अल्मोड़ा. सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में इन दिनों मुस्लिम समुदाय के लोग ताजिए बना रहे हैं. हम आपको इस खबर में बताएंगे आखिर ताजिए क्यों बनाए जाते हैं और इनको कैसे तैयार किया जाता है. अल्मोड़ा में कई सालों से इन ताजियों का निर्माण होता आ रहा है, जो आज भी यहां बनाए जाते हैं. मुहर्रम (Muharram 2022) पर हजरत इमाम हसन हुसैन की याद में ताजिया बनाए जाते हैं.
अल्मोड़ा के ताजिए कुमाऊं भर में प्रसिद्ध हैं. इसमें अल्मोड़ा के युवा कलाकार रातभर ताजिए को बनाने में कड़ी मेहनत करते हैं. इसमें सबसे ज्यादा क्राफ्ट का काम किया जाता है. इसमें पेपर की कटिंग कर ताजिए को बनाया जाता है. अल्मोड़ा में पांच जगह पर ये ताजिए बनाए जाते हैं, जिसमें लाला बाजार, नियाजगंज, कचहरी बाजार, थाना बाजार और भ्यारखोला में इन ताजियों का निर्माण किया जाता है. इन ताजियों को मातम के रूप में बाजारों में घुमाया जाता है और फिर इन्हें कर्बला में दफनाया जाता है.
मुस्लिम समुदाय के लोगों का 31 जुलाई से नया कैलेंडर शुरू हो गया है, जिसे ‘मुहर्रम महीना’ कहा जाता है. मुहर्रम के महीने में मुस्लिम समुदाय द्वारा मुहर्रम माह की 5 और 7 तारीख को अलम निकाले जाते हैं. 7 तारीख को मेहंदी (छोटे ताजिए) निकाली जाती है. मुहर्रम की 9 तारीख को ताजिए निकाले जाते हैं और मुहर्रम माह की 10 तारीख को मुस्लिम समुदाय के लोग अपने-अपने इमामबाड़े से ताजिए निकाल उन्हें पूरे शहर में घुमाते हैं और फिर इन्हें कर्बला में दफना दिया जाता है.
युवा कलाकार मोहम्मद इरफान ने बताया कि वह कई सालों से इन ताजियों को बनाने के लिए आते हैं. इसमें बड़े कलाकार उन्हें सिखाते और बताते हैं. देर रात तक वह सभी इन ताजियों के निर्माण के लिए लगे रहते हैं. इसमें कड़ी मेहनत की जाती है और उन्हें काफी अच्छा लगता है कि वह इन ताजियों को बना रहे हैं.
इधर स्थानीय निवासी युसूफ तिवारी ने बताया कि देखा जाए तो अल्मोड़ा में राजा बाज बहादुर चंद के समय से इन ताजियों का निर्माण किया जाता रहा है. अल्मोड़ा के इन ताजेदारियों का विशेष महत्व है. अल्मोड़ा में बनने वाले ऐसे ताजिए आपको कहीं और नहीं मिलेंगे. इसमें क्राफ्ट वर्क किया जाता है जोकि पूरे हिंदुस्तान में देखने को नहीं मिलेगा. अल्मोड़ा के युवा कलाकार इन ताजियों को बनाने में लगे रहते हैं. सरकार से उनकी मांग है कि इन ताजियों को ‘क्राफ्ट फेस्टिवल’ की मान्यता दी जानी चाहिए.