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U P SIR में नजर आया वोटर का बदला रुख, क्यों गाँव को चुन रहे शहरी मतदाता, बीजेपी की बढ़ी चिंता

SIR प्रक्रिया के बाद शहरों में रहने वाले लाखों मतदाता अपना वोट पुश्तैनी गाँव में रखना चाहते हैं। इससे शहरी वोट घट रहे हैं, जो बीजेपी के मजबूत आधार और आगामी चुनावी समीकरणों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।

SYED BUSHRA by SYED BUSHRA
December 26, 2025
in उत्तर प्रदेश
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SIR Process Changes Urban–Rural Voting Trend: उत्तर प्रदेश में चल रही SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) प्रक्रिया ने चुनावी राजनीति की दिशा बदलनी शुरू कर दी है। इस प्रक्रिया के तहत जब निर्वाचन आयोग ने साफ किया कि एक व्यक्ति सिर्फ एक ही जगह का मतदाता हो सकता है, तो शहरी इलाकों में बड़ी हलचल मच गई। इसके बाद लोगों को यह तय करना पड़ा कि उनका वोट शहर में रहेगा या गाँव में।

एक नई प्रवृत्ति आई सामने

शहरों में रहने वाले बड़ी संख्या में लोगों ने अपने वोट को पुश्तैनी गाँव में ही बनाए रखने का फैसला किया। यह रुझान पहले भी धीरे-धीरे दिख रहा था, लेकिन SIR प्रक्रिया ने इसे पूरी तरह उजागर कर दिया है। इसका सीधा असर शहरी मतदाता संख्या पर पड़ा है, जो अब तेजी से घट रही है।

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लोग गाँव को क्यों दे रहे हैं प्राथमिकता

इसके पीछे कई अहम और व्यावहारिक कारण हैं।

पहला कारण है पुश्तैनी पहचान। गाँव में जमीन, मकान और पारिवारिक प्रतिष्ठा जुड़ी होती है, जिसे लोग छोड़ना नहीं चाहते।

दूसरा कारण स्थानीय राजनीति है। पंचायत और ग्राम स्तर के चुनावों में परिवार की सीधी भागीदारी होती है, जिससे वोट का महत्व बढ़ जाता है।

तीसरा बड़ा कारण सुरक्षा से जुड़ा है। गाँव की वोटर लिस्ट से नाम कटने पर भविष्य में जमीन या पारिवारिक विवाद खड़े हो सकते हैं। वहीं शहरों में अधिकतर लोग किराए पर रहते हैं या नौकरी के कारण अस्थायी रूप से बसे होते हैं। ऐसे में शहर का पता स्थायी नहीं माना जाता।

इन्हीं वजहों से बड़े शहरों में रहने वाले लाखों लोगों ने जानबूझकर अपने SIR फॉर्म जमा नहीं किए, ताकि उनका नाम गाँव की मतदाता सूची में बना रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि शहरी इलाकों में वोटरों की संख्या अचानक कम होने लगी।

बीजेपी के लिए क्यों बढ़ी मुश्किल

लखनऊ, वाराणसी, गाजियाबाद, नोएडा, आगरा, मेरठ, कानपुर जैसे बड़े शहरों और करीब दो दर्जन टियर-2 शहरों में SIR फॉर्म सबसे कम जमा हुए हैं। प्रदेश भर में करीब 17.7 प्रतिशत फॉर्म अभी तक नहीं लौटे हैं, यानी लगभग 2.45 करोड़ वोटर प्रक्रिया से बाहर हैं।

सूत्रों के मुताबिक, लखनऊ में करीब 2.2 लाख, प्रयागराज में 2.4 लाख, गाजियाबाद में 1.6 लाख और सहारनपुर में लगभग 1.4 लाख वोट कट सकते हैं। ये वही शहरी क्षेत्र हैं, जहाँ बीजेपी को परंपरागत रूप से मजबूत समर्थन मिलता रहा है।
बीजेपी के सामने अब तीन बड़ी चुनौतियाँ हैं। पहली, शहरी वोट बैंक का लगातार सिकुड़ना। दूसरी, ग्रामीण इलाकों में जातीय और स्थानीय समीकरण, जहाँ हर जगह एकतरफा समर्थन मिलना मुश्किल होता है। तीसरी, संगठन पर बढ़ता दबाव। मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश संगठन तक ने निर्देश दिए हैं कि एक भी शहरी वोटर छूटना नहीं चाहिए।

आयोग भी है चिंतित

पिछले 20–25 सालों में मतदाता सूची की इतनी व्यापक जांच पहले कभी नहीं हुई। इतने बड़े पैमाने पर फॉर्म न आने से चुनाव आयोग भी चिंतित है। संकेत हैं कि SIR फॉर्म जमा करने की समय-सीमा एक सप्ताह और बढ़ाई जा सकती है, क्योंकि एक साथ करोड़ों नाम हटना राजनीतिक और कानूनी विवाद खड़ा कर सकता है।

Tags: SIR processUttar Pradesh elections
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