SIR voter list update:राज्य की मतदाता सूची में इस बार ऐसा बदलाव देखने को मिला है, जिसने चुनावी व्यवस्था से जुड़े लोगों को भी चौंका दिया है। सबसे ज्यादा नाम कटने वाले टॉप-10 जिलों में प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत आठ बड़े महानगर और औद्योगिक जिले शामिल हैं। इसके उलट, छोटे जिलों में नाम कटने की संख्या काफी कम रही है।
बड़े शहरों से क्यों कटे ज्यादा नाम?
चुनाव आयोग और प्रशासनिक अधिकारियों का मानना है कि लंबे समय से बड़ी संख्या में ऐसे मतदाता थे, जिनके नाम दो जगह दर्ज थे। एक नाम उनके पैतृक गांव या गृह जिले में और दूसरा नाम उस शहर में, जहां वे नौकरी, व्यापार या पढ़ाई के कारण रहते हैं।
इस बार विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान डबल एंट्री पर सख्ती की गई और डिजिटल रिकॉर्ड का मिलान किया गया। नियम साफ था। एक व्यक्ति, एक वोट, एक जगह। ऐसे में लोगों को तय करना पड़ा कि वे अपना वोट कहां रखना चाहते हैं।
जांच में यह साफ सामने आया कि अधिकतर लोगों ने अपने गृह जिले या गांव की मतदाता सूची में नाम बनाए रखना बेहतर समझा। नतीजा यह हुआ कि लखनऊ, कानपुर, गाजियाबाद, आगरा जैसे बड़े शहरों की वोटर लिस्ट में भारी गिरावट दर्ज की गई।
छोटे जिलों में क्यों कम कटे नाम?
इसके उलट, जिन जिलों में नाम कटने की संख्या सबसे कम रही, वे ज्यादातर छोटे जिले हैं। खासतौर पर बुंदेलखंड क्षेत्र के जिले इस सूची में आगे हैं।
महोबा में सबसे कम, यानी एक लाख से भी कम 85,354 मतदाताओं के नाम कटे। इसके बाद हमीरपुर में 90,561, ललितपुर में 95,450, चित्रकूट में करीब एक लाख और श्रावस्ती में 1.34 लाख नाम मतदाता सूची से हटाए गए।
टॉप-10 में आठ मंडल मुख्यालय
जिन दस जिलों में सबसे ज्यादा नाम कटे हैं, उनमें से आठ जिले मंडल मुख्यालय हैं। इनमें लखनऊ, प्रयागराज, कानपुर नगर, आगरा, गाजियाबाद, बरेली, मेरठ और गोरखपुर शामिल हैं।
इन मंडल मुख्यालयों से चार से पांच आसपास के छोटे जिले जुड़े होते हैं। रोजगार, नौकरी और बच्चों की पढ़ाई के लिए लोग इन्हीं बड़े शहरों में आकर रहते हैं। पहले उनके नाम गांव और शहर—दोनों जगह दर्ज थे, लेकिन इस बार सख्ती के कारण यह संभव नहीं रहा।
कहां कितने नाम कटे?
लखनऊ में करीब 12 लाख, प्रयागराज में 11.56 लाख, कानपुर नगर में 9.02 लाख, आगरा में 8.36 लाख और गाजियाबाद में 8.18 लाख नाम कटेंगे। इसके बाद बरेली, मेरठ, गोरखपुर, सीतापुर और जौनपुर का नंबर आता है।
अन्य कारण भी बने वजह
कई जिलों में बड़ी संख्या में ऐसे मतदाता भी मिले, जो या तो स्थानांतरित हो चुके थे, या फिर मृत पाए गए। कुछ मामलों में डुप्लीकेट नाम और अन्य कारणों से भी वोटर सूची से नाम हटाए गए। यह पूरी प्रक्रिया मतदाता सूची को ज्यादा साफ, पारदर्शी और भरोसेमंद बनाने की दिशा में अहम मानी जा रही है।








