Ustad Zakir Hussain: भारत के प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें 15 दिसंबर, रविवार को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को स्थित एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी हालत गंभीर हो गई थी। जाकिर हुसैन को ‘इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस’ (IPF) जैसी गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ा था। इस बीमारी के कारण उनके फेफड़े प्रभावित हो गए थे और सांस लेने में कठिनाई हो रही थी। जाकिर हुसैन का निधन 16 दिसंबर, सोमवार को हुआ, जिसकी पुष्टि उनके परिवार ने की। उनका निधन संगीत प्रेमियों और शास्त्रीय संगीत जगत के लिए एक बड़ी क्षति है।
इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस के कारण हुआ निधन
Ustad Zakir Hussain के निधन के बाद, उनके मित्र और बांसुरी वादक राकेश चौरसिया ने जानकारी दी थी कि उन्हें दिल संबंधी समस्याएं थीं और उनका इलाज सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में चल रहा था। उनकी बीमारी की वजह से उनकी हालत अचानक बिगड़ गई थी। जाकिर हुसैन के परिवार ने मीडिया से बातचीत में बताया कि वह ‘इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस’ से जूझ रहे थे, जो एक दुर्लभ फेफड़ों की बीमारी है। इस बीमारी के कारण फेफड़ों में जख्म जैसे ऊतक बढ़ने लगते हैं, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और अंगों के सही से काम करने में समस्या आती है।
उस्ताद जाकिर हुसैन ने संगीत के क्षेत्र में कई पुरस्कारों और सम्मान प्राप्त किए थे। उन्होंने 1991 में ‘प्लैनेट ड्रम’ एल्बम के लिए ड्रमर मिकी हार्ट के साथ काम किया था, जिसके बाद उन्हें ग्रैमी अवार्ड मिला। इसके अलावा, वह पद्म श्री (1988), पद्म भूषण (2002), और पद्म विभूषण (2023) जैसे राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त कर चुके थे। 2016 में, उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा व्हाइट हाउस में ‘ऑल-स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट’ में भाग लेने का निमंत्रण भी मिला था।
एक महान संगीतकार की यात्रा का अंत
Ustad Zakir Hussain का जन्म 9 मार्च, 1951 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता उस्ताद अल्लाह रक्खा खान भी एक प्रसिद्ध तबला वादक थे, और उन्होंने ही जाकिर हुसैन को तबला वादन की बारीकियों से अवगत कराया। 7 वर्ष की आयु में ही उन्होंने संगीत समारोहों में तबला बजाना शुरू कर दिया था। बाद में उन्होंने वाशिंगटन विश्वविद्यालय से संगीत में डॉक्टरेट की डिग्री भी प्राप्त की।
उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपनी कला से न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत को पूरी दुनिया में एक नई पहचान दिलाई, बल्कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सम्मान प्राप्त हुआ। वह न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी संगीत प्रेमियों के बीच काफी लोकप्रिय थे। उनकी धुनों ने संगीत को नई दिशा दी और उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके निधन से संगीत जगत में अपूरणीय क्षति हुई है।