UP electricity privatization: उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों के निजीकरण की योजना अब केंद्र के शीर्ष तक पहुंच चुकी है। पूर्वांचल और दक्षिणांचल के 42 जिलों में निजीकरण की तैयारी को लेकर उपभोक्ता परिषद ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजते हुए सीबीआई जांच की मांग की है। परिषद ने आरोप लगाया है कि हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बाद अब कंपनियों का 51% हिस्सा निजी घरानों को बेचना सरकारी धन का दुरुपयोग है। आंदोलनकारी संगठन इसे सुनियोजित घोटाला बता रहे हैं।
आरडीएसएस योजना में 43,454 करोड़ खर्च फिर क्यों निजीकरण?
UP विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि केंद्र सरकार की आरडीएसएस योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश में अब तक 43,454 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं, जिससे बिजली वितरण प्रणाली को सुधारा गया है। यह पूरी योजना प्रधानमंत्री की पहल पर कैबिनेट से मंजूर होकर राष्ट्रपति की अनुशंसा से लागू हुई थी। योजना का मकसद बिजली कंपनियों को आत्मनिर्भर बनाना और उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति देना है। लेकिन अब बिजली कंपनियों का 51% हिस्सा निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी से सवाल खड़े हो गए हैं।
नौकरशाहों पर लगाया निजीकरण की साजिश का आरोप
UP परिषद का आरोप है कि उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन और ऊर्जा निगम के कुछ नौकरशाहों ने निजी कंपनियों के पक्ष में योजना बनाई है ताकि हजारों करोड़ के सरकारी निवेश के बाद निजी घरानों को सस्ते में मालिकाना हक दिया जा सके। परिषद ने यह भी कहा है कि केंद्र की योजना पर पूरे देश में 3.03 लाख करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं, जिसमें अकेले उत्तर प्रदेश का हिस्सा 15% यानी 43454 करोड़ है। इस पूरे मामले को केंद्र सरकार की सीबीआई से जांच कराना जरूरी है क्योंकि केंद्र का पैसा इसमें लगा है।
बिजलीकर्मियों का आंदोलन जारी, नया रिकॉर्ड बनाया
UP बिजली निजीकरण के खिलाफ 195 दिनों से आंदोलन कर रहे विद्युत कर्मचारी लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। आंदोलन के बावजूद कर्मचारियों ने विद्युत आपूर्ति को बाधित नहीं होने दिया। उत्पादन से जुड़े कर्मचारियों ने सुधार के संकल्प के तहत 31104 मेगावाट बिजली की आपूर्ति कर नया रिकॉर्ड बनाया है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने कहा कि आंदोलन उपभोक्ताओं की सेवा के संकल्प के साथ चल रहा है और गर्मी के मौसम में किसी भी उपभोक्ता को परेशानी नहीं होने दी जाएगी।
जनसंवाद से पहले स्पष्टता जरूरी
UP बिजली निजीकरण का यह मामला अब केवल राज्य तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रव्यापी बहस का मुद्दा बन गया है। जहां एक ओर सरकार सुधार की बात कर रही है, वहीं कर्मचारी संगठन और उपभोक्ता परिषद इसे निजी घरानों के लिए बनाई गई साजिश बता रहे हैं। अब देखना होगा कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के स्तर पर उठाए गए इस मुद्दे पर सरकार क्या रुख अपनाती है।