Bisrakh, Greater Noida (Uttar Pradesh): जब देशभर में दशहरा का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है, वहीं उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले के बिसरख गाँव में इस दिन उदासी का माहौल रहता है। बिसरख, जिसे रावण का पैतृक गाँव माना जाता है, दशहरे के अवसर पर अनोखी परंपरा निभाता है – यहाँ न रामलीला का मंचन होता है और न रावण का पुतला जलाया जाता है। गाँव वालों के अनुसार, रावण को एक महान शिवभक्त, विद्वान और क्षत्रिय गुणों से युक्त माना जाता है, और इसलिए यहाँ रावण का सम्मान किया जाता है।
रावण का पैतृक गाँव और बिसरख
Bisrakh गाँव का प्राचीन इतिहास इसे एक विशेष पहचान देता है। मान्यता है कि यह गाँव रावण के पिता, ऋषि विश्रवा का जन्मस्थान था, और इसी स्थान पर रावण का जन्म हुआ था। गाँव के शिव मंदिर में मिले महंत रामसाद शास्त्री ने बताया कि बिसरख में रावण का मंदिर है, और यहाँ के लोग रावण को भगवान शिव का भक्त मानते हैं। इस गाँव का नाम पहले ‘विश्वेशरा’ था, जो ऋषि विश्रवा के नाम पर पड़ा था, लेकिन समय के साथ इसका नाम बिसरख हो गया।
गाँव के बुजुर्गों के अनुसार, यह शिवपुराण में भी वर्णित है कि ऋषि विश्रवा ने यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। अब तक गाँव में 25 प्राचीन शिवलिंग प्राप्त हुए हैं, जिनमें से एक की गहराई का आज तक कोई छोर नहीं मिला है।
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दशहरा नहीं मनाने की परंपरा
Bisrakh गाँव में दशहरा नहीं मनाने की परंपरा सालों पुरानी है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि गाँव में कई बार रामलीला का आयोजन किया गया था, लेकिन हर बार किसी न किसी अप्रिय घटना के बाद इसे रोकना पड़ा। दो बार रामलीला के आयोजन के दौरान कलाकारों की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद गाँववालों ने रामलीला और रावण दहन पूरी तरह से बंद कर दिया।
रावण का सम्मान और गाँववालों की आस्था
गाँव के लोगों को इस बात का मलाल है कि रावण को पापी और बुराई का प्रतीक बना दिया गया, जबकि वह एक महान शिवभक्त और विद्वान था। इसीलिए, यहाँ के लोग रावण का पुतला जलाना अशुभ मानते हैं। रावण के मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है, जो यहाँ अपनी मुरादें लेकर आते हैं। बिसरख गाँव दशहरे के दिन भले ही शांति और उदासी में डूबा हो, लेकिन इसकी मान्यताएँ और परंपराएँ इसे एक अद्वितीय स्थान बनाती हैं।