पहली बार 1 आए साथ और 1 स्वर में बोले यूपी के ये तीन मंत्री, ‘हम हैं असल ‘PDA’ और हमारे पास ही है सत्ता की चाबी’

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार में शामिल बीजेपी के तीन सहयोगी ओबीसी नेताओं ने दिल्ली में एक मंच पर एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए सियासी हुंकार भरी है।

लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। यूपी में अगला विधानसभा चुनाव 2027 में होना, लेकिन सूबे का सियासी पारा 2025 से ही चढ़ने लगा है। क्षत्रिय-ब्राम्हण विधायक की पंचायत के बाद अब यूपी सरकार के तीन मंत्री दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक साथ दिखे। तीनों ने आपस में हाथ मिलाया और मंच से एलान कर दिया कि प्रदेश में हम ही असल पीडीए हैं और हमारे पास ही सत्ता की चाबी है। मंत्रियों के हुंकार के बाद सूबे के सियासी समीकरणों को लेकर लोग अब सोशल मीडिया में अपने-अपने कमेंट लिख रहे हैं।

दरअसल, यूपी के मंत्री संजय निषाद ने अपनी निषाद पार्टी का स्थापना दिवस दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में मनाया। जिसमें योगी सरकार के ओबीसी नेताओं की तिकड़ी की सियासी केमिस्ट्री देखने को मिली। संजय निषाद के मंच पर सुभासपा के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर और अपना दल (एस) के नेता आशीष पटेल ने एक-दूसरे का हाथ दिल्ली में पकड़ा, लेकिन सियासी ताप लखनऊ का बढ़ा दिया है। इतना ही नहीं इस स्थापना दिवस में यूपी की योगी सरकार के तीनों सहयोगी क्षत्रपों ने शिरकत किया, लेकिन बीजेपी का कोई बड़ा नेता मौजूद नहीं था।

ये तीनों नेता वर्तमान में योगी सरकार में मंत्री हैं और बीजेपी के सहयोगी दल भी हैं। तीनों नेता और ओबीसी का बड़ा चेहरा माने जाते हैं। चर्चा ऐसी है कि निषाद पार्टी के कार्यक्रम में बीजेपी के सहयोगी नेताओं की तिकड़ी ने एकजुट होकर अपनी सियासी ताकत दिखाने के साथ दिल्ली से लखनऊ को सियासी संदेश देने की कवायद की है। मंत्री निषाद के मंच से आशीष पटेल और ओमप्रकाश राजभर जमकर गरजे। संजय निषाद ने भी कई आरोप लगाए। पिछड़े समाज से आने वाली जातियों के मुद्दों को खुलकर उठाया। यूपी के क्षत्रपों की तस्वीर जबसे सोशल मीडिया पर आई, तब से वह गर्दा उड़ाए हुए है।

फोटो सेशन के बाद तीनों नेता बोले। संजय निषाद ने इस रैली को नया नाम दिया। उन्होंने कहा कि यह केवल उत्सव नहीं, बल्कि संकल्प और एकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि पार्टी न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे भारत में मछुआरे, बिंद, केवट, मल्लाह, कुंवर, गोंड, कश्यप और अन्य मेहनतकश समाजों की मजबूत आवाज बन चुकी है। हमारे समाज का सबसे बड़ा मुद्दा आरक्षण और संवैधानिक अधिकार है और यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी। संजय निषाद ने कहा कि जब तक हमारे समाज के साथ सही न्याय नहीं होगा। हमारी लड़ाई जारी रहेगी। आजादी के बाद से हमारे समाज के साथ अन्याय हुआ। कई सरकार आई और गई, लेकिन किसी ने हमारे समाज के उत्थन पर बात नहीं की।

संजय निषाद के बाद ओमप्रकाश राजभर भी बोले। उन्होंने कहा, ’डॉ. संजय निषाद ने ताल किनारे रहने वाले समाज को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एकजुट कर अपनी ताकत दिखाई है। उत्तर प्रदेश की राजनीति का भविष्य तय कर रहा है। निषाद पार्टी ने केवल 10 साल में जिस तेज़ी से विकास किया है, वह अभूतपूर्व है। अगर समाज को हक-अधिकार नहीं मिला तो लखनऊ विधानसभा का घेराव तय है। यूपी सरकार में मंत्री आशीष पटेल ने कहा कि भीड़ बता रही है कि डॉ. संजय निषाद की असली ताकत है। अब समाज डरने वाला नहीं है और यह लड़ाई रुकने वाली नहीं है। निषाद पार्टी अब अकेली नहीं है, हम सभी सहयोगी दल उनके साथ खड़े हैं।

आशीष पटेल ने कहा कि डॉ. निषाद इलेक्ट्रो होम्योपैथी से मीठी गोली देकर इलाज करते आए हैं, लेकिन अब उन्हें आरक्षण विरोधियों का पक्का इलाज करना होगा। मंच पर मौजूद आरएलडी, सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल (एस) ही असली पीडीए हैं। सत्ता की चाबी अब इन्हीं दलों के पास होगी। 2027 के चुनाव में हमारा पीडिए अपनी ताकत दिखाएगा। हमसब एक होकर चुनाव में उतरेंगे। आशीष पटेल ने कहा कि हम तीनों दल पंचायत चुनाव को लेकर तैयारियों में जुटे हैं। आगे की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

बता दें, योगी सरकार के तीन मंत्री दिल्ली में एक मंच पर आए, उससे लखनऊ का सियासी ताप बढ़ गया है। बीजेपी के सहयोगी दलों के जुटान ने 2027 के चुनाव से पहले पंचायत चुनाव में अपनी ताकत साझा करने का एहसास दिखा दिया है। हालांकि, सभी नेताओं ने एनडीए को मजबूत करने और बीजेपी के नेतृत्व में काम करने की अपनी मंशा को बार-बार प्रदर्शित किया और मंच से भी कहा, लेकिन यह माना जा रहा है कि अपना दल (एस), निषाद पार्टी और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी मिलकर एक प्रेशर ग्रुप बन सकती है।

इनसब के बीच हम आपको बताते हैं कि तीनों नेताओं की अपने समाज में कितनी पकड़ है और यूपी की कितनी सीटों पर इनके समाज के वोटर्स हार-जीत तय करते हैं। निषाद पार्टी, निषाद समाज को अपना वोटबैंक बताती है और इन मतदाताओ का 30 से 35 सीटों प्रभाव है। अपना दल (एस) का बड़ा आधार कुर्मी समाज माना जाता है, जो 20 से 25 सीटों पर असर रखता है। वहीं सुभासपा का वोटबैंक कहे जाने वाले राजभर समुदाय का 15 से 20 सीटों पर प्रभाव है। ऐसे में ये तीनों अलग होते हैं तो बीजेपी को 80 से 90 विधानसभा सीटों पर मुश्किल हो सकती है।

 

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