खूनी बुर्का: मजहबी सनक में जल्लाद बना बाप, ‘परदे’ के लिए पत्नी-बेटियों को उतारा मौत के घाट!

शामली में मजहबी कट्टरता ने तीन जानें ले लीं। बिना बुर्का मायके जाने पर सनकी फारूक ने पत्नी और दो बेटियों को मार डाला। मासूम की आंख तक फोड़ दी। यह नृशंस हत्याकांड चीख-चीखकर बुर्का प्रथा और कट्टरपंथी सोच पर सवाल उठा रहा है।

Shamli

Shamli Triple Murder: उत्तर प्रदेश के शामली में एक बार फिर मजहबी कट्टरपंथ और पितृसत्तात्मक क्रूरता का वह भयावह चेहरा सामने आया है, जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया है। कांधला के गढ़ी दौलत गांव में फारूक नाम के एक शख्स ने अपनी पत्नी ताहिरा और दो मासूम बेटियों की सिर्फ इसलिए बेरहमी से हत्या कर दी क्योंकि उसकी पत्नी बिना ‘बुर्के’ के अपने मायके चली गई थी। यह महज एक अपराध नहीं, बल्कि उस प्रतिगामी और कट्टरपंथी सोच का परिणाम है जो महिलाओं को केवल एक वस्तु और ‘पर्दे’ की कैदी मानती है। ‘इज्जत’ के नाम पर अपनी ही बेटियों की आंखें फोड़ देने वाली यह वहशत दर्शाती है कि जब मजहबी कट्टरता इंसान के सिर चढ़कर बोलती है, तो वह किस कदर दरिंदा बन जाता है।

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कट्टरता का खूनी खेल: बुर्के के पीछे छिपी दरिंदगी

Shamli पुलिस पूछताछ में जो खुलासा हुआ है, वह रूह कंपा देने वाला है। आरोपी फारूक ने स्वीकार किया कि वह अपनी पत्नी को हमेशा ‘पर्दे’ में रखना चाहता था। 10 दिसंबर की रात उसने अपनी पत्नी और बड़ी बेटी आफरीन को गोली मार दी, जबकि छोटी बेटी सहरीन का गला घोंट दिया।

वारदात की भयावहता:

  • बेटियों के साथ क्रूरता: बड़ी बेटी की एक आंख बाहर निकली हुई मिली। पुलिस को संदेह है कि आरोपी ने भारी डंडे से वार कर मासूम की आंख फोड़ दी।

  • साक्ष्य मिटाने की कोशिश: हत्या के बाद फारूक ने तीनों शवों को घर के आंगन में सात फीट गहरे गड्ढे (सेप्टिक टैंक) में दबा दिया और ऊपर से ईंटें बिछा दीं ताकि किसी को शक न हो।

  • मजहबी उन्माद: आरोपी का तर्क है कि बिना बुर्के के बाहर जाकर पत्नी ने उसकी ‘इज्जत’ मिट्टी में मिला दी थी।

उदारवादी समाज के लिए एक बड़ा सवाल

यह Shamli घटना उस कट्टरपंथी विचारधारा पर कड़ा प्रहार करती है जो बुर्के और पर्दे को महिला की गरिमा से जोड़ती है। एक स्वतंत्र और उदार समाज में क्या किसी लिबास की कीमत तीन जिंदगियों से बढ़कर हो सकती है? उदारवादी दृष्टिकोण से देखें तो ‘बुर्का’ और ‘पर्दा’ अक्सर व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कुचलने के औजार बन जाते हैं। जब एक समाज महिलाओं की पहचान को केवल उनके कपड़ों तक सीमित कर देता है, तो फारूक जैसे कट्टरपंथी पैदा होते हैं।

पंचायतों की विफलता और न्याय की मांग

मृतका ताहिरा के पिता अमीर ने बताया कि इस मुद्दे पर 10 से अधिक बार पंचायतें हुईं। हर बार सामाजिक दबाव और ‘समझौते’ के नाम पर बेटी को वापस उसी नरक में भेज दिया गया। यह हमारी सामाजिक व्यवस्था की भी विफलता है जो कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेक देती है।

“अगर मुझे जरा भी अंदेशा होता कि वह इतना दरिंदा है, तो मैं अपनी बेटी को कभी वापस नहीं भेजता। उसे फांसी की सजा मिलनी चाहिए।” — मृतका के पिता

पुलिस की कार्रवाई

Shamli पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है और ₹3000 में तमंचा सप्लाई करने वाले नेटवर्क की तलाश कर रही है। साथ ही, पुलिस इस पहलू की भी जांच कर रही है कि सात फीट गहरा गड्ढा खोदने और शवों को ठिकाने लगाने में फारूक के साथ और कौन-कौन शामिल था।

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