SP Kasnhiram Poster: फिर मिले मुलायम-कांशीराम, करीब 3 दशकों बाद हुआ चमत्कार… सपा की नई रणनीति से होगा कमाल?

समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी के तहत एक नया कदम उठाया है। लखनऊ के सहकारिता भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में पार्टी के पोस्टरों पर बसपा के संस्थापक कांशीराम की तस्वीर दिखी, जो सपा की दलित और पिछड़े समाज को जोड़ने की रणनीति का हिस्सा है।

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SP Kasnhiram Poster: उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) ने एक नया कदम उठाया है, जिसे राजनीतिक विश्लेषक दलित वोटबैंक को साधने के रूप में देख रहे हैं। बुधवार को लखनऊ के सहकारिता भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में सपा के पोस्टरों और बैनरों पर बसपा के संस्थापक कांशीराम की तस्वीर नजर आई। यह पहल सपा की बदलती रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है, जिसमें दलित, पिछड़े और वंचित वर्ग को जोड़ने का उद्देश्य नजर आ रहा है। पार्टी के नेताओं ने इस कदम को कांशीराम के योगदान को सम्मान देने और उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाने के रूप में प्रस्तुत किया।

कांशीराम का सम्मान और सपा की दिशा

SP के पूर्व मंत्री और लखनऊ मध्य से विधायक रविदास मेहरोत्रा ने इस अवसर पर कहा, “SP हमेशा से कांशीराम का सम्मान करती रही है और अब पार्टी उनके योगदान को पोस्टरों और बैनरों के जरिए दिखा रही है।” उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव दलित, पिछड़े और वंचित समाज के अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। यह कदम स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि सपा अब इस वर्ग को अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं में शामिल करने के लिए ठोस प्रयास कर रही है।

राजनीति में बदलाव की आहट

राजनीतिक विश्लेषक जैद अहमद फारुकी का मानना है कि यह कदम 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले समाजवादी पार्टी द्वारा अपनी राजनीतिक ताकत को मजबूत करने के प्रयास का हिस्सा है। कांशीराम और बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की तस्वीरें पोस्टरों पर लगाकर सपा ने साफ संकेत दिया है कि वह दलितों और पिछड़ों को अपने पक्ष में लाने के लिए काम कर रही है। फारुकी का कहना है, “सपा ने 2024 में दलित उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर नेतृत्व दिया था, और अब 2027 के विधानसभा चुनाव में भी इसी रुख को अपनाने का संकेत दे रही है।”

क्या यह 2027 की रणनीति है?

फारुकी का यह भी कहना है कि सपा का यह कदम 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए एक रणनीति हो सकता है। पार्टी अब एक व्यापक सामाजिक गठबंधन बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रही है। सपा की यह नई दिशा उत्तर प्रदेश की राजनीति में नए समीकरणों की शुरुआत कर सकती है, जो 2027 के चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

SP की इस पहल ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। अब यह देखना होगा कि सपा का यह कदम कितना प्रभावी साबित होता है और क्या यह भविष्य में दलितों और पिछड़ों के बीच पार्टी के समर्थन को बढ़ाने में सफल होगा।

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