Mathura land dispute: खुद को जिंदा साबित करने की जंग में थमीं 19 करोड़ की मालकिन की सांसें

26 साल तक खुद को जिंदा साबित करने की जंग लड़ती रहीं 98 वर्षीय विद्या देवी, लेकिन न्याय मिलने से पहले ही उनका निधन हो गया। करीब ₹19 करोड़ की ज़मीन पर परिजनों ने उन्हें मृत बताकर कब्जा कर लिया था।

Mathura

Mathura land dispute: 98 वर्षीय विद्या देवी की जिंदगी की सबसे लंबी लड़ाई थी — खुद को ज़िंदा साबित करना। 26 साल तक वह इस कोशिश में रहीं कि सरकारी रिकॉर्ड में उन्हें मृत नहीं, जीवित माना जाए, ताकि अपने हक की ज़मीन वापस पा सकें। करीब ₹19 करोड़ मूल्य की 6.42 एकड़ ज़मीन पर उनके मायके पक्ष ने उन्हें मृत घोषित कर कब्जा कर लिया था। उनका जीवन इसी लड़ाई में बीत गया और 18 मार्च, 2025 को उन्होंने अंतिम सांस ली। अब बेटे सुनील कुमार उनकी मरणोपरांत न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह मामला न केवल पारिवारिक धोखाधड़ी की त्रासदी है, बल्कि सिस्टम की संवेदनहीनता का आईना भी है।

विद्या देवी, जो अल्मोड़ा के लोधा थाना क्षेत्र के बल्लभ गांव की निवासी थीं, अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं। 1976 में उनके नाना मिल्टन सिंह ने वसीयत के ज़रिए Mathura जिले के सुरीर कलां गांव स्थित 6.42 एकड़ भूमि उनके नाम कर दी थी। लेकिन 1995 में उनके नाना की मृत्यु के बाद, उनके मायके पक्ष के रिश्तेदारों — दिनेश, सुरेश और ओमप्रकाश — ने दस्तावेजों में जालसाजी कर उन्हें मृत घोषित कर दिया और ज़मीन हड़प ली।

विद्या देवी ने अपनी ज़मीन वापस पाने के लिए लगातार प्रशासन, Mathura पुलिस और अदालतों के चक्कर लगाए। लेकिन 26 साल तक उनकी याचिकाएं फाइलों में दबती रहीं। उनके बेटे सुनील कुमार ने बताया कि उनकी मां ने हर दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन कहीं से राहत नहीं मिली। अंततः 2025 की शुरुआत में आगरा के तत्कालीन कमिश्नर और डीएम शैलेंद्र कुमार सिंह के निर्देश पर एसएसपी ने मामले की जांच शुरू करवाई।

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18 फरवरी 2025 को सुनील की तहरीर पर सुरीर Mathura थाने में तीनों आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। 29 फरवरी को दिनेश की गिरफ्तारी भी हुई, हालांकि यह तारीख वास्तव में कैलेंडर में मौजूद नहीं है, जिससे जांच की सटीकता पर सवाल उठते हैं। बाकी दो आरोपी अभी फरार हैं। पुलिस अब मृत विद्या देवी के पुराने दर्ज बयानों के आधार पर कार्रवाई कर रही है।

यह मामला न केवल Mathura बल्कि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया है। एक बुज़ुर्ग महिला की दशकों लंबी लड़ाई, जिसमें वह खुद को ही ज़िंदा साबित नहीं कर सकीं, सिस्टम की विफलता का बड़ा उदाहरण है। अब न्याय की लड़ाई उनके बेटे सुनील कुमार के कंधों पर आ गई है।

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