UP SIR BLO Death Pressure: मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के राष्ट्रव्यापी कार्य में जुटे उत्तर प्रदेश के बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) इस समय अभूतपूर्व मानसिक और शारीरिक तनाव से जूझ रहे हैं। गोंडा में एक बीएलओ की आत्महत्या की हृदय विदारक घटना ने इस गंभीर संकट को उजागर किया है। ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे इन कर्मचारियों पर काम का इतना भारी दबाव है कि कांग्रेस पार्टी ने दावा किया है कि इस प्रक्रिया के चलते अब तक 25 बीएलओ अपनी जान गँवा चुके हैं, जिससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या इस अनिवार्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया की कीमत कार्यकर्ताओं की ज़िंदगी से चुकाई जाएगी?
लखनऊ की बीएलओ हबीबा और अन्य की आपबीती इस बात की पुष्टि करती है कि त्रुटियों को सुधारने, फॉर्म वितरित करने और उन्हें वापस जमा कराने के जटिल और एकाकी कार्य ने इन कर्मचारियों को टूटने की कगार पर ला दिया है।
अकेलेपन का बोझ: बीएलओ कर रहे हैं घंटों काम, नहीं मिल रहा जनता का सहयोग
UP SIR में लोकतंत्र के आधार यानी मतदाता सूची को त्रुटिहीन बनाने की इस महत्वपूर्ण कवायद में, बीएलओ अकेले ही पूरे तंत्र का बोझ उठा रहे हैं। लखनऊ में कार्यरत एक बीएलओ हबीबा ने एबीपी लाइव से बात करते हुए अपनी दुखद स्थिति साझा की। उनका कहना है कि उन्हें मतदाता सूची में नाम न होना, गलत पता, या गलत फोटो जैसी हजारों त्रुटियों को अकेले ही ठीक करना पड़ रहा है।
जटिल प्रक्रिया: लोगों को फॉर्म भरने में इतनी दिक्कतें आ रही हैं कि पढ़े-लिखे नागरिक भी लगातार गलतियाँ कर रहे हैं, जिससे बीएलओ को बार-बार उनका मार्गदर्शन करना पड़ता है।
पैदल यात्रा और एकाकीपन: फॉर्म वितरित करने के लिए उन्हें मीलों पैदल चलना पड़ता है, और उनकी सहायता के लिए कोई सहयोगी स्टाफ भी मौजूद नहीं है।
काम का अमानवीय दबाव: हबीबा ने बताया कि वे अब तक 800 से अधिक फॉर्म बाँट चुकी हैं, लेकिन इन्हें वापस जमा कराना सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। नागरिक फॉर्म लेकर घर बैठ गए हैं और बार-बार कहने पर भी जमा नहीं कर रहे हैं, जिसका सीधा परिणाम अधिकारियों की डांट के रूप में इन पीड़ित कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है।
समय सीमा का संकट: रात 2 बजे तक काम, परिवार से दूरी
UP SIR बीएलओ पर काम का दबाव इतना बढ़ गया है कि यह अब उनके निजी जीवन पर भारी पड़ रहा है। हबीबा के अनुसार, उन पर इतना प्रेशर है कि वे रात को 1 या 2 बजे तक घर पर भी काम करने को मजबूर हैं। इस वजह से वे अपने परिवार को समय नहीं दे पा रही हैं, जिससे एक गहरे भावनात्मक संकट का जन्म हो रहा है।
बीएलओ चाहते हैं कि इस कठिन कार्य के लिए समय सीमा बढ़ाई जाए, लेकिन वे यह भी समझते हैं कि ऊपर के अधिकारियों पर भी उतना ही दबाव है। उनका सबसे बड़ा दर्द यही है कि “लोग फॉर्म जमा नहीं कर रहे हैं,” जबकि यह जिम्मेदारी जितनी बीएलओ की है, उतनी ही मतदाताओं की भी है।
कांग्रेस का दावा: 25 जानें गईं, कर्मचारी रो पड़े
कांग्रेस पार्टी ने UP SIR बीएलओ की इस दुर्दशा को लेकर सरकार पर तीखा हमला बोला है। एक खबर का हवाला देते हुए, उन्होंने दावा किया है कि काम के इस जानलेवा दबाव के चलते अब तक 25 बीएलओ अपनी जान गँवा चुके हैं।
UP SIR कांग्रेस द्वारा जारी एक वीडियो में, शिप्रा मौर्य नाम की एक बीएलओ काम का दबाव बताते हुए फूट-फूट कर रो पड़ती हैं। उन्होंने अपील की कि लोगों को समझना चाहिए कि मतदाता सूची में सुधार की यह जिम्मेदारी जितनी बीएलओ की है, उतनी ही उनकी भी है, और फॉर्म जमा न करके वे केवल बीएलओ की परेशानी बढ़ा रहे हैं।
यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सबसे निचले पायदान पर खड़े ये कर्मचारी बलि का बकरा बन रहे हैं, और सरकार को तत्काल इनके काम के बोझ को कम करने और सहयोग प्रदान करने के लिए कदम उठाने चाहिए।





