बना। गिरोह भले ही अब इतिहास के पन्नों में सिमट गया हो लेकिन बेहमई की हवाओं में सन्नाटे के बीच आज भी उसके किए नरसंहार के बाद की चीखें सुनाई दे जाती हैं। सामूहिक दुष्कर्म का बदला लेने के लिए बंदूक उठाने वाली फूलन डकैत गिरोह का हिस्सा बनीं। बेहमई कांड के बाद उसे इंस्पेक्टर का पदनाम दिया। जब गैंग की कमान फूलन के हाथों में आई तो उसने डकैतों को पद दिए। किसी को आईजी बनाया तो किसी को डीआईजी। जंगल में बैंक खडी की। मैनेजर को नियुक्त किया, जो डकैतों को पगार देता।
ये रही कहानी फूलनदेवी की
फूलनदेवी का जन्म जालौन जनपद के गांव घूरा का पुरवा में 10 अगस्त 1963 को हुआ था। 10 साल की उम्र में पिता ने अधेड़ के साथ फूलनदेवी की शादी कर दी। पति नाजुक फूलन के साथ दरिंदगी करता। ग्रामीणों के साथ दुष्कर्म करवाता। पति की प्रताड़ना से आहत होकर वह मायके आ गई। यहां डकैतों की उस पर नजर पडी। उसके अगवा कर लिया गया और कईदिनों तक अस्मत लूटी गई। वह किसी तरह भाग निकली और गांव आकर जुल्म करने वालों के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की। इससे वह डकैतों तक जा पहुंची और सरदार बाबू गुज्जर और विक्रम मल्लाह के गिरोह क हाथ लग गई। बाबू गुज्जर ने फूलन पर बुरी नजर डाली तो गैंग के दूसरे डकैत विक्रम मल्लाह ने उसकी हत्या कर दी और गैंग का सरदार बन गया था। लालाराम ने विक्रम को मौत के घाट उतार दिया। फूलनदेवी को कब्जे में लेकर बेहमई गांव पहुंचा। बेहमई गांव में कई दिन तक सामूहिक दुष्कर्म किया गया और उसे निर्वस्त्र गांव में घुमाया गया, भूखे प्यासे रखा गया।
पाकिस्तानी रायफल से चलाई गोलियां
बेहमई में हुई दरिंदगी का बदला लेने के लिए फूलन डकैतों के बीच बंदूक उठा ली। एक दिन उसे खबर मिली कि बेहमई में एक लड़की की बारात आने वाली है। यह लड़की लालाराम के परिवार की है। इसमें पूरी संभावना थी कि लालाराम अपने भाई के साथ मौजूद रहेगा। फूलनदेवी के लिए यह बड़ी खबर थी। वह करीब डेढ़ साल से इसी खबर का इंतजार कर रही थी। अब मौका मिला तो वह दल बल के साथ बेहमई पहुंच गई। वहां समारोह स्थल को फूलन के साथियों ने घेर लिया और खुद फूलन हाथ में 2.2 रायफल, जो पाकिस्तानी फौज का प्रमुख हथियार था, लेकर अंदर घुस गई। उसे वहां लाला राम तो नहीं मिला, लेकिन फूलन में 20 लोगों को गोलियों से भून डाला। उस समय उत्तर प्रदेश में बीपी सिंह की सरकार थी और केंद्र में इंदिरा गांधी की। एक साथ 20 लोगों की दर्दनाक हत्या से देश और प्रदेश की सरकार हिल उठी. इंदिरा गांधी ने बीपी सिंह से जवाब तलब कर लिया।
फूलन देवी का नाम था इंस्पेक्टर
बेहमई नरसंहार के बाद फूलनदेवी को गिरोह में इंस्पेक्टर कहा जाने लगा था। जबकि आइजी और मेजर पद भी डकैतों ने अपने नाम के आगे इस्तेमाल किए थे। डाकू मलखान सिंह को आईजी कहा जाता था। फिर विक्रम मल्लाह को डीआईजी। इसके अलावा गैंग के अन्य सदस्यों के नाम भी हेड कांस्टेबल, डीएसपी के साथ ही मेजर के नाम पर रखे गए थे। सभी डकैत खाकी वर्दी ही पहनते थे, उसमें बाकायदा स्टार भी लगे होते थे। जानकार बताते हैं कि फूलनदेवी को गैंग के लोग इंस्पेक्टर बुलाते थे। गैंग की मुखिया बनने के बाद फूलनदेवी डकैतों को लूट की रकम से वेतन भी दिया करती थी। बेहमई कांड के बाद पुलिस फूलनेदवी के पीछे पड़ गई। दर्जनों डकैत एनकाउंटर में मारे गए। फूलन भी पुलिस की रडार पर थी। फूलन के आईजी-डीआईजी ढेर किए जा चुके थे। गैंग में डकैतों की संख्या कम पड़ गई। असलहे और कारतूस कम पड़ने लगे।
अर्जुन सिंह की पहल पर किया था सरेंडर
बीपी सिंह ने भी आदेश जारी कर दिया क किसी हाल में जिंदा या मुर्दा फूलनदेवी को पकड़ा जाए। इस आदेश के बाद 124 पुलिस कर्मियों की टीम 24 घंटे लगातार फूलनदेवी की तलाश करने लगी। इधर, फूलनदेवी और उसकी गैंग ने भी मौकी की नजाकत को समझते हुए मध्य प्रदेश के भिंड मुरैना में शरण ले ली। आखिर में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की पहल पर फूलनदेवी ने अपनी शर्तों पर मध्य प्रदेश में सरेंडर किया। डकैत बनने के बाद फूलनदेवी अमीरों को लूटती थी और गरीबों की मदद करती थी। उसने महज 37 साल के आपराधिक जीवन में एक हजार से अधिक गरीब लड़कियों की शादी कराई थी। इसलिए उसके चाहने वालों की संख्या बहुत ज्यादा थी। ऐसे में मुलायम सिंह को फूलनदेवी में करंट नजर आया। उन्होंने फूलनदेवी को राजनीति में लाने का ऐलान कर दिया।
2001 में फूलनदेवी की कर दी गई थी हत्या
फूलन पर 22 लोगों की हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के आरोप थे और उसे जेल में रहना पड़ा था। 1993 में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार ने फूलन पर लगे आरोपों को वापस लिया और 1994 में उसे जेल से रिहाई मिली थी। इसके बाद फूलन ने उम्मेद सिंह से शादी की और समाजवादी पार्टी से राजनीतिक सफर शुरू किया। वर्ष 1996 में समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़कर फूलन सांसद बनीं। 1998 में हार गईं लेकिन 1999 में एक बार फिर जीतकर संसद पहुंची। 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा ने गोली मारकर फूलन की हत्या कर दी थी। राणा ने गिरफ्तारी के समय कहा था कि उसने बेहमई कांड का बदला लिया है। फूलनेदवी पर फिल्में भी बनाई। किताबें भी लिखी गई।
डकैतों ने आईपीएस-मेजर नाम रखे
साल 2003 में पुलिस ने जालौन से लेकर आगरा तक बीहड़ में कांबिंग के साथ सुरागरसी शुरू की तो पता चला कि निर्भय गुर्जर खुद को वीर निर्भय गुर्जर आइपीएस कहता था और उसके साथी भी इसी नाम से उसका परिचय देते थे। रज्जन गुर्जर के गिरोह का साथी भदही मेजर कहलाता था। उसका नाम मेजर इसलिए पड़ा क्योंकि वह गिरोह की एलएमजी लेकर चलता था। कहा जाता है कि आईपीएल दलजीत चौधरी ने बीहड़ को डकैतों से आजाद करवाने में अहम रोल निभाया था। एक रिटायर्ड डीएसपी बताते हैं कि साल 2003 से 2006 तक डकैतों का सफाया किया था। उस दौरान डकैतों के इन पदनामों की जानकारी मिली थी। उस वक्त करीब 55 डकैत मारे गए थे। अब बीहड़ डकैतों के चंगुल से मुक्त है। आईपीएस दलजीत सिंह चौधरी ने नौकरी के कई बरस जंगलों में बिताए। डकैतों की कला सीखी और उसी के जरिए उनका खात्मा किया।