Varanasi News: आध्यात्मिक राजधानी काशी के पवित्र दशाश्वमेध घाट पर 25 दिसंबर 2025 को हुई एक घटना ने भारत की वैश्विक छवि पर गहरा दाग लगा दिया है। कुछ जापानी पर्यटक क्रिसमस के उपलक्ष्य में सांता कैप और स्विमसूट में गंगा स्नान के लिए पहुंचे थे, जिन्हें स्थानीय भीड़ ने न केवल रोका, बल्कि उनके साथ अभद्र व्यवहार किया। सांस्कृतिक भिन्नता और भाषाई बाधा के बीच, पर्यटकों पर निराधार आरोप लगाए गए और उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया। वीडियो में एक पर्यटक को हाथ जोड़कर माफी मांगते देखा जा सकता है, जो भारत की ‘अतिथि देवो भव:’ परंपरा के पतन का स्पष्ट प्रमाण है। यह घटना सोशल मीडिया पर तीव्र आक्रोश का विषय बनी हुई है।
Another Milestone in Viksit Bharat's Mob Culture 🚨
Japanese Tourists harassed by a mob for taking a holy dip wearing swimming trunks and Santa hats🤦♂️
So much 'Atithi Devo Bhava', and then we cry about Global Rac!sm against Indians.#Varanasi #Japan pic.twitter.com/JGBVTM2Dj0
— D (@Deb_livnletliv) December 28, 2025
एक राष्ट्रीय शर्म: भीड़ तंत्र की मनमानी
यह Varanasi घटना केवल एक गलतफहमी नहीं, बल्कि हमारे समाज के बढ़ते असहिष्णु रवैये का प्रतिबिंब है। जिस काशी को हम विश्व को शांति और अध्यात्म का पाठ पढ़ाने वाला केंद्र मानते हैं, वहां विदेशी मेहमानों को डराना-धमकाना एक राष्ट्रीय शर्म है। सांता क्लॉज की टोपी पहनकर गंगा में आस्था प्रकट करना किसी भी तरह से अपराध नहीं था, लेकिन भीड़ ने ‘सांस्कृतिक रक्षक’ बनकर जो व्यवहार किया, उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को एक असुरक्षित गंतव्य के रूप में पेश किया है।
वीडियो में कैद हुए दृश्य दिल दहला देने वाले हैं। एक जापानी पर्यटक, जो शायद पवित्र गंगा का आशीर्वाद लेने आया था, वह जमीन पर बैठकर हाथ जोड़कर प्राणों की भीख मांगते हुए माफी मांग रहा है। सवाल यह है कि क्या हमारा धर्म और संस्कृति इतनी कमजोर है कि किसी के पहनावे से आहत हो जाए? और अगर मर्यादा का उल्लंघन था भी, तो क्या भीड़ को कानून हाथ में लेने का अधिकार है?
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Varanasi पुलिस का कहना है कि मामला सुलझ गया है, लेकिन पर्यटकों के मन में जो डर और अपमान की स्मृति बैठ गई है, उसकी भरपाई कौन करेगा? जापान और भारत के गहरे मित्रवत संबंधों के बीच ऐसी घटनाएं दरार पैदा करने का काम करती हैं। जब हम विश्व गुरु बनने का सपना देखते हैं, तब हमें यह समझना होगा कि दुनिया हमें हमारे मंदिरों की भव्यता से नहीं, बल्कि वहां आने वाले इंसानों के साथ हमारे व्यवहार से आंकती है।
यह समय है कि हम आत्मचिंतन करें कि क्या हम वास्तव में मेहमानों का सम्मान करना जानते हैं या हम केवल नारों तक सीमित रह गए हैं। Varanasi काशी की गलियों में गूंजती यह चीख हर भारतीय के लिए एक चेतावनी है।










