लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। लोकसभा के बाद अब यूपी की 9 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होना है। ऐसे में राजनीतिक दलों के नेता लाव-लश्कर के साथ सियासी दंगल में उतर चुके हैं और जीत-हार के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। इन इन उपचुनावों में मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर सीट है, जिस पर सभी की नजर है। यहां के वोटर्स गजब का प्रयोग करते हैं। लोकल कैंडीडेट के बजाए बाहर प्रत्याशी को जीताकर विधानसभा भेजते हैं। यहां से पिछले 57 साल से कोई भी लोकल नेता चुनाव जीतकर विधायक की कुर्सी पर नहीं बैठा।
मीरापुर सीट से इन्हें मिला टिकट
मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट पर 13 नवंबर को वोटिंग होगी और चुनाव परिणाम 23 नवंबर को आएगा। उपचुनाव के शंखनाद के बाद मीरापुर में सियासी दलों ने चुनावी बिसात पर जातीय समीकरणों की चौसर बिछाना शुरू कर दी है। इस सीट से बीजेपी-रालोद गठबंधन की प्रत्याशी मिथलेश पाल ने नमांकन किया है। उधर, सपा से सुम्बुल राना ने भी अपना पर्चा दाखिल कर दिया है। मीरापुर विधानसीट पर उपचुनाव के लिए बसपा ने भी मुस्लिम कार्ड खेला है। मीरापुर विधानसभा प्रभारी शाहनजर को प्रत्याशी बनाया गया है। इससे राजनीतिक दलों की धड़कनें बढ़ गई है। जानकार बताते हैं कि यहां पर रोलाद और सपा के बीच सीधा मुकाबला है।
इस वजह ये मीरापुर में हो रहा उपचुनाव
2022 विधानसभा चुनाव में मीरापुर विधानसभा सीट से रालोद प्रत्याशी चंदन चौहान ने बीजेपी के प्रशांत चौधरी को हराकर जीत दर्ज की थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन कर रालोद ने चंदन चौहान को बिजनौर लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया था। बिजनौर लोकसभा सीट पर जीत दर्ज करने के बाद चंदन चौहान ने मीरापुर विधानसभा क्षेत्र से त्यागपत्र दे दिया था। उनके त्यागपत्र के बाद मीरापुर विधानसभा सीट रिक्त घोषित कर दी गई थी। अब इस सीट पर 13 नवंबर को मतदान होगा। फिलहाल चुनावी दंगल में 34 उम्मीदवार दांव आजमा रहे हैं।
टिकट दिए और जनता ने वोट दिया
वर्ष 1962 के चुनाव में भोकरहेड़ी सुरक्षित सीट थी। इसके बाद हुए परिसीमन में पहली बार मोरना विधानसभा बनी। पिछले 57 साल की सियासत के पन्ने पलटें तो उजला इतिहास है। सूबे के पहले डिप्टी सीएम बाबू नारायण सिंह मोरना से चुनाव जीतकर ही विधानसभा पहुंचे थे। यहां जीते विधायक मुजफ्फरनगर के रहने वाले जरूर थे, लेकिन इनमें कोई भी मीरापुर या मोरना क्षेत्र का रहने वाला नहीं रहा। पहले मोरना और अब मीरापुर से मिलकर कुल 14 विधायक पिछले 57 साल में चुने गए, लेकिन इनमें एक भी मूल रूप से स्थानीय नहीं रहा। राजनीतिक दलों ने अपने-अपने समय और समीकरण के हिसाब से टिकट दिए और जनता ने वोट दिया।
बाहरी नेताओं पर जनता का विश्वास
साल 2017 में बीजेपी के टिकट पर अवतार भड़ाना विधायक चुने गए थे। वह मुजफ्फरनगर जिले के रहने वाले नहीं थे। विधानसभा क्षेत्र में नहीं पहुंचने लोगों ने उन्हें हवाई विधायक तक कहा। बीएसपी से साल 2012 में विधायक चुने गए मौलाना जमील वर्तमान में मीरापुर क्षेत्र के ही टंडेढ़ा गांव में रहते हैं, लेकिन वह मूल रूप से देवबंद क्षेत्र के जहीरपुर गांव के रहने वाले हैं। टंडेढ़ा में रहने के कारण अकेले उन्हें स्थानीय कहा जा सकता है। उधर, इस विधानसभा सीट का नाम दो बार बदला, सुरक्षित से सामान्य तक का सफर किया। एक ही परिवार की तीन पीढ़ियों को इस क्षेत्र की जनता ने विधानसभा भेजने का काम किया।
परिवार की तीन पीढ़ी यहां से चुनाव जीती
यूपी के पहले डिप्टी सीएम बाबू नारायण सिंह इस सीट से विधायक रहे थे। बाबू नारायण सिंह के पुत्र और पोते ने भी विधानसभा में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। बाबू नारायण सिंह के बेटे संजय चौहान सपा के टिकट पर साल 1996 मोरना (अब मीरापुर) विधानसभा सीट से विधायक निर्वाचित हुए थे। 2022 के यूपी चुनाव में सपा की अगुवाई वाले गठबंधन से राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के टिकट पर संजय चौहान के पुत्र चंदन चौहान विधायक निर्वाचित हुए। संजय चौहान भी सांसद रहे थे और अब चंदन चौहान के भी संसद सदस्य निर्वाचित होने की वजह से ही यह सीट रिक्त हुई है। दोनों ही पिता-पुत्र बिजनौर सीट से लोकसभा चुनाव जीते।
सपा-रालोद ने बाहरी को दिया टिकट
राजनीतिक दलों के लिए प्रयोगशाला रहे मीरापुर विधानसभा सीट पर स ेअब तक कुल 14 विधायक चुने गए है, लेकिन कोई भी लोकल नेता विधायकी नहीं जीत सका है। इस बार बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए की ओर से आरएलडी की मिथिलेश पाल उम्मीदवार हैं। मिथिलेश के सामने सपा ने पूर्व सांसद कादिर राणा की पुत्रवधु सुम्बुल राणा को उम्मीदवार बनाया है। उपचुनाव में भी सपा और आरएलडी, दोनों ही दलों ने ट्रेंड के अनुरुप बाहरी उम्मीदवार उतारे हैं। चंद्रशेखर की अगुवाई वाली आजाद समाज पार्टी ने जाहिद हुसैन और बहुजन समाज पार्टी ने शाहनजर के रूप में लोकल चेहरों पर दांव लगाया है।
मीरापुर का जानें जातीय समीकरण
सरकारी आंकड़ों में मीरापुर विधानसभा सीट पर मतदाताओ की संख्या 3.23 लाख मानी जा रही है। इस सीट पर मुस्लिम और पिछड़ा वर्ग लगभग बराबर की स्थिति में है। माना जा रहा है कि किसी भी प्रत्याशी की जीत में दोनों वर्ग अहम भूमिका निभा सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार इस सीट पर ओबीसी 38 और मुस्लिम 37 प्रतिशत हैं, जबकि दलित 19 और सामान्य 5 प्रतिशत माने जा रहे हैं। मीरापुर में जाट वोटर्स भी जीत-हार में अहम रोल निभाते हैं। 2022 के चुनाव में सपा-रालोद के बीच गठबंधन था। जिसके कारण यहां से गठबंधन का उम्मीदवार चुनाव जीता।
मीरापुर से अब तक ये नेता चुने गए विधायक
1967 में कांग्रेस के राजेंद्र दत्त त्यागी विधायक चुने
1969 में बीकेडी के धर्मवीर त्यागी चुनाव जीते
1974 में कांग्रेस के नारायण सिंह को जनता ने लखनऊ भेजा
1977 में जनता पार्टी से नारायण सिंह एमएलए चुने गए
1980 में जनता एस से मेहंदी असगर विधायक चुने गए
1985 में कांग्रेस के सईदुज्जमां विधायक निर्वाचित हुए
1989 में जनता दल के अमीर आलम चुनाव जीते
1991 में पहली बार बीजेपी के रामपाल सैनी विधायक चुने गए
1993 में दूसरी बार बीजेपी के रामपाल सैनी चुनाव जीते
1996 में सपा के संजय सिंह विधायक चुने गए
2002 में बसपा के राजपाल सैनी विधायक चुने गए
2007 में रालोद के कादिर राना को जनता ने विधायक चुना
2009 में रालोद के मिथलेश पाल विधायक चुने गए
2012 में जनता ने बसपा के कैंडीडेट मौलाना जीमल को विधायक चुना
2017 में बीजेपी के अवतार भड़ाना चुनाव जीते
2022 में रालोद के चंदन चौहान मीरापुर से विधायक चुने गए