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Uttar Pradesh: बाढ़ की आड़ में करोड़ों डकार गए अघिकारी

Uttar Pradesh: बाढ़ की आड़ में करोड़ों डकार गए अघिकारी

लखीमपुर खीर।। “तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है मगर यह आंकड़े झूठे ए दावा किताबी है” मरहूम शायर अदम गोंडवी द्वारा लिखी गई यह पंक्तियां यूपी के सिंचाई एवं बाढ़ खंड महकमे पर सटीक बैठ रही है। अलबत्ता मुख्यमंत्री के सख्त निर्देशों के बावजूद भी हर बार की तरह इस बार भी तराई में रहने वाले हजारों ग्रामीणों को बाढ़ की विभीषिका से बचाने के लिए शासन द्वारा भेजा गया करोड़ों पैकेज भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है। सिंचाई एवं बाढ़ खंड विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों और ठेकेदारों की तिकड़ी ने सीएम की आंखों में भी धूल झोंकने में गुरेज नहीं किया अलबत्ता लखीमपुर खीरी मे बाढ़ और कटान के रोकथाम के लिए बनाई जाने वाली 10 परियोजनाओं में से कई परियोजना अभी भी अधूरी है जबकि शासन ने इन परियोजनाओं के लिए 8752.28 लाख रुपए का भारी-भरकम बजट देकर बाढ़ आने से पहले यानी 30 जून तक सभी परियोजनाओं को तैयार करने के निर्देश जारी किए थे लेकिन भ्रष्टाचार की बैतरणी में गोता लगा रहे सिंचाई एवं बाढ़ खंड के अधिकारी परियोजना तो नहीं पूरी कर सके लेकिन शासन को गुमराह करते हुए सभी 10 परियोजनाओं का कार्य पूर्ण होने की रिपोर्ट सरकार को जरूर भेज दी ऐसा हम नहीं कह रहे हैं महकमे द्वारा शासन को भेजा गया पत्र स्वयं गवाही दे रहा है भला हो ऊपर वाले का यदि बाढ़ ही नहीं आई यदि बाढ़ आई होती तो अभी तक यही अधिकारी यह करोड़ों का का धन नदी की तीव्र धारा में बहता हुआ कागजों में दिखाकर अपने कर्तव्य से पल्ला झाड़ चुके होते मजे की बात यह है अब जब news1 इंडिया के हाथ सभी दस्तावेज लग चुके हैं तो अधिकारी अपनी करतूतों को छिपाने के लिए कैमरे से कन्नी काट रहे हैं लेकिन हम इस घोटाले की परत दर परत सारी हकीकत आज हम आपको बताएंगे कि आखिरकार भ्रष्टाचार का यह घिनौना खेल किस तरह खेला जाता है।

मामले उजागर होते ही परियोजनाएं पूर्ण करने का दुस्साहस जरूर किया गया जबकि परियोजना की वर्तमान दशा की बात करें तो 10% भी काम पूरा नहीं हुआ है। थोड़ा बहुत कार्य हुआ भी था वह नदी मैं आई पहली बार में ही बह गया जबकि जो मटेरियल प्रयोग भी किया गया है वह बेहद घटिया किस्म का लगाया गया है जो भी टूट कर बिखर चुका है जबकि स्लो पिचिंग के काम में जगह पर गैपिंग गए छोड़ दी गई जो की नदी का जलस्तर बढ़ने पर कटान संभावना को बरकरार किए हुए हैं र नगर के ग्रामीण परियोजना मैं यह बंदरबांट की पूरी पटकथा चीख चीख कर बयां कर रहे हैं लखीमपुर खीरी में यदि परियोजनाओं की जांच शासन में बैठे उच्च अधिकारियों द्वारा की जाए तो दूध की दूध और पानी का पानी हो सकता है फिलहाल सिंचाई विभाग और ठेकेदारों का या अद्भुत कारनामा कोई नया कारनामा नहीं है लेकिन विडंबना की बात यह है कि वह हर वर्ष शासन और सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगाने मैं सफल हो जाते हैं और फिर उसी कुचक्र को दोबारा अंजाम देने की तैयारियों में जुट जाते हैं।

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