Warning: Trying to access array offset on value of type bool in /home/news1admin/htdocs/news1india.in/wp-content/plugins/jnews-amp/include/class/class-init.php on line 427

Warning: Trying to access array offset on value of type bool in /home/news1admin/htdocs/news1india.in/wp-content/plugins/jnews-amp/include/class/class-init.php on line 428
6 करोड़ साल पुरानी शिलाओं से बनेंगी राम-सीता की मूर्ति, नेपाल की शालिग्राम

6 करोड़ साल पुरानी शिलाओं से बनेंगी राम-सीता की मूर्ति, नेपाल की शालिग्राम नदी से निकालकर अयोध्या लाई जा रहीं 40 टन वजनी दो शिलाएं

श्रीराम और माता सीता की मूर्ति बनाने के लिए नेपाल से दो विशाल शालिग्राम शिलाएं अयोध्या लाई जा रही हैं। दावा किया जा रहा है कि ये शिलाएं करीब 6 करोड़ साल पुरानी हैं। इनसी बनी मूर्तियां गर्भगृह में रखी जाएंगी या परिसर में स्थापित होगी, ये अभी तय नहीं हुआ है। राम मंदिर ट्रस्ट इसपर अंतिम फैसला लेगा।

शिलाओं के दर्शन के लिए रास्ते में जुटी भीड़

बता दें कि नेपाल में पोखरा स्थित शालिग्रामी नदी यानि काली गंडकी ​​​​​नदी से यह दोनों शिलाएं जियोलॉजिकल और ऑर्किलॉजिकल विशेषज्ञों की देखरेख में निकाली गई हैं। 26 जनवरी को ट्रक में लोड करने के बाद पूजा-अर्चना की गई। अब सड़क मार्ग से दोनों शिलाओं को अयोध्या भेजा जा रहा है। रास्ते में इन शिलाओं के दर्शन लोग जुटे हैं। इनमें से एक शिला का वजन 26 टन जबकि दूसरे का 14 टन है। यानि दोनों शिलाओं का कुल वजन 40 टन है।

​​​​​​​जनकपुर में महंत संत श्रीरामतपेश्वरदास महाराज और उनके उत्तराधिकारी महंत रामरोशनदान महाराज की अगुआई में 5 कोसी परिक्रमा के बाद इन शिलाओं का अयोध्याजी की ओर प्रस्थान होगा। दोनों शिलाएं नेपाल के जटही बॉर्डर से भारत में प्रवेश करेंगी।

2 फरवरी को अयोध्या पहुंचेगी शिलांए

राम मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल ने बताया कि “हमें शिलाओं को अयोध्या लाने के लिए कहा गया है। शिलाओं के अयोध्या पहुंचने पर ट्रस्ट अपना काम करेगा। उम्मीद है कि शिलाएं अयोध्या में 2 फरवरी तक पहुंचेंगी। शालिग्रामी नदी से निकाली गईं ये ये शिलाएं करीब 6 करोड़ साल पुरानी हैं।”

बता दें कि नेपाल की शालिग्रामी नदी  भारत में प्रवेश करने के बाद नारायणी बन जाती है। जबकि सरकारी कागजों में इसका नाम बूढ़ी गंडकी है। शालिग्रामी नदी के काले पत्थरों की भगवान शालिग्राम के रूप में पूजा की जाती है। कहा जाता है कि शालिग्राम पत्थर, सिर्फ शालिग्रामी नदी में पाया जाता है। ये नदी दामोदर कुंड से निकलकर बिहार के सोनपुर में आकर गंगा नदी में मिल जाती है।

नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री भी चल रहे शिला यात्रा के साथ

कामेश्वर चौपाल ने बताया कि इन विशाल शिलाखंड को नदी से निकालने से पहले धार्मिक अनुष्ठान किए गए और नदी से क्षमा याचना की गई। वहीं 26 जनवरी को गलेश्वर महादेव मंदिर में रूद्राभिषेक भी किया गया।
इस शिला यात्रा के साथ करीब 100 लोग चल रहे हैं। विश्राम स्थलों पर उनके ठहरने की उचित व्यवस्था की गई है। जिसमें विहिप के केंद्रीय उपाध्यक्ष जीवेश्वर मिश्र, राजेंद्र सिंह पंकज, राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल और नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री कमलेंद्र निधि व जनकपुर के महंत भी इस यात्रा में शामिल हैं। जो अयोध्या तक आएंगे।

क्या सच में ये शिलाएं 6 करोड़ साल पुरानी हैं

मिली जानकारी के अनुसार दो महीने पहले कारसेवक पुरम में रुद्राभिषेक करने आए नेपाल के सीतामढ़ी के महंत आए थे। जिन्होंने ट्रस्ट को शालीग्राम शिलाओं के बारे में बताया था। इसके बाद ही शिलाओं को नदी से निकालने और अयोध्या लाने का कार्यक्रम तय हुआ और सरकार की अनुमति के बाद नदी से शिलाएं निकाली गई।

क्या यह शिलाएं 6 करोड़ों साल पुरानी हैं, इसको लेकर डॉ. देशराज कहना है कि “करोड़ों साल के अपरदन यानी परिस्थितिक बदलाव की वजह से घाटी भरते-भरते मैदान का रूप लेती हैं। जिससे अनेक नदियों और झीलों का निर्माण हुआ। इसमें गंगा, यमुना, सरयू, गंडक आदि नदियां शामिल हैं। इसी में गंडक की एक सहायक नदी काली गंडकी नदी नेपाल में बहती है। जिसे वहां शालिग्रामी नदी के नाम से जाना जाता है।” इसी से यह शिलाएं निकाली गई हैं।

Exit mobile version